भारतीय महिलाओं में दिल की बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं. जर्नल ऑफ अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी में पब्लिश एक रिसर्च के मुताबिक, 3 से 13 पर्सेंट भारतीय महिलाएं कोरोनरी आर्टरी डिजीज से जूझ रही हैं. यह आंकड़ा उम्र के आधार पर जारी किया गया है. सबसे खतरनाक बात यह है कि पिछले दो दशक में यह आंकड़ा 300 पर्सेंट बढ़ गया है.
महिलाओं को किस उम्र में आ रहा हार्ट अटैक?
रिसर्च के मुताबिक, भारतीय महिलाओं को हार्ट अटैक आने की औसत उम्र करीब 59 साल है, जो विकासशील देशों के मुकाबले काफी कम है. हालांकि, हार्ट फेल्योर के मामले दोगुने से हो चुके हैं. दरअसल, साल 2000 में हार्ट फेल्योर के मामले 1.1 पर्सेंट थे, जो 2015 तक बढ़कर 3.6 पर्सेंट हो गए. इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि भारतीय महिलाओं को हार्ट हेल्थ के प्रति ज्यादा जागरूक होने, समय पर जांच कराने और जेंडर स्पेसिफिक अप्रोच की जरूरत है.
पुरुषों से अलग क्यों महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण?
महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण बेहद हल्के होते हैं और पुरुषों में नजर आने वाले आम लक्षणों से अलग नजर आते हैं. पुरुषों में अक्सर सीने में तेज दर्द की शिकायत करते हैं, जबकि महिलाओं को कमर, जबड़े और पेट में ज्यादा दर्द महसूस होता है. इसके अलावा उन्हें सांस न आने, असामान्य थकान, मतली और चक्कर आने जैसी दिक्कतें होती हैं. इन लक्षणों को अक्सर एसिडिटी, कमजोरी या एंग्जायटी समझ लिया जाता है. दरअसल, भारत में महिलाएं अपनी सेहत को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं रहती हैं. इसकी वजह से बीमारी का पता देर से चलता है और इलाज में भी देरी हो जाती है. इससे कम उम्र की युवतियों और मेनोपॉज के बाद की महिलाओं के लिए खतरा ज्यादा बढ़ जाता है.
महिलाओं में क्यों नजरअंदाज किए जाते हैं लक्षण?
महिलाओं में हार्ट अटैक के लक्षण अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं, क्योंकि उनके लक्षण पुरुषों में नजर आने वाले पैटर्न से काफी अलग होते हैं. सांस न आने, थकान और अपच जैसे लक्षणों को महिलाएं रोजाना का स्ट्रे या घर की जिम्मेदारियों का दबाव समझकर नजरअंदाज कर देती हैं, जिसकी वजह से उन्हें इलाज मिलने में देरी होती है. उदाहरण के लिए, 40 साल से ज्यादा उम्र की महिला को लगातार थकान और छाती या पेट के ऊपरी हिस्से में जलन की दिक्कत हो सकती है. इसे गलती से एसिडिटी समझ लिया जाता है. इसी तरह अगर कोई महिला हाउसवाइफ है और उसके जबड़े में दर्द हो रहा है या चक्कर आ रहे हैं तो इसे थकावट समझकर नजरअंदाज कर दिया जाता है. भारत के शहरी और सेमी-अर्बन इलाकों में ऐसे हालात लगातार बढ़ रहे हैं. जागरूकता कम होने के कारण हार्ट अटैक की शिकार बनने वाली महिलाओं को समय पर इलाज नहीं मिलता है.
इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज
महिलाओं के हार्ट अटैक के कुछ लक्षण एकदम अलग होते हैं, जिन्हें कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. वक्त से पहले मेनोपॉज के कारण होने वाले हार्मोनल चेंज, प्रेग्नेंसी से संबंधित कंडीशंस जैसे हाई ब्लड प्रेशर, प्रेग्नेंसी की वजह से होने वाली डायबिटीज और पीसीओएस जैसी कंडीशन के कारण फ्यूचर में हार्ट प्रॉब्लम्स का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा शहरी इलाकों में ऑफिस और परविार से जूझ रही महिलाओं में मेंटल हेल्थ इश्यूज और क्रॉनिक स्ट्रेस रहता है, जिसकी वजह से भी खतरा बढ़ता है. अगर आपको अचानक थकान, रोजमर्रा के कामकाज के दौरान सांस लेने में दिक्कत, सीने में तकलीफ और नींद पूरी न होने जैसे लक्षण दिखते हैं तो इसे हल्के में न लें. अगर किसी महिला के परिवार में हार्ट डिजीज या लाइफस्टाइल से संबंधित बीमारियों की हिस्ट्री रही है तो उन्हें अपना खास ध्यान रखना चाहिए.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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