बिल्लियां पालना काफी लोगों को पसंद होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अल्जाइमर और डिमेंशिया के मरीजों का इलाज करने के लिए भी अब बिल्लियों की मदद ली जा सकती है. दरअसल, हाल ही में एक स्टडी हुई. इसमें सामने आया कि बिल्लियों में होने वाली डिमेंशिया की बीमारी इंसानों में होने वाले अल्जाइमर रोग से काफी हद तक मिलती-जुलती है. ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि अल्जाइमर और डिमेंशिया के इलाज में बिल्लियां काफी मददगार हो सकती हैं. आइए जानते हैं कि क्या है पूरा मामला? 

डिमेंशिया और अल्जाइमर से बिल्लियों का कनेक्शन

जानकारी के मुताबिक, यह रिसर्च यूनाइटेड किंगडम की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने की है. उन्होंने देखा कि जिन बिल्लियों को डिमेंशिया होता है, उनके दिमाग में खास तरह का टॉक्सिक प्रोटीन जमा हो जाता है, जिसे एमिलॉइड-बीटा कहते हैं. यही प्रोटीन इंसानों में अल्जाइमर रोग की मुख्य वजह माना जाता है. यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूरोसाइंस में पब्लिश इस स्टडी में बताया गया कि बिल्लियों और इंसानों की इस बीमारी में कई समानताएं हैं.

बिल्लियों में दिखते हैं ऐसे लक्षण

वैज्ञानिकों ने देखा कि उम्रदराज बिल्लियों में डिमेंशिया होने पर उनके व्यवहार में भी बदलाव आ जाता है. इसकी वजह से वे बार-बार म्याऊं-म्याऊं करती हैं. भ्रम की स्थिति में नजर आती हैं. वहीं, उनकी नींद भी बार-बार टूटती है. ये सारे लक्षण इंसानों में अल्जाइमर रोग से मिलते-जुलते हैं. ऐसे में वैज्ञानिकों को लगता है कि बिल्लियों पर स्टडी करके अल्जाइमर रोग को अच्छी तरह समझा जा सकता है. 

रिसर्च में किया गया यह काम

वैज्ञानिकों ने इस स्टडी के लिए 25 मृत बिल्लियों के दिमाग पर रिसर्च की. इनमें से कुछ बिल्लियां डिमेंशिया से पीड़ित थीं. उन्होंने शक्तिशाली माइक्रोस्कोप की मदद से बिल्लियों के दिमाग की जांच की और पाया कि उम्रदराज और डिमेंशिया से ग्रस्त बिल्लियों के दिमाग में एमिलॉइड-बीटा प्रोटीन का जमाव था. यह जमाव खास तौर पर सिनैप्स में देखा गया. सिनैप्स दिमाग की कोशिकाओं के बीच संदेश भेजने का काम करते हैं, जो हेल्दी माइंड के लिए बेहद जरूरी होते हैं. जब इनमें एमिलॉइड-बीटा जमा हो जाता है तो ये ठीक से काम नहीं कर पाते हैं. इससे याददाश्त और सोचने की क्षमता कम हो जाती है. यही समस्या अल्जाइमर रोग में भी देखी जाती है.

क्या होती है सिनैप्टिक प्रूनिंग?

रिसर्च में एक और रोचक बात सामने आई. वैज्ञानिकों ने देखा कि दिमाग में कुछ खास कोशिकाएं जैसे एस्ट्रोसाइट्स और माइक्रोग्लिया होती हैं. ये कोशिकाएं दिमाग में खराब हो चुके सिनैप्स को खा जाती हैं. इस प्रक्रिया को सिनैप्टिक प्रूनिंग कहते हैं. यह प्रक्रिया दिमाग के विकास के दौरान तो फायदेमंद होती है, क्योंकि यह दिमाग को साफ और व्यवस्थित रखती है. वहीं, डिमेंशिया में यह प्रक्रिया ज्यादा हो जाती है, जिसके कारण जरूरी सिनैप्स भी नष्ट हो जाते हैं. इससे दिमाग की कार्यक्षमता और याददाश्त पर बुरा असर पड़ता है.

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