जिम जाने से पहले फिश ऑयल वाली गोली क्यों खाते हैं लोग? जानें ये कितना सेफ



<p style="text-align: justify;">आजकल नौजवान अपनी बॉडी बनाने के लिए जिम में घंटों में पैसा बहाते हैं. इसके साथ-साथ प्रोटीन पाउडर का इस्तेमाल करते हैं. इन दिनों फिश ऑयल का भी काफी ज्यादा क्रेज बढ़ा है. कहा जाता है कि फिश ऑयल शरीर के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद होता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>फिश ऑयल का इस्तेमाल करने से पहले इन बातों का रखें ख्याल</strong></p>
<p style="text-align: justify;">बॉडी बनाने के लिए आजकल अधिकतर लोग खूब मेहनत कर रहे हैं. लोग अच्छा से अच्छा डाइट प्लान और फिटनेस का ख्याल रख रहे हैं. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो घंटों मेहनत कर रहे हैं लेकिन उनकी बॉडी नहीं बन रही है. जो लोग अच्छी बॉडी बनाना चाहते हैं और नहीं बन रही है वह लोग वर्कआउट से पहले फिश ऑयल का इस्तेमाल कर रहे हैं. ताकि जल्दी से जल्दी बेहतरीन बॉडी बन सके.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">फिश ऑयल अक्सर अच्छी बॉडी बनाने के लिए किया जाता है. इसका असर बॉडी पर जल्दी दिखाई देता है. दरअसल, फिश ऑइल में ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है. जो शरीर के बॉडी बिल्डिंग के लिए बहुत अच्छा होता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>फिश ऑयल क्या है?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल, फिश ऑयल एक तेल की तरह होता है. यह सालमन, हैलिबट और मैकेरेल में होता है. इन मछलियों के अंदर से फिश ऑयल निकाला जाता है. एक रिसर्च के मुताबिक हफ्ते में कम से कम एक बार 227 ग्राम ओमेगा 3 फैटी एसिड जरूर खाना चाहिए. ओमेगा 3 फैटी एसिड फिश ऑयल में पाया जाता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">बॉडी बिल्डिंग के दौरान अक्सर आप हैवीवेट उठाते हैं ताकि आपकी बॉडी बने. इसके साथ आप कई दूसरी एक्सरसाइज करते हैं. जिसके कारण मांसपेशियों में थकान और दर्द होने लगती है. मासंपेशियों में इसी दर्द को कम करने के लिए फिश ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है ताकि आपको दर्द से राहत मिले और आपकी मसल्स स्मूद रहे.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">वर्कआउट जितने अच्छे तरीके से करेंगे उतने ही अच्छे तरीके से बॉडीबिल्डिंग कर पाएंगे. फिश ऑयल के इस्तेमाल करने से आप काफी देर तक वर्कआउट कर पाते हैं. इससे आपकी सेहत इंप्रूव होती है. वर्कआउट के दौरान आपको काफी ज्यादा थकान होने लगती है. अगर आप ठीक तरीके से एक्सरसाइज नहीं कर पाएंगे तो आपको थकान होगी और फिश ऑयल आपके शरीर की ताकत को बढ़ाती है.&nbsp;</p>
<p><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>
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क्या ज्यादा रनिंग करने से आपके घुटने खराब हो सकते हैं? यहां जानें सच



