कैंसर का इलाज अब सिर्फ कीमोथेरेपी या रेडिएशन तक सीमित नहीं रहेगा. दरअसल वैज्ञानिकों ने अब ऐसे बैक्टीरिया तैयार किए हैं जो शरीर में खुद ट्यूमर को ढूंढ सकते हैं. यह बैक्टीरिया ट्यूमर तक पहुंच कर दवा छोड़ते हैं और काम पूरा होने के बाद बिना कोई दाग या निशान छोड़े खुद-ब-खुद खत्म हो जाते हैं. यह तकनीक खासतौर पर उन ट्यूमर के लिए असरदार मानी जा रही है, जिन पर मौजूदा इलाज काम नहीं करता है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि बैक्टीरिया खुद कैंसर का ट्यूमर ढूंढ कर कैसे इलाज करेंगे और कैसे इससे इंसानों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा.
ट्यूमर को पहचान कर बैक्टीरिया कैसे करेंगे इलाज?
ऑस्ट्रेलिया के साउथ ऑस्ट्रेलियन हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कैंसर के इलाज की इस दिशा में अब तक 70 से ज्यादा क्लिनिकल ट्रायल किए हैं. वहीं इस रिसर्च पर अब तक 500 से ज्यादा रिसर्च पेपर भी आ चुके हैं. कैंसर के इलाज को लेकर ट्रायल कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर बैक्टीरिया को दवा से लेस कर दिया जाए तो वह ट्यूमर के अंदर जाकर उसे नष्ट कर सकते हैं. इसके लिए बैक्टीरिया के व्यवहार को जेनेटिक रूप से कंट्रोल किया जाता है. वैज्ञानिक ऐसे बैक्टीरिया बना रहे हैं जो ट्यूमर के आसपास के सिग्नल को पहचान कर एक्टिव हो जाते हैं और इम्यून सिस्टम को कैंसर के खिलाफ मजबूत बनाते हैं.
दही और सिरके में पनपने वाले बैक्टीरिया से भी इलाज की तैयारी
वैज्ञानिकों के अनुसार पाचन में मदद करने वाले और इम्यूनिटी बढ़ाने वाले प्रोबायोटिक बैक्टीरिया जैसे ई. कोली निसले, लैक्टोबैसिलस और बिफिडोबैक्टिरियम को भी कैंसर इलाज के लिए तैयार किया जा रहा है. यह बैक्टीरिया ट्यूमर के आसपास के माहौल को बदल सकते हैं या फिर कैंसर कोशिकाओं को खत्म करने वाले अणु बना सकते हैं. वैज्ञानिकों का दवा है कि आने वाले वर्षों में बैक्टीरिया आधारित कैंसर इलाज का एक आम तरीका बन सकता है. इस रिसर्च में शामिल रिसर्चर्स के अनुसार बैक्टीरिया की खासियत है कि वह सीधे ठोस ट्यूमर तक पहुंच सकते हैं और हेल्दी उत्तकों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. इन्हें टारगेटेड थेरेपी में कूरियर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
बैक्टीरिया इंसानों को कैसे नहीं पहुंचाएंगे नुकसान?
वैज्ञानिकों के अनुसार कुछ बैक्टीरिया सिर्फ ट्यूमर में जाकर पनपते हैं और हेल्दी सेल्स को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. यह डेड सेल्स से पोषण लेते हैं और कम ऑक्सीजन वाले एनवायरमेंट में भी जिंदा रह सकते हैं. इस वजह से यह शरीर के लिए सुरक्षित माने जा रहे हैं. हालांकि कुछ मरीजों में इन्फेक्शन या सूजन जैसे हल्के रिएक्शन हो सकते हैं, जिस पर वैज्ञानिक लगातार रिसर्च कर रहे हैं.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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