मॉर्डन लाइफस्टाइल और टेक्नॉलोजी ने हमारी जिंदगी को अपने गिरफ्त में कर लिया है. सोते-जागते खाते-पीते हम फोन, लैपटॉप का इस्तेमाल करते है. अगर थोड़ी देर के लिए भी इससे अलग हो तो जिंदगी अधूरी सी लगती है. लेकिन क्या आपको पता है इसके कारण हमारी रोजमर्रा की जिंदगी काफी ज्यादा प्रभावित होती है. इसके कारण कई सारी स्वास्थ्य समस्याएं शुरू हो रही है.
कई रिसर्च तो यह भी कहते हैं कि हद से ज्यादा स्क्रीन टाइम, स्ट्रेस, खराब लाइफस्टाइल और खानपान के कारण युवाओं में कैंसर का जोखिम लगातार बढ़ रहा है. एक वक्त था जब कैंसर को बूढ़े और अधिक उम्र वाले लोगों की बीमारी कहा जाता था. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह बीमारी बदलते दिन के साथ अधिक संख्या में युवाओं को अपना शिकार बना रही है. इसके पीछे का कारण है हद से ज्यादा स्क्रीन टाइम और स्ट्रेस.
स्क्रीन टाइम और कैंसर के बीच का कनेक्शन
आज के डिजिटल युग में युवाओं में स्क्रीन टाइम का बहुत ज़्यादा होना कैंसर सहित स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है. लंबे समय तक नीली रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन में बाधा डाल सकती है और स्तन और प्रोस्टेट कैंसर जैसे कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकती है. स्क्रीन के ज्यादा इस्तेमाल से शरीर में भी कई तरह के हार्मोनल चेंजेज होते हैं. जिसके कारण मोटापा और दिल से जुड़ी बीमारियों का कारण बन सकता है. जिससे कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है. स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल के कारण इम्युनिटी भी कमजोर होती है. इसलिए व्यक्ति को लंबे समय में कैंसर होने का अधिक खतरा होता है.
कैंसर के विकास में स्ट्रेस का रोल
इन दिनों स्ट्रेस हमारी जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा हो गया है. यह हमारी मॉर्डन लाइफस्टाइल का एक अभिन्न अंग है. जिसे कैंसर के रोगजनन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला माना जाता है. पुराना तनाव हार्मोनल और बायोलॉजिकल रिएक्शन की सकता है जो प्रतिरक्षा प्रणाली और डीएनए मरम्मत प्रणालियों को ख़राब करता है. शरीर कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन का उत्पादन करता है. जो कैंसर कोशिकाओं को पहचानने और मारने की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को कमज़ोर करता है. यह बदले में, कैंसर कोशिकाओं को पता लगाने से बचने और समय के साथ गुणा करने की अनुमति दे सकता है.
पुराना तनाव सूजन को बढ़ावा देता है. जो एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा देता है जिसमें कैंसर कोशिकाएं बढ़ सकती हैं और फैल सकती हैं. यह खासकर युवा लोगों के लिए सच है, जो स्कूल, सामाजिक मेलजोल और आर्थिक चिंताओं के दबाव में हैं. तनाव लाइफस्टाइल के व्यवहार को भी प्रभावित करता है. जिसमें धूम्रपान, अधिक खाना और अत्यधिक शराब का सेवन जैसे अस्वास्थ्यकर व्यवहार शामिल हैं. ये सभी कैंसर के जोखिम कारक हैं. तनाव खराब आहार संबंधी आदतों को जन्म दे सकता है. जिसमें प्रोसेस्ड फूड और चीनी का अधिक सेवन शामिल है, जो मोटापे और कैंसर के अधिक जोखिम में योगदान देता है.
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स्क्रीन टाइम, तनाव और कैंसर के जोखिम के बीच संबंध
इंडिया टीवी के इंग्लिश पॉर्टल में छपी खबर के मुताबिक डॉ. मुकेश पाटेकर, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुड़गांव के अनुसार, स्क्रीन टाइम और तनाव के कारण युवा पीढ़ी के साथ स्वास्थ्य जोखिमों की खोज में एक बहुत ही जटिल चुनौती है. यह न केवल शारीरिक परिश्रम को बढ़ाता है, बल्कि तनाव को भी बढ़ाता है, खासकर सोशल मीडिया, काम और मनोरंजन के अत्यधिक दबाव के कारण आजकल युवाओं में तेजी से स्ट्रेस बढ़ रहा है.
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