<p style="text-align: justify;">क्या आप जानते हैं कि जब आप चलते हैं, तो आपके घुटने आपके शरीर के हर पाउंड वजन के साथ लगभग डेढ़ पाउंड का तनाव झेलते हैं? और जब आप दौड़ते हैं, तो यह तनाव चार पाउंड तक बढ़ जाता है. हमारे घुटने हर कदम के साथ इस झटके को सहन करते हैं.&nbsp;इसी वजह से, बहुत से लोग मानते हैं कि दौड़ने से घुटनों को नुकसान हो सकता है. उनका मानना है कि दौड़ने से कार्टिलेज (घुटनों के बीच का गद्दा) टूट सकता है और पहले से कोई समस्या हो तो वह बढ़ सकती है. लेकिन क्या यह सच है? आइए जानते हैं&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">डॉ. क्रिस बून एक मशहूर ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं, वे और उनकी टीम ने इस पर शोध किया है. उनके अनुसार, दौड़ना अपने आप में घुटनों के लिए बुरा नहीं है. लेकिन अगर दौड़ने वाले लोग सावधानी नहीं बरतते, तो घुटनों में दर्द हो सकता है. अच्छे जूतों के साथ दौड़ना हेल्थ के लिए फायदेमंद है. रोजाना दौड़ने से घुटनों में तरल बढ़ता है, जो उन्हें चिकना रखता है और गठिया का खतरा कम करता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>जानें क्यों होता है घूटनों में दर्द&nbsp;<br /></strong>हालांकि, इसका मतलब यह नहीं कि दौड़ने वालों को घुटनों में दर्द नहीं हो सकता. दौड़ते समय घुटनों पर असर डालने वाले कई कारण होते हैं. अगर कूल्हे या जांघ की मांसपेशियां कमजोर हैं, तो घुटने में चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है. ज्यादा वजन भी घुटनों पर दबाव बढ़ाता है, जिससे चोट का खतरा होता है. लेकिन वजन कम करने से घुटनों पर दबाव कम हो सकता है.&nbsp;धावकों में सबसे आम चोट पेटेलोफेमोरल पेन सिंड्रोम (PFPS) होती है. इस समस्या में घुटने के नीचे, ऊपर या सामने दर्द होता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>जानें दौड़ने का सही तरीका&nbsp;</strong></p>
<ul style="text-align: justify;">
<li>अचानक ज्यादा दौड़ना: अगर आपने अचानक अपनी दौड़ने की दूरी या समय बढ़ा दिया है, तो यह चोट लगने का एक मुख्य कारण हो सकता है. इसे सुधारने के लिए धीरे-धीरे अपनी दौड़ने की दूरी और समय बढ़ाएं. इससे आपके घुटनों को नए दबाव के अनुकूल होने का समय मिलेगा.</li>
<li>स्ट्रेंथ ट्रेनिंग एक्सरसाइज: कोर मसल्स (मध्य भाग की मांसपेशियां) को मजबूत करने के लिए एक्सरसाइज करें. इससे दौड़ते समय आपका फॉर्म सही रहेगा और घुटने की चोट का खतरा कम होगा.&nbsp; मजबूत मांसपेशियां आपके घुटनों को बेहतर सहारा देती हैं.</li>
<li>सही दौड़ने की तकनीक: दौड़ते समय सही तकनीक का इस्तेमाल करें. गलत तरीके से दौड़ने से घुटनों पर अधिक दबाव पड़ता है. दौड़ते समय अपने कदम छोटे और हल्के रखें.</li>
<li>सही जूते: हमेशा अच्छे क्वालिटी के दौड़ने वाले जूते पहनें, जो आपके पैरों और घुटनों को सही सपोर्ट दें. पुराने या घिसे-पिटे जूते इस्तेमाल न करें.&nbsp;</li>
</ul>
<p style="text-align: justify;"><strong>जानें क्या सही&nbsp;</strong><br />दौड़ना आपके घुटनों और हेल्थ के लिए फायदेमंद हो सकता है, बशर्ते आप सही तरीके से दौड़ें और दर्द के संकेतों को नज़रअंदाज़ न करें. अगर आपको दौड़ते समय घुटने में दर्द होता है, तो इसे गंभीरता से लें और तुरंत दौड़ना बंद कर दें.&nbsp;&nbsp;</p>
<p><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>
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शरीर के किन अंगों में सारकोमा ट्यूमर फैलने का रहता है सबसे ज्यादा खतरा?



