डिजिटल डेस्क, गांधीनगर। गुजरात सरकार ने स्थानीय निकायों में ओबीसी के प्रतिनिधित्व के मुद्दे का अध्ययन करने के लिए सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश के. एस. झावेरी की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया है। स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण के लिए आयोग जल्द ही राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
आयोग की सिफारिशों और रिपोर्ट को लागू करने के राज्य के फैसले से पहले ही, ओबीसी आरक्षण का श्रेय लेने की होड़ दो प्रमुख दलों – भाजपा और कांग्रेस के बीच शुरू हो गई है।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ने स्वीकार किया है कि राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी 52 प्रतिशत है। कुल 146 उपजातियां ओबीसी श्रेणी में आती हैं। कांग्रेस स्थानीय निकायों, पंचायतों और नगर पालिकाओं में ओबीसी के लिए कम से कम 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग कर रही है।
भाजपा ने सुझाव दिया है कि जनसंख्या को देखते हुए आयोग को उचित आरक्षण की सिफारिश करनी चाहिए। साथ ही, पार्टी ने आयोग को सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी की याद दिलाई, जिसमें कहा गया था कि एससी/एसटी/ओबीसी के लिए आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए।
राजनीतिक दलों में घमासान शुरू हो चुका है। भाजपा प्रवक्ता भरत डांगर ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने कभी किसी पिछड़े समुदाय के उत्थान और आरक्षण की परवाह नहीं की। उनके शासन में कालेलकर आयोग की रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में चली गई। इसके खिलाफ जनसंघ समर्थित स्वर्गीय बाबूभाई पटेल सरकार ने 1977 में बख्शी आयोग की सिफारिश को स्वीकार कर लिया।
भाजपा के इस दावे पर पलटवार करते हुए गुजरात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अमित चावड़ा ने आरोप लगाया है कि अगर राज्य ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार समय पर ओबीसी आयोग का गठन किया होता तो यह स्थिति पैदा नहीं होती और राज्य चुनाव आयोग स्थानीय निकायों में 10 प्रतिशत आरक्षण को रद्द नहीं करता। जुलाई से अब तक चावड़ा ने जागरूकता पैदा करने के लिए कई ओबीसी समुदाय की बैठकों को संबोधित किया है।
गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री भरतसिंह सोलंकी ने तर्क दिया कि कांग्रेस एक समुदाय के लिए आरक्षण और स्थानीय निकायों में उनके प्रतिनिधित्व की मांग कर रही है, इससे सभी दलों को फायदा होने वाला है। भाजपा ने अपनी सभी जिला समितियों को स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण की मांग को लेकर जिला कलेक्टरों को ज्ञापन सौंपने का निर्देश दिया है। विधानसभा चुनाव के नतीजों से ही स्पष्ट होगा कि इस मुद्दे से किस पार्टी को फायदा हुआ।
आईएएनएस
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