आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल हर फील्ड में बढ़ रहा है और मेडिकल फील्ड भी इससे अलग नहीं है. खासकर रेडियोलॉजी यानी एक्स-रे, एमआरआई जैसे टेस्ट की जांच में AI का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि, इसके साथ मरीजों की गोपनीयता और डेटा की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. हाल ही में इंडियन जर्नल ऑफ रेडियोलॉजी एंड इमेजिंग में पब्लिश आर्टिकल में डॉ. सुव्रंकर दत्ता (KCDH, अशोका यूनिवर्सिटी) और डॉ. प्रदोष कुमार सारंगी (AIIMS देवघर) ने इस बारे में विस्तार से बात की. उन्होंने चेतावनी दी कि AI के इस्तेमाल में तेजी तो आ रही है, लेकिन इसकी सही जांच और मूल्यांकन उतनी तेजी से नहीं हो रहा है. उनका कहना है कि अगर AI को रेडियोलॉजी में सही तरीके से इस्तेमाल करना है तो इसके लिए फेज वाइज स्ट्रैटिजी बनाने की जरूरत है.
रेडियोलॉजी में AI कैसे कर रहा है मदद?
रेडियोलॉजी में AI और बड़े लैंग्वेज मॉडल (LLMs) का इस्तेमाल कई तरह से हो रहा है. ये तकनीक डॉक्टरों को रिपोर्ट बनाने, मरीजों की जांच करने और अस्पताल के कामकाज को आसान बनाने में मदद कर रही हैं. उदाहरण के लिए AI की मदद से एक्सरे या एमआरआई की तस्वीरों को जल्दी और सटीक तरीके से समझा जा सकता है. ये तकनीक न सिर्फ समय बचाती हैं, बल्कि डॉक्टरों को बेहतर फैसले लेने में भी मदद करती हैं. हालांकि, इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं, जिनमें सबसे बड़ी चिंता मरीजों के डेटा की सुरक्षा है.
क्या है दिक्कत की वजह?
जब AI मॉडल क्लाउड पर काम करते हैं तो मरीजों की निजी जानकारी जैसे उनकी मेडिकल हिस्ट्री या टेस्ट की रिपोर्ट देश की सीमाओं से बाहर जा सकती है. इससे प्राइवेसी को खतरा हो सकता है. भारत का डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट 2023 साफ कहता है कि मरीज की सहमति के बिना उनका संवेदनशील डेटा विदेश नहीं भेजा जा सकता. ऐसे में डॉ. दत्ता और डॉ. सारंगी का सुझाव है कि AI मॉडल को स्थानीय स्तर पर यानी अस्पताल के अंदर ही बनाया और चलाया जाए. इससे डेटा सुरक्षित रहेगा और कानूनी नियमों का पालन भी हो सकेगा.
3-स्टेप रोडमैप हो सकता है कारगर
डॉक्टरों ने AI को सुरक्षित और प्रभावी ढंग से इस्तेमाल करने के लिए 3-स्टेप रोडमैप बनाने की सलाह दी है. आइए इसके बारे में जानते हैं.
- इस्तेमाल से पहले (Pre-deployment): AI सिस्टम को इस्तेमाल करने से पहले उसकी पूरी तरह जांच होनी चाहिए. इसमें तकनीकी टेस्ट के साथ-साथ सुरक्षा से जुड़े सभी पहलुओं की जांच शामिल है. यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि AI सिस्टम सही और सुरक्षित तरीके से काम कर रहा है.
- इस्तेमाल के दौरान (Deployment): जब AI सिस्टम का इस्तेमाल अस्पताल में शुरू हो जाए तो इसे नियंत्रित तरीके से लागू करना चाहिए. इसका मतलब है कि शुरुआत में इसे छोटे स्तर पर आजमाया जाए, ताकि कोई गलती हो तो उसे जल्दी पकड़ा जा सके.
- इस्तेमाल के बाद (Post-deployment): AI सिस्टम को लगातार मॉनिटर करना जरूरी है. इसके प्रदर्शन की जांच होनी चाहिए और अगर कोई कमी दिखे तो उसे तुरंत ठीक किया जाना चाहिए.
AI और अस्पताल के सिस्टम का तालमेल
डॉक्टरों का कहना है कि AI को अस्पताल के मौजूदा सिस्टम जैसे इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड (EHR) और रिपोर्टिंग सिस्टम के साथ जोड़ना बहुत जरूरी है. अगर AI को अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर चलाना पड़ा तो डॉक्टरों का समय और मेहनत दोनों बढ़ सकते हैं. इसके अलावा एजेंटिक वर्कफ्लो नाम की नई तकनीक से AI खुद कई काम कर सकता है. जैसे वह गाइडलाइंस ढूंढ सकता है, फैसले लेने में मदद कर सकता है और मरीजों के लिए फॉलो-अप शेड्यूल बना सकता है. शुरुआती टेस्ट में यह तरीका काफी तेज और उपयोगी साबित हुआ है. हालांकि, इसमें एक दिक्कत है. अगर AI किसी स्टेप में गलती करता है तो वह गलती आगे के स्टेप्स में ज्यादा बढ़ सकती है. ऐसे में AI टूल्स की सख्त जांच और विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी बहुत जरूरी है.
AI का काम मदद करना, जगह लेना नहीं
डॉ. दत्ता और डॉ. सारंगी ने साफ किया है कि AI का मकसद डॉक्टरों की जगह लेना नहीं है. इसका काम डॉक्टरों की मदद करना, उनके काम को आसान बनाना और तेज करना है. आखिरी फैसला हमेशा रेडियोलॉजिस्ट को ही लेना चाहिए. AI बस एक टूल है, जो डॉक्टरों को सही जानकारी देने और उनके काम को बेहतर बनाने में मदद करता है.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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