साल 2016 को हुए रिसर्च के मुताबिक इंसान के दिमाग 99.5 प्रतिशत मस्तिक है और बाकी में प्लास्टिक है. शोधकर्ताओं ने 12 लोगों के मस्तिष्क में स्वस्थ मस्तिष्क की तुलना में तीन से पांच गुना अधिक प्लास्टिक के टुकड़े भी पाए. जिन्हें मृत्यु से पहले मनोभ्रंश का इलाज चला था. ये टुकड़े, जो आंखों से दिखाई देने से भी छोटे थे. मस्तिष्क की धमनियों और नसों की दीवारों के साथ-साथ मस्तिष्क की प्रतिरक्षा कोशिकाओं में भी केंद्रित थे.
हालांकि, फिलाहाल यह नहीं कहा जा सकता है कि प्लास्टिक मनुष्यों में भी इसी तरह की रुकावट पैदा कर सकता है या नहीं. रिसर्च के मुताबिक फेफड़े, बोन मैरो आदि सहित शरीर के लगभग हर हिस्से में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है. ब्लड सर्कुलेश में माइक्रोप्लास्टिक कोशिकाओं में रुकावट पैदा करके दिमाग के नसों को ब्लॉक कर देता है.
माइक्रोप्लास्टिक क्या है?
यूरोपीय केमिकल एजेंसी के अनुसार, माइक्रोप्लास्टिक्स 5 मिमी से कम लंबाई के किसी भी तरह के प्लास्टिक के टुकड़े हैं. वे ब्यूटी प्रोडक्ट,कपड़े, खाद्य पैकेजिंग और इंडस्ट्रियल प्रोसेस सहित अनेक तरीकों से नेचुरल इकोसिस्टम में प्रवेश करके प्रदूषण और बीमारी का कारण बनते हैं.
माइक्रोप्लास्टिक्स के दो टाइप पहचाने गए हैं. प्राइमरी माइक्रोप्लास्टिक्स में कोई भी प्लास्टिक के टुकड़े या कण शामिल होते हैं जो पर्यावरण में प्रवेश करने से पहले ही 5.0 मिमी या उससे कम आकार के होते हैं. इनमें कपड़ों के माइक्रोफाइबर, माइक्रोबीड्स और प्लास्टिक पैलेट्स (जिन्हें नर्डल्स भी कहा जाता है शामिल हैं. पर्यावरण में प्रवेश करने के बाद नेचुरल गैदरिंग के माध्यम से बड़े प्लास्टिक उत्पादों के टूटने से दूसरे माइक्रोप्लास्टिक्स उत्पन्न होते हैं. सेकेंडरी माइक्रोप्लास्टिक्स के सोर्सेज में पानी और सोडा की बोतलें, मछली पकड़ने के जाल, प्लास्टिक बैग, माइक्रोवेव कंटेनर, टी बैग और टायर शामिल हैं.
कैसे नुकसान करते हैं माइक्रोप्लास्टिक:
प्लास्टिक से हमारे शरीर को कई नुकसान होते हैं , रेड ब्लड सेल्स के बहरी हिस्से से चिपक जाते हैं और ऑक्सीजन फ्लो को पूरी तरह तोड़ सकते हैं, जिससे शरीर के टिश्यू में ऑक्सीजन में कमी आ सकती है. इसके अलावा इससे इम्यून सिस्टम पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. यह धीरे-धीरे आपके शरीर को कमजोर बना सकता है और आपकी प्रोडक्टिविटी प्रभावित होती है. यह गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों के लिए भी हानिकारक हो सकता है. इसके अलावा यह फेफड़ों, हार्ट, ब्रेन, डाइजेस्टिव सिस्टम को प्रभावित करता है. माइक्रो और नेनो प्लास्टिक मानव शरीर की संरचना पर असर डाल सकते हैं.
माइक्रो प्लास्टिक से जुड़े हुए रिसर्च क्या कहते हैं:
जनरल एनवायरनमेंट इंटरनेशनल में छपी रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों के बताया कि 80 प्रतिशत व्यक्तियों के खून में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है. स्टडी में एक और बात सामने आई है कि मानव शरीर में माइक्रोप्लास्टिक घूम सकता है और शरीर के कई महत्वपूर्ण हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकता है. जिसका सीधा असर दिमाग पर पड़ता है. साइंटिस्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि अगर स्थिति यही रहती है तो यह ह्यूमन बॉडी सेल्स को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव के कारण शख्स की मौत कम उम्र में भी हो सकती है.
इस शोध में 22 अलग-अलग लोगों के खून के नमूने लिए गए थे और इनमें से अधिकतर लोगों के खून में पीईटी प्लास्टिक, जो आमतौर पर पीने की बोतलों में पाया जाता है. इसमें एक तिहाई मात्रा में पॉलीस्टाइनिन होता है, जिसका प्रयोग भोजन और अन्य उत्पादों की पैकेजिंग के लिए किया जाता है. इसके अलावा इसमें पॉलीइथाइलीन था, जिसका इस्तेमाल प्लास्टिक बैग बनाने में किया जाता है. माइक्रोप्लास्टिक का आकार 0.0007mm होता है, जो शरीर में आसानी से आवागमन कर सकते हैं.
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इसके अलावा ऑस्ट्रिया, अमेरिका, हंगरी और नीदरलैंड के रिसर्च की एक टीम द्वारा किए गए एक नए स्टडी में पाया गया है कि नैनोप्लास्टिक्स (एमएनपी) खाने के कुछ घंटों बाद मस्तिष्क तक पहुंच सकते हैं , यह खतरनाक है क्योंकि यह सूजन, नर्वस सिस्टम में डिफेक्ट, या अल्जाइमर या पार्किंसंस जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के जोखिम को बढ़ा सकता है. और मेन्टस हेल्थ को धीरे धीरे खराब कर सकता है.
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