<p style="text-align: justify;">’वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन’ के मुताबिक सारकोमा ट्यूमर को 100 से ज्यादा टाइप में बांटा जा सकता है. सारकोमा अलग-अलग तरह के ट्यूमर होते हैं जो बॉडी के मेसेंकाईमल लेयर में बनते हैं. इसलिए वह हड्डी में विकसित होने के साथ-साथ सॉफ्ट टिश्यू में भी बनने लगते हैं. नौजवान में ट्यूमर के लगभग एक प्रतिशत और बच्चों के ट्यूमर के 10 प्रतिशत सारकोमा के होते हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>सारकोमा क्या है?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सारकोमा एक ऐसा कैंसर है जिसकी विशेषता अनियंत्रित वृद्धि और शरीर के विभिन्न भागों में फैलने लगता है. सारकोमा का प्रकार उम्र के हिसाब से अलग-अलग हो सकता है. उदाहरण के लिए, बच्चों और युवा वयस्कों में हड्डियों का सारकोमा ज़्यादा आम है. जबकि वयस्कों में पेट के पिछले हिस्से में सारकोमा ज़्यादा देखा जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>सारकोमा के कई कारण हो सकते हैं:</strong></p>
<p style="text-align: justify;">न्यूरो फाइब्रोमैटोसिस और लि-फ्रामिनी जैसे जेनेटिक सिंड्रोम</p>
<p style="text-align: justify;">अगर आपने पहले रेडिएशन एक्पोजर</p>
<p style="text-align: justify;">क्रोनिक इरिटेशन</p>
<p style="text-align: justify;">लिम्फेडेमा</p>
<p style="text-align: justify;">ह्मून हर्पीज वायरस जिसे कपोसी सारकोमा कहते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>सारकोमा दिखता कैसा और यह शरीर में किन अंगों में फैलता है?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">यह बीमारी होने पर मरीज के शरीर में गांठ बनने लगता है. इसमें दर्द नहीं होता है लेकिन अगर इसका साइज बड़ा हो जाए तो दर्द काफी ज्यादा बढ़ सकता है. इसके कारण त्वचा में चेंजेज भी होने लगते हैं. इसमें बुखार भी होने लगता है. इसके ज्यादातर ट्यूमर जांघ, पेट और ग्रोइन में होते हैं. लेकिन यह सिर, गर्दन &nbsp;सहित शरीर के दूसरी हिस्सों में भी फैलने लगता है. ट्यूमर फेफड़ों में भी फैलने लगता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>सारकोमा कैसे शरीर में फैलता है?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सारकोमा शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है. लेकिन सबसे अधिक बार यह हाथ या पैर में होता है. ये ट्यूमर खास तौर पर बच्चों में पाए जाते हैं. सारकोमा के शुरुआती लक्षणों में काफी ज्यादा सूजन, गांठ या ट्यूमर शामिल हैं जो नए होते हैं और शरीर की संरचना और रूप को बदल देते हैं. जिसके कारण शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. शुरुआती लक्षण में सारकोमा सूजन के रूप में दिखाई दे सकता है जो धीरे-धीरे वो काफी ज्यादा उभरने लगता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">पेट या ऊतकों में सारकोमा का पता लगने में अधिक समय लग सकता है. सारकोमा का पता अक्सर देर से पता चलता है. सारकोमा वाले ट्यूमर में काफी ज्यादा दर्द होता है.&nbsp; पेट के सारकोमा से पेट में दर्द हो सकता है और बड़े ट्यूमर ऊपरी त्वचा के रंग को बदल सकते हैं या घावों को ठीक नहीं कर सकते हैं. अगर ट्यूमर फेफड़ों तक फैल जाता है, सांस फूलना या थूक में खून आना जैसे लक्षण हो सकते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">सारकोमा की पहचान के लिए कुछ शुरुआती जांच करवाने होंगे. इसके लिए सबसे पहले एक्स-रे, सीटी, एमआरआई और पेट स्कैन जांच के साथ मरीज की हिस्ट्री की पड़ताल.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">सारकोमा बीमारी का इलाज</p>
<p style="text-align: justify;">सारकोमा की बीमारी का इलाज उसके स्टेज पर निर्भर करता है. सर्जरी, रेडिएशन थैरेपी और कीमोथेरेपी के जरिए इसका इलाज किया जाता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये भी पढ़ें:&nbsp;<a title="एक इंसान से दूसरे इंसान में इन चीजों से फैलता है डेंगू, भूलकर भी ना करें ये गलती" href="https://www.abplive.com/lifestyle/health/dengue-is-spread-through-the-bite-of-the-female-mosquito-2746015" target="_self">एक इंसान से दूसरे इंसान में इन चीजों से फैलता है डेंगू, भूलकर भी ना करें ये गलती</a></strong></p>



