आप किसी विदेश यात्रा पर जाते हैं तो हर व्यक्ति को कुछ मेडिकल चेकअप जरूरी होते हैं. लेकिन कुछ देशों ने भारतीयों के लिए एक मेडिकल टेस्ट एकदम जरूरी करके रखा हुआ है वह है टीबी टेस्ट. दरअसल, इसके पीछे कारण यह है कि ‘वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन’ के मुताबिक दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मरीज भारत में है. साल 2018 में पीएम मोदी ने टीबी मुक्त भारत अभियान की शुरुआत की थी. लेकिन इस बीमारी के मरीजों की संख्या को बढ़ते हुए देख साल 2025 तक भारत क्या इस लक्ष्य को प्राप्त रर पाएगा. वहीं क्या साल 2030 तक टीबी को खत्म करने का ग्लोबल टारगेट पूरा हो पाएगा?

आइए भारत में जमीनी स्तर पर इस बीमारी का क्या हाल है इस पर खुलकर बात करें

16 साल की हर्षिता सिंह अपनी क्लास 12वीं की बोर्ड की एग्जाम्स को लेकर काफी ज्यादा टेंशन में हैं. जहांगीरपुरी में सर्वोदय कन्या विद्यालय की छात्रा वह पिछले तीन महीनों से स्कूल नहीं गई है और जुलाई में मल्टीड्रग-रेज़िस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (एमडीआर टीबी) से पीड़ित होने के बाद उसने अपनी प्री-बोर्ड परीक्षा भी छोड़ दी है. जहांगीरपुरी के डी ब्लॉक में परिवार के एक बेडरूम वाले अपार्टमेंट में बिस्तर पर बैठी हर्षिता हरे रंग की जैकेट और रजाई में लिपटी हुई हुई अपनी फ्यूचर को लेकर काफी टेंशन में है.

डब्ल्यूएचओ ग्लोबल टीबी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 और इंडिया टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत डब्ल्यूएचओ एंड टीबी स्ट्रैटेजी द्वारा निर्धारित 2025 के मील के पत्थर को भी पूरा नहीं कर पाएगा. साल 2025 तक टीबी को खत्म करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करना तो दूर की बात है. 2023 में भी भारत टीबी की घटनाओं और मौतों दोनों के लिए एंड टीबी स्ट्रैटेजी के 2020 के मील के पत्थर को पूरा नहीं कर पाया है. भारत का लक्ष्य 2018 में, केंद्र सरकार ने भारत के लिए 2025 तक तपेदिक (टीबी) को खत्म करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया. जिसका लक्ष्य 2030 के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) लक्ष्य से पांच साल पहले इसे हासिल करना है. मार्च 2023 में वाराणसी में वन वर्ल्ड टीबी समिट के दौरान पीएम मोदी ने इस लक्ष्य को दोहराया.

 टीबी के लिए एसडीजी लक्ष्य:

एसडीजी लक्ष्य 2015 के स्तर की तुलना में 2030 तक टीबी से होने वाली मौतों में 90% की कमी और टीबी की घटनाओं में 80% की कमी लाना है.

इसके अलावा डब्ल्यूएचओ की टीबी उन्मूलन रणनीति में 2015 के स्तर की तुलना में 2025 तक टीबी से होने वाली मौतों में 75% की कमी और टीबी की घटनाओं में 50% की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है.

भारत की प्रगति: भारत टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार

 टीबी घटना दर (प्रति 100,000) टीबी मृत्यु दर (प्रति 100,000) टीबी घटना में कमी (%) टीबी मृत्यु दर में कमी (%)

भारत की प्रगति: प्रत्येक 1 लाख व्यक्ति के हिसाब से भारत टीबी रिपोर्ट 2024 के अनुसार

भारत टीबी उन्मूलन के लिए भारत की राष्ट्रीय रणनीतिक योजना द्वारा 2023 के लिए निर्धारित ‘उन्मूलन’ लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाया. यानी प्रति लाख आबादी पर अनुमानित टीबी घटना दर को घटाकर 77 करना और प्रति 1,00,000 आबादी पर अनुमानित टीबी मृत्यु को घटाकर छह करना.

