Viruses Change Themselves with Weather: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास के एक नए रिसर्च के मुताबिक, वायरस मौसम, समय और अपने परिवेश में आने वाले बदलावों के हिसाब से एक निश्चित पैटर्न में अपने अंदर परिवर्तन लाते हैं. रिसर्चर ने 20 साल से ज्यादा समय तक अमेरिका की झीलों से लिए गए 465 नमूनों का रिसर्च किया और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर 13 लाख वायरस जीनोम रीकंस्ट्रक्ट किए, और उनसे प्राप्त जानकारी के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला.

कैसे की गई स्टडी?

आईआईटी मद्रास, यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन-मेडिसन और टेक्सास यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर एक अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च किया, जिसमें ताजे पानी की झीलों में वायरस पर फोकस किया गया. इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने 20 साल से ज्यादा की अवधि में अमेरिका की विस्कॉन्सिन की झीलों से एकत्र 465 नमूनों का रिसर्च किया.

यह पृथ्वी पर प्राकृतिक परिवेश में मौजूद वायरस पर सबसे लंबा डीएनए-आधारित रिसर्च है. उन्होंने मेटाजेनोमिक्स नाम की तकनीक से झीलों के सैंपल में मौजूद सभी डीएनए का विश्लेषण किया और मशीन लर्निंग की मदद से 13 लाख वायरस जीनोम रिकंस्ट्रक्ट किए.

‘वायरस मौसम के साथ बदलते हैं’

इस रिसर्च से रिसर्चर को यह जानने में मदद मिली कि वायरस मौसम के साथ, दशकों के लंबे अंतराल में और पर्यावरण में होने वाले बदलावों के अनुरूप खुद को कैसे बदलते हैं.नेचर माइक्रोबायोलॉजी जर्नल में प्रकाशित रिसर्चपत्र में रिसर्चर ने बताया, “वायरस मौसम के साथ बदलते हैं. इनमें से कई साल दर साल फिर से सामने आते हैं. कई वायरस हर साल एक  निश्चित समय पर फिर से दिखाई देते हैं, जिससे उनके बारे में भविष्यवाणी करना संभव है.”

उन्होंने कहा, “वायरस अपने होस्ट से जीन ‘चुरा’ सकते हैं और उन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं. वायरस क्रमिक विकास की प्रक्रिया से गुजरते हैं और समय के साथ प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया में कुछ जीन ज्यादा प्रभावी बनकर उभरते हैं.”

रिसर्चर ने 578 ऐसे वायरल जीन का लगाया पता

रिसर्च में पता चला कि वायरस सिर्फ बीमारी ही नहीं फैलाते, बल्कि प्रकृति के लिए भी फायदेमंद हैं. वे दूसरे जीवों के लिए भी मददगार होते हैं. रिसर्चर ने 578 ऐसे वायरल जीन का पता लगाया जो फोटोसिंथेसिस (पौधों द्वारा भोजन बनाने की प्रक्रिया) और मीथेन के उपयोग जैसे महत्वपूर्ण कामों में मदद करते हैं. ये वायरस प्राकृतिक प्रणालियों को स्वस्थ और स्थिर रखने में योगदान देते हैं.

आईआईटी मद्रास में विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. कार्तिक अनंतरामन ने बताया, “कोविड-19 महामारी ने हमें दिखाया कि वायरस को ट्रैक करना कितना जरूरी है. यह समझना महत्वपूर्ण है कि वायरस कैसे पैदा होते हैं, कैसे बदलते हैं और अपने पर्यावरण के साथ कैसे जुड़ते हैं. यह न सिर्फ महामारी से निपटने के लिए जरूरी है, बल्कि यह जानने के लिए भी कि वायरस प्रकृति में कितनी अहम भूमिका निभाते हैं. हालांकि, प्राकृतिक परिवेश में वायरस पर लंबे समय के रिसर्च बहुत कम हुए हैं.”

इसके अलावा, ताजे पानी की झीलों में वायरस का रिसर्च करने से हम पानी के संसाधनों, प्राकृतिक पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर ढंग से प्रबंधित कर सकते हैं. यह रिसर्च नए तरीके सुझाता है, जैसे प्रदूषित झीलों को ठीक करने के लिए वायरस का उपयोग करके पर्यावरण का संतुलन बहाल करना.

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