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हेपेटाइटिस से हो सकता है लिवर फेलियर


आजकल के नौजवान को भी लिवर से जुड़ी गंभीर बीमारी का खतरा सता रहा है. आज हम बात करेंगे हेपेटाइटिस के कारण लिवर में किस तरह से इंफेक्शन बढ़ता है. हेपेटाइटिस के कारण लिवर में सूजन शुरू हो जाती है. एक समय के बाद लिवर फेलियर तक हो सकता है. यह कई दूसरी ऑटोइम्यून बीमारी के कारण भी हो सकती है.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हेपेटाइटिस 4 तरह के होते हैं. हर तरह के हेपेटाइटिस एक दूसरे से काफी अलग होते हैं. हेपेटाइटिस के कुछ मामले काफी ज्यादा गंभीर होते हैं. उस बीमारी के कारण लिवर डेमैज, लिवर फेलियर, सिरोसिस, लिवर कैंसर या मृत्यु का खतरा बढ़ता है. ‘वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन’ के मुताबिक पूरी दुनिया में 354 मिलियन (35.4 करोड़) लोग क्रोनिक हेपेटाइटिस बी और सी से पीड़ित होते हैं. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की 2024 की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, वायरल हेपेटाइटिस दुनियाभर में संक्रामक बीमारी से होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन गया है.  हेपेटाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या 2019 के 11 लाख से बढ़कर 2022 में 13 लाख पहुंच गई. इन मौतों में से 83 फीसदी हेपेटाइटिस बी की वजह से हुईं, जबकि 17 फीसदी हेपेटाइटिस सी की वजह से हुईं. दुनियाभर में हर रोज 3500 लोग हेपेटाइटिस बी और सी के संक्रमण से मर रहे हैं.

आखिर क्या है ये हेपेटाइटिस नाम की बीमारी

लिवर में किसी भी तरह की चोट या जलन को सूजन कहते हैं और यही सूजन जब लिवर में होती है तो उसे हेपेटाइटिस कहते हैं. हेपेटाइटिस कई कारणों से हो सकता है. इनमें से एक है वायरस. वायरस वाला हेपेटाइटिस एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल सकता है. कुछ खास तरह के वायरस वाले हेपेटाइटिस तो शारीरिक संबंध बनाने से भी फैल सकते हैं.

लिवर हमारे शरीर का एक बहुत जरूरी अंग है. ये पोषक तत्वों को प्रोसेस करता है, खून को साफ करता है और इंफेक्शन से लड़ता है. जब लिवर में सूजन आ जाती है या वो किसी तरह से खराब हो जाता है तो उसका काम प्रभावित हो सकता है. शराब का ज्यादा सेवन, जहर, कुछ दवाइयां और कुछ बीमारियां भी लिवर में सूजन ला सकती हैं. लेकिन ज्यादातर मामलों में हेपेटाइटिस किसी वायरस की वजह से होता है.

हेपेटाइटिस के लक्षण:

लंबे समय तक रहने की स्थिति में हेपेटाइटिस के सामान्य लक्षणों में थकान, सूजन, दर्द, सूजन, वजन कम होना, टॉयलेट का गहरा रंग होना, मिट्टी के रंग का मल, पीलिया, वजन कम होना, कमजोरी और अन्य स्थितियां शामिल हैं जो किसी व्यक्ति के यकृत की स्थिति, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, आयु और इम्युनिटी पर निर्भर करती हैं.

