जमाना भले ही 21वीं सदी में आ चुका है, लेकिन ‘बच्चा नहीं हो रहा’ कहना आज भी शर्म की बात मानी जाती है. आज भी इस पर खुलकर बात नहीं होती है, न घर में और न ही समाज में. हालांकि, हकीकत यह है कि महिलाओं में फर्टिलिटी यानी गर्भधारण करने की क्षमता में तेजी से गिरावट आ रही है और इसके पीछे कई वजह हैं.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार, दुनिया भर में 18.6 करोड़ लोग किसी न किसी रूप में बांझपन से जूझ रहे हैं. भारत में भी प्राइमरी इंफर्टिलिटी की दर 3.9% से लेकर 16.8% तक है. वहीं, कुछ राज्यों जैसे कश्मीर, आंध्र प्रदेश और केरल में यह दर और भी ज्यादा है. एक ओर टेक्नोलॉजी से प्रजनन के विकल्प बढ़े हैं, लेकिन लाइफस्टाइल और मेंटल हेल्थ जैसे कारणों से महिलाओं की नैचुरल फर्टिलिटी एज प्रभावित हो रही है.

देर से शादी और मां बनने का फैसला टालना

आज की महिलाएं करियर, आत्मनिर्भरता और जीवन के दूसरे टारगेट्स को प्रायॉरिटी दे रही हैं, जो बिल्कुल सही है. हालांकि, सच्चाई यह है कि 35 की उम्र के बाद महिलाओं की अंडाणु क्वालिटी और संख्या में गिरावट आने लगती है. देहरादून स्थित इंदिरा आईवीएफ की क्लीनिकल डायरेक्टर डॉ. रीमा सिरकार के मुताबिक,  35 साल की उम्र के बाद प्रेग्नेंसी की संभावना 25 पर्सेंट तक कम हो जाती है. वहीं, 40 की उम्र के बाद यह सिर्फ 5-10 पर्सेंट ही रह जाती है.

हार्मोनल डिसबैलेंस और बदलती लाइफस्टाइल

पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, थायरॉइड, अनियमित पीरियड्स और मोटापा जैसी कंडीशन फर्टिलिटी को गहराई से प्रभावित करती हैं. आज की भागदौड़ भरी दिनचर्या, जंक फूड, नींद की कमी और तनाव इन दिक्कतों को बढ़ावा दे रहे हैं. बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) अगर 25 से ऊपर या 19 से नीचे हो तो प्रेग्नेंसी में देरी की आशंका बढ़ जाती है.

तनाव और मानसिक दबाव का असर

आईवीएफ से गुजरने वाली महिलाओं में तनाव, डिप्रेशन और नींद से जुड़ी दिक्कतें कॉमन हैं. एक स्टडी में पाया गया कि जिन महिलाओं में रेजिलिएंस यानी मेंटल स्ट्रेंथ ज्यादा थी, उन्हें IVF के पहले प्रयास में कम तनाव और बेहतर मानसिक स्थिति का अनुभव हुआ. यदि पहला प्रयास असफल हो जाए तो तनाव और उदासी ज्यादा बढ़ जाती है.

सामाजिक अपेक्षाएं और अकेलापन

‘बच्चा कब होगा?’ यह सवाल आज भी हर शादीशुदा महिला को झेलना पड़ता है. समाज का यह दबाव और परिवार की चुप्पी महिलाओं को मानसिक रूप से बेहद थका देती है. एक स्टडी के अनुसार, जिन महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक सपोर्ट मिला, उनमें डिप्रेशन की आशंका 25 पर्सेंट तक कम हो गई.

मिथक और गलतफहमियां

कई लोग आज भी मानते हैं कि अगर एक बच्चा हो चुका है तो दूसरा अपने आप हो जाएगा, लेकिन सेकेंडरी इंफर्टिलिटी भी एक बड़ा मसला है. साथ ही, यह सोचना कि इंफर्टिलिटी सिर्फ महिलाओं की समस्या है बेहद खतरनाक मिथ है. आंकड़े बताते हैं कि 30–50% मामलों में पुरुषों की भी भूमिका होती है.

महिलाओं को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

हर महिला की फर्टिलिटी जर्नी अलग होती है. किसी के लिए यह राह आसान होती है तो किसी के लिए भावनात्मक और शारीरिक चुनौतियों से भरी. हालांकि, इन बातों को वक्त रहते जानना और समझना फायदेमंद हो सकता है.

30 की उम्र के बाद फर्टिलिटी पर निगरानी रखना समझदारी भरा कदम हो सकता है.
यदि पीरियड्स अनियमित हैं या थायरॉइड, पीसीओएस जैसी दिक्कतों हैं तो डॉक्टर से सलाह लेने में देरी न करें.
हेल्दी डाइट, रेगुलर नींद और तनाव से बचाव जैसी बेसिक बातें भी शरीर पर बड़ा असर डालती हैं.
आईवीएफ या एग फ्रीजिंग जैसे ऑप्शंस के बारे में समय रहते जानकारी लेना कोई हड़बड़ी नहीं, सिर्फ समझ है.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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