टाइप 5 डायबिटीज, जिसे अक्सर मोनोजेनिक डायबिटीज या युवावस्था में मैच्योरिटी से शुरू होने वाला डायबिटीज (MODY) कहा जाता है. ये डायबिटीज का एक रेयर और जेनेटिक फॉर्म है. ये टाइप 1 या टाइप 2 से डिफरेंट है. टाइप 5 डायबिटीज एक जीन में म्यूटेशन के कारण होती है, जो बॉडी में ब्लड शुगर के रेगुलेशन को अफेक्ट करता है.

Diabetes के एक्सपर्ट डॉ. राहुल बख्शी के अनुसार, टाइप-5 डायबिटीज यूजुअली टीनेज या अर्ली एडल्टहुड में अपीयर होता है, लेकिन इसके सिम्पटम्स दूसरे टाइप की डायबिटीज से सिमिलर होने के कारण इसे अक्सर टाइप 1 या टाइप 2 समझ लिया जाता है. MODY के कई सब-टाइप्स हैं और हर सब-टाइप डिफरेंट जीन म्यूटेशन से जुड़ा है. 

टाइप-1, टाइप-2 और टाइप-5 डायबिटीज में अंतर

  • टाइप-1 डायबिटीज: यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है. इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से पैन्क्रियाज में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला करके उन्हें नष्ट कर देती है. परिणामस्वरूप, शरीर बहुत कम या बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बना पाता. 
  • टाइप-2 डायबिटीज: यह डायबिटीज का सबसे आम प्रकार है. इसमें शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता या फिर इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता. यह अक्सर लाइफस्टाइल से जुड़ी होती है, जैसे मोटापा, शारीरिक गतिविधि की कमी और गलत खान-पान.
  • टाइप-5 डायबिटीज: जैसा कि ऊपर बताया गया है, इसका मुख्य कारण लंबे समय तक चला कुपोषण है, विशेष रूप से बचपन से ही अपर्याप्त पोषण. यह न तो ऑटोइम्यून है और न ही मुख्य रूप से इंसुलिन रेजिस्टेंस से संबंधित है. इसमें शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता, लेकिन इसे मेडिसन से नियंत्रित किया जा सकता है.

किस वजह से होती है टाइप-5 डायबिटीज?

टाइप-5 डायबिटीज का मेन रीजन एक जेनेटिक म्यूटेशन है. ये म्यूटेशन पेरेंट्स से बच्चों में ऑटोसोमल डोमिनेंट पैटर्न में ट्रांसमिट होता है. इसका मतलब है कि इस कंडीशन को डेवलप होने के लिए डिफेक्टिव जीन की सिर्फ एक कॉपी ही काफी होती है. अगर किसी पेरेंट को टाइप-5 डायबिटीज है, तो 50% चांस है कि उनके बच्चे को भी ये डिसीज इनहेरिट होगी. एन्वायरनमेंटल फैक्टर्स या लाइफस्टाइल इस टाइप की डायबिटीज का फैक्टर्स नहीं होते. ये एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो पैंक्रियाज के फंक्शन या सेल्यूलर लेवल पर इंसुलिन के प्रोडक्शन को अफेक्ट करता है.

ये होते हैं लक्षण

टाइप-5 डायबिटीज के सिम्पटम्स हर सबटाइप के हिसाब से थोड़े डिफरेंट हो सकते हैं, लेकिन कुछ कॉमन इंडिकेटर्स हैं जो इसे पहचानने में हेल्प करते हैं. सामन्य तौर पर, पेशेंट्स में छोटी एज से ही ब्लड शुगर का लेवल हल्का से मॉडरेट बढ़ा हुआ दिखता है. सबसे इम्पोर्टेंट बात ये है कि इसमें ओबेसिटी या इंसुलिन रेजिस्टेंस जैसे कोई सिम्पटम्स नहीं होते, जो कि टाइप-2 डायबिटीज में अक्सर दिखते हैं. इस कंडीशन का एक और बड़ा हिंट है फैमिली हिस्ट्री . अगर आपकी फैमिली में कई जनरेशंस से डायबिटीज चली आ रही है, तो MODY होने के चांसेस बढ़ जाते हैं. कुछ स्पेसिफिक MODY टाइप्स में बार-बार यूरिन आना, बहुत ज्यादा प्यास लगना, थकान और बिना किसी खास रीज़न के वेट लॉस जैसे सिम्पटम्स भी दिख सकते हैं. 

टाइप 5 डायबिटीज का मैनेजमेंट

टाइप-5 डायबिटीज का मैनेजमेंट इसके जेनेटिक म्यूटेशन पर डिपेंड करता है. कुछ टाइप्स में ट्रीटमेंट की नीड नहीं होती. दूसरों में ओरल सल्फोनीलुरिया की कम डोज हेल्प करती है, जो इंसुलिन प्रोडक्शन को स्टिम्युलेट करती है. हेल्दी लाइफस्टाइल और रेगुलर ब्लड शुगर मॉनिटरिंग भी जरूरी है. टाइप-1 या एडवांस्ड टाइप-2 के अपोजिट, अक्सर इंसुलिन थेरेपी की जरूरत नहीं होती.

ऐसे करें बचाव और ट्रीटमेंट

टाइप-5 डायबिटीज एक जेनेटिक कंडीशन है, इसे प्रिवेंट नहीं किया जा सकता. हालांकि, फैमिली हिस्ट्री चेक और जेनेटिक काउंसलिंग से अर्ली डायग्नोसिस पॉसिबल है. हेल्दी वेट और शुगर कंट्रोल जैसे लाइफस्टाइल चॉइसेस कॉम्प्लीकेशंस को कम कर सकते हैं. वहीं, इसका ट्रीटमेंट सबटाइप के अकॉर्डिंग कस्टमाइज किया जाता है, जिसमें जेनेटिक टेस्टिंग और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट का इवैल्यूएशन गाइड करता है. ज्यादातर केसेस में ओरल मेडिसन ही पर्याप्त होती हैं. हालांकि, कुछ मामलों में इंसुलिन थेरेपी की जरूरत हो सकती है.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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