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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क्या ज्यादा प्रोटीन आपको बना सकता है बीमार, ये पांच संकेत बताते हैं कि शरीर में बढ़ रही प्रोटीन की मात्रा



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हार्ट अटैक के बाद स्टेंट डालने के क्या होते हैं नुकसान


हार्ट अटैक पड़ने के बाद अक्सर कोरोनरी स्टेंट का इस्तेमाल अब लगभग सभी एंजियोप्लास्टी प्रक्रियाओं में किया जाता है. स्टेंट एक छोटा सा मशीन होता है दिखने में जालीदार कॉइल होता है. इसे धमनी में डालकर खोला जाता है.  धमनी को फिर से सिकुड़ने या बंद होने से बचाया जा सके. स्टेंट लगाने के बाद ऊतक स्टेंट पर त्वचा की परत की तरह जमना शुरू हो जाता है. स्टेंट 3 से 12 महीनों के भीतर ऊतक से पूरी तरह भर जाएगा. समय की अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि स्टेंट पर दवा की कोटिंग है या नहीं.

कोरोनरी स्टेंट

 आपको प्लेटलेट्स की चिपचिपाहट को कम करने के लिए एंटीप्लेटलेट्स नामक दवाएं दी जा सकती हैं. प्लेटलेट्स खासकर ब्लड सेल्स होती हैं जो रक्तस्राव को रोकने के लिए आपस में चिपक जाती हैं. दवा स्टेंट के अंदर रक्त के थक्के बनने से भी रोक सकती है. आपकी स्वास्थ्य सेवा टीम आपको विशिष्ट निर्देश देगी कि आपको कौन सी दवाएं लेनी हैं और कितने समय तक लेनी हैं.

स्टेंट कैसे काम करता है?

ज्यादातर स्टेंट दवा से लेयर होते हैं ताकि स्टेंट के अंदर निशान सेल्. बनने से रोका जा सके. इन स्टेंट को ड्रग-एल्यूटिंग स्टेंट कहा जाता है. वे ब्लड सर्कुलेशन के भीतर दवा छोड़ते हैं जो स्टेंट के भीतर सेल्स को अतिवृद्धि को धीमा कर देता है. यह ब्लड सर्कुलेशन को फिर से संकीर्ण होने से रोकने में मदद करता है.

कुछ स्टेंट में यह दवा कोटिंग नहीं होती है और उन्हें बेयर मेटल स्टेंट कहा जाता है. उनमें स्टेनोसिस की दर अधिक हो सकती है. लेकिन उन्हें एंटीप्लेटलेट दवाओं के लंबे समय तक उपयोग की आवश्यकता नहीं होती है. यह उन लोगों के लिए पसंदीदा स्टेंट हो सकता है जिन्हें रक्तस्राव का उच्च जोखिम है.स्टेंट इन्हें ठीक करने का काम करता है. यदि आपको स्टेंट लगाने के बाद सीने में दर्द होता है. तो आपको अपनी स्वास्थ्य सेवा टीम से बात करनी चाहिए.

एंजियोप्लास्टी के जोखिम क्या हैं?

एंजियोप्लास्टी, स्टेंटिंग, एथेरेक्टॉमी और संबंधित प्रक्रियाओं से जुड़े संभावित जोखिमों में शामिल हैं.

शरीर में कैथेटर डालने वाली जगह पर ब्लीडिंग की दिक्कत होने लगतीहै (आमतौर पर कमर, कलाई या हाथ)

कैथेटर से ब्लड सर्कुलेशन में रक्त का थक्का या क्षति

ब्लड सर्कुलेशन में रक्त का थक्का

कैथेटर डालने वाली जगह पर संक्रमण

दिल की बीमारी

दिल का दौरा

स्ट्रोक

सीने में दर्द या बेचैनी

कोरोनरी धमनी का फटना या कोरोनरी धमनी का पूरी तरह बंद हो जाना. जिसके लिए ओपन-हार्ट सर्जरी की आवश्यकता होती है.

कंट्रास्ट डाई से एलर्जी की प्रतिक्रिया

कंट्रास्ट डाई से किडनी को नुकसान

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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