मेनोपॉज एक बायोलॉजिकल चेंज है, जब महिलाओं का मेंस्ट्रुअल साइकिल एंड हो जाता है. इस फेज में महिलाओं को अक्सर कई तरह के फिजिकल और साइकोलॉजिकल चेंजेस एक्सपीरियंस होते हैं, जो कभी-कभी काफी डिस्टर्बिंग हो सकते हैं. प्रीमैच्योर मेनोपॉज या समय से पहले मेनोपॉज, महिलाओं मे 40 साल की उम्र से पहले मेनोपॉज का स्टार्ट होना है. ये महिलाओं में कई बीमारियों और मृत्यु दर के बढ़े हुए रिस्क से जुड़ा है. प्रीमैच्योर मेनोपॉज प्राइमरी ओवेरियन इनसफिशिएंसी या सर्जिकल प्रोसीजर्स जैसे हिस्टेरेक्टॉमी की वजह से हो सकता है.
इंडियन मेनोपॉज सोसायटी की हालिया रिपोर्ट के आंकड़े भी इसी ओर इशारा करते हैं कि भारत में प्रीमैच्योर मेनोपॉज की प्रीवैलेंस में तेजी से इजाफा हुआ है, जो एक सिग्निफिकेंट पब्लिक हेल्थ कंसर्न है. रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं में प्रीमेच्योर मेनोपॉज की समस्या 100 गुना तक बढ़ गई है. लगभग 10 साल पहले तक देश में 10 हजार महिलाओं में से किसी एक महिला में यह समस्या मिलती थी, लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़कर 100 महिलाओं में से एक हो गया है. इस लेख में हम समय से पहले मेनोपॉज के फैक्टर्स, समस्याओं और उपायों पर चर्चा करेंगे.
रायपुर में पहलाजानी टेस्ट ट्यूब बेबी एवं आईवीएफ सेंटर की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नीरज पहलाजानी के मुताबिक, आमतौर पर महिलाओं को 45 से 55 की उम्र के बीच मेनोपॉज होता है, लेकिन करीब 1% महिलाओं को 40 साल की उम्र से पहले ही मेनोपॉज का सामना करना पड़ता है. इसे प्रीमैच्योर मेनोपॉज या प्रीमैच्योर ओवेरियन इंसफीसिएंसी कहते हैं. इससे दिल की बीमारी, हडि्डयों को कमजोर होना, डिप्रेशन जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है. इसके अलावा निम्नलिखित समस्याएं भी हो सकती है.
प्रीमेच्योर मेनोपॉज में ये हो सकती हैं ये समस्याएं
- इनफर्टिलिटी: प्रीमैच्योर मेनोपॉज में आपको कंसीव करने में दिक्कत आ सकती है. अनियमित पीरियड्स और ओवरीज़ के ठीक से काम न करने की वजह से इंफर्टिलिटी हो सकती है.
- हार्मोनल बदलाव: प्रीमैच्योर मेनोपॉज होने पर एस्ट्रोजेन और दूसरे रिप्रोडक्टिव हार्मोन्स का लेवल कम हो जाता है. इसकी वजह से मूड स्विंग्स, हॉट फ्लैश, वजाइनल ड्राइनेस और शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा में कमी जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं.
- बोन हेल्थ: आपकी हड्डियों को मजबूत रखने के लिए एस्ट्रोजेन हार्मोन बहुत जरूरी होता है, लेकिन प्रीमैच्योर मेनोपॉज के कारण एस्ट्रोजेन का लेवल कम होने लगता है. इससे हड्डियों के कमजोर होने और हड्डी टूटने का खतरा बढ़ जाता है.
- हार्ट हेल्थ: यही नहीं, एस्ट्रोजेन हार्मोन ब्लड वेसल्स को हेल्दी रखने और कोलेस्ट्रॉल लेवल को कंट्रोल करने में अहम रोल निभाता है. हालांकि, प्रीमैच्योर मेनोपॉज की वजह से एस्ट्रोजेन का लेवल कम होने पर दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है.
ऐसे में जरूरी हो जाता है कि जो महिलाएं प्रीमेच्योर मेनोपॉज से गुजर रही हैं. वो डॉक्टर से संपर्क करें और इसके लक्षणों को मैनेज करने, सेहत से जुड़ी किसी परेशानी और फर्टिलिटी से जुड़ी बातों के बारे में बात करें. हार्मोन थेरेपी और लाइफस्टाइल में बदलाव करके इसके लक्षणों को कम करने में काफी मदद मिल सकती है.
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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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