टीबी की बीमारी क्या है

तपेदिक (टीबी) माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस के कारण होने वाला एक संक्रामक जीवाणु रोग है।

टीबी आम तौर पर फेफड़ों (पल्मोनरी टीबी) को प्रभावित करता है, लेकिन अन्य भागों (एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी) को भी प्रभावित कर सकता है. टीबी हवा के जरिए से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है. जब टीबी संक्रमण से संक्रमित लोग खांसते, छींकते हैं या अन्यथा हवा के माध्यम से श्वसन तरल पदार्थ संचारित करते हैं.

यह भी पढ़ें : स्पेस में लगातार कम हो रहा है सुनीता विलियम्स का वजन, जानें अचानक वेट लॉस कितना खतरनाक

जानिए एक टीबी मरीज की आप बीती

अब आप सोचेंगे कि आखिर हम हर्षिता की बात कर रहे हैं. दरअसल, हम इसलिए हर्षिता की बात कर रहे हैं क्योंकि एक तरफ जहां पूरे देश में टीबी को लेकर जागरूकता और मुहिम चलाई जा रही है. वहीं दूसरी तरफ लड़की अपने कमरे में बैठकर यह सोच रही है कि अगर उसे सही वक्त पर इलाज नहीं मिला तो उसका एक साल बर्बाद हो जाएगा. वह बताती हैं कि इस बीमारी के कारण उनकी पढ़ाई पर बुरा असर होगा. एक साल पूरा बर्बाद हो जाएगा. स्कूल की फीस, ट्यूशन फीस. सब बर्बाद हो गया. एमडीआर टीबी उन कीटाणुओं के कारण होता है जो दो या अधिक मुख्य ट्यूबरकुलोसिस दवाओं. आइसोनियाज़िड और रिफैम्पिन के प्रति प्रतिरोधी होते हैं. दवाइयां राज्य कार्यक्रम अधिकारी द्वारा खरीदी जाती हैं और फिर अस्पताल के फार्मेसियों और डिस्पेंसरियों में वितरित की जाती हैं. जहां मरीज़ उन्हें मुफ़्त में प्राप्त कर सकते हैं. हर्षिता के घर से पांच मिनट की दूरी पर एक सरकारी डिस्पेंसरी पांच दिनों में केवल एक बार टीबी की दवा उपलब्ध कराती है अगर उनके पास स्टॉक है.

यह भी पढ़ें : स्पेस में लगातार कम हो रहा है सुनीता विलियम्स का वजन, जानें अचानक वेट लॉस कितना खतरनाक

जमीनी स्तर पर कुछ ऐसा है टीबी को लेकर देश में व्यवस्था

शनिवार को सुबह 9.30 बजे उसकी मां ज्योति सिंह डिस्पेंसरी गईं, लेकिन खाली हाथ लौटीं. ज्योति कहती हैं उन्होंने कहा कि दवाइयां खत्म हो गई हैं. मैं अपने पति के भाई से कहूंगी कि वे ऊंची कीमत के बावजूद किसी निजी फार्मेसी से दवाइयां खरीद लें. हमें यह सुनिश्चित करना है कि हर्षिता का इलाज जारी रहे. सोमवार को वह बाबू जगजीवन राम अस्पताल गईं. लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला. इसके बाद वह डिस्पेंसरी गईं और किसी तरह पांच दिन चलने वाली गोलियां खरीद पाईं. ज्योति ने बताया कि इन पांच महीनों में उन्हें डिस्पेंसरी से लाइनजोलिड और साइक्लोसेरिन की दवाइयां सिर्फ एक महीने के लिए मिलीं. साइक्लोसेरिन की छह गोलियों की एक स्ट्रिप की कीमत 350 रुपये है, जबकि हर्षिता को दिन में दो बार दवाइयां लेनी पड़ती हैं.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें. 

ये भी पढ़ें: Microwave Oven Day 2024 : क्या वाकई माइक्रोवेव बना सकता है बीमार, जानें

Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )

Calculate The Age Through Age Calculator



Source link