<p style="text-align: justify;">मज़हब का मामला बहस का नहीं अमल का है. हिंदी में कहें तो धर्म चर्चा नहीं बल्कि कर्म क्षेत्र है. जो कर्म करते हैं वह धर्म पर बहस नहीं करते और उनके अमल से उनके कर्म से धर्म को देख समझ और पढ़ा जा सकता है. हमारे समय की त्रासदी यह है कि धर्म जहां होना चाहिए था यानि हृदय में, वहां से निकल कर सोशल मीडिया चैनल आदि पर आ गया है. कोई भी किसी भी बात पर उल्टा सीधा बयान देकर प्रसिद्धि पाने में लग जाता है. मीडिया भी अकसर टीआरपी की दौड़ में इन को अपने यहां बिठा कर सर पर उठा देती है. </p>
<p style="text-align: justify;">अब यह जो शमी को लेकर एक साहब का नाम आ रहा जिनका नाम यहां लेना इस लिए ज़रूरी नहीं है कि इस से उनका ही नाम होगा. वैसे इन साहब ने न सिर्फ़ धर्म से अज्ञानता दर्शाई है बल्कि उन्हें शायद इस खेल की भी जिसे क्रिकेट कहते हैं जानकारी नहीं है कि यह खेल खुले आसमान में हज़ारों की भीड़ के बीच खेला जाता है. </p>
<p style="text-align: justify;">कई धर्म गुरु भी क़ुरआन और हदीस के हवाले से यह बताते हैं कि कई हालात में आप को रोज़े रखने से छूट मिलती है. जिस में बीमार, बुज़ुर्ग, मुसाफ़िर, माहवारी से गुज़र रहीं महिलाएं तथा गर्भवती महिलाएं आदि भी शामिल हैं. ऐसे में मुहम्मद शमी जो अपने देश से दूर दुबई में चैंपियन ट्रॉफ़ी के लिए खेल रहे हों तो उन पर तो सीधे सीधे यह छूट आही जाती है कि वह सफ़र में हैं. इसके अलावा वह एक ऐसे खेल से जुड़े हैं जहां उनके राष्ट्र का दारोमदार उन के खेल में होने वाले प्रदर्शन पर टिका है. क्रिकेट कोई लूडो या कैरम नहीं है कि एक जगह बैठ कर आप खेल लेते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;">इस में लगातार पचास ओवर तक की भागदौड़ है. इस भाग दौड़ में आप के अपने ओवर भी शामिल हैं जिस में आप को लंबा रन अप लेकर आना पड़ता है. पसीना निकलता है और अगर आप रोज़े से हैं तो प्यास भी आप को ज़्यादा लगेगी. वैसे भी अरब की सरज़मीन ज़्यादा ही ख़ून पसीना निकालती है. ऐसे में शमी ने अगर रोज़ा नहीं रखा तो इस में उन्हों ने अपने धर्म का अपमान नहीं किया है बल्कि धर्म ने उन्हें जो इस संबंध में छूट दी है उसका ही सहारा लिया है. जब मुहम्मद शमी अपने देश भारत वापस आयेंगे अपने घर तो वह यह छूट गए रोज़े (क़ज़ा रोज़े) रख सकते हैं और अगर वह किसी कारण यह रोज़े रखने की स्थिति में न हों तो वह इसका कुफ़्फ़रा ग़रीबों को खाना खिला कर भी कर सकते हैं. ऐसा हम ने कई धर्म गुरुओं से सुना जाना समझा और पढ़ा भी है. </p>
<p style="text-align: justify;">सवाल यह है कि शमी के मैच के दौरान एनर्जी ड्रिंक लेने पर सवाल उठाने वाले को क्या यह मालूम नहीं होगा जो हमारे जैसे अज्ञानता वाले को भी पता है जिस ने धर्म में कोई डिग्री नहीं ली है. इसके बावजूद अगर वह साहब इस पर सवाल उठाते हैं तो इसका यही मतलब हो सकता है कि या तो वह अपनी प्रसिद्धि के लिए ऐसा कर रहे हैं या उन लोगों में शामिल हैं जो पहले भी और हाल में भी भारतीय क्रिकेटरों पर सवाल उठा कर टीम का आत्मबल कमज़ोर करने की कोशिश करते रहे हैं. </p>
<p style="text-align: justify;">अच्छी बात तो यह है कि मुहम्मद शमी को बहुत से धार्मिक गुरुओं का ज़बरदस्त साथ मिला है और मुस्लिम बुद्धिजीवी भी उनके समर्थन में आकर उनका हौसला बढ़ा रहे हैं. जावेद अख्तर ने तो यह कह कर कि मुहम्मद शमी कट्टर मूर्खों की बात पर ध्यान न दें और भारतीय टीम में उनका होना हौसला बढ़ाता है उनकी जम कर सराहना की है. </p>
<p style="text-align: justify;">मुहम्मद शमी एक मुद्दत बाद भारतीय टीम में लौटे हैं और भारतीय टीम के महत्वपूर्ण गेंदबाज़ होने के नाते उनकी बड़ी ज़िम्मेदारी भी है. ऐसे खिलाड़ी को इस तरह की बातों से दबाव में लाना न तो मुहम्मद शमी के हक़ में है और न ही भारतीय क्रिकेट टीम के हक़ में. ऐसा करने वाला शायद चाहता नहीं होगा कि भारत की जीत में मुहम्मद शमी अपना भरपूर योगदान दें.</p>
<p style="text-align: justify;">अगर शमी रोज़े की हालत में खेल नहीं सकते हैं और उनका शरीर इस की इजाज़त नहीं देता है तो सफ़र में होने के कारण भी वह रोज़ा छोड़ सकते हैं. इस लिए इस पर इतना हाय तौबा मचाना जायज़ नहीं लगता. वह भी जबकि क़ुरआन शरीफ़ के सूरा-ए-बक़रा में आया है कि "ला इक्राहा फ़िद्दीन" अर्थात दीन में कोई ज़बरदस्ती नहीं है. यह मामला मुहम्मद शमी और उनके अल्लाह के बीच का है. वह अल्लाह जो रहमान (दया करने वाला) और रहीम (दयालु) है. रब्बुल आलमीन (तमाम दुनियाओं का पालनहार, ईश्वर, रब, दाता है) है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.] </strong></p>
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