पेट में बार-बार होता है दर्द, कहीं यह बीमारी तो नहीं बना रही घर?

पेट में बार-बार होता है दर्द, कहीं यह बीमारी तो नहीं बना रही घर?


हमारी जिंदगी आजकल इतनी ज्यादा बिजी हो चुकी है कि हमारे पास खुद का ध्यान रखने के लिए ही समय नहीं है. कब खाना है, कब सोना है, कब काम करना है, ये सारी चीजें लगभग मिक्स हो गई हैं. शरीर समय-समय पर हमें संकेत देते रहते हैं कि हेल्थ को लेकर सब कुछ ठीक नहीं चर रहा है, लेकिन हम नजरअंदाज कर देते हैं. ऐसे ही अगर पेट में दर्द कुछ घंटों के लिए हो और फिर ठीक हो जाए तो अक्सर हम इसे नजरअंदाज कर देते हैं. हालांकि, जब यह दर्द लगातार हफ्तों या महीनों तक बना रहे तो यह एक सामान्य समस्या नहीं, बल्कि किसी गंभीर बीमारी का संकेत हो सकता है. आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं. 

लगातार क्यों होता है पेट दर्द?

हमारे पेट (Abdomen) में कई अहम अंग होते हैं, जैसे आंत (Intestines), लिवर (Liver), किडनी (Kidney), स्टमक (Stomach) और प्रजनन अंग. इसलिए कारण पता लगाना आसान नहीं होता.

दर्द होने की खास वजह: अगर आपको लगातार पेट में दर्द हो रहा है तो उसकी कुछ खास वजह हो सकती हैं. आइए इनके बारे में जानते हैं. 

  • इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS): इसमें बड़ी आंत प्रभावित होती है. लक्षण – पेट में मरोड़, गैस, बार-बार टॉयलेट जाना.
  • एसिड रिफ्लक्स या जीईआरडी (GERD): बार-बार खट्टी डकार, सीने में जलन.
  • गैस्ट्राइटिस और अल्सर (Gastritis & Peptic Ulcer): पेट की परत में सूजन या छाले, अक्सर पेनकिलर ज्यादा खाने या H. pylori इंफेक्शन से.
  • सीलिएक रोग (Celiac Disease): ग्लूटेन से एलर्जी. गेहूं या जौ खाने पर दस्त, थकान, पेट दर्द.
  • डाइवर्टीकुलाइटिस (Diverticulitis): बड़ी आंत में छोटे थैले में इंफेक्शन, आमतौर पर बाईं तरफ दर्द.
  • इंफ्लेमेटरी बॉवेल डिजीज (IBD): क्रोहन रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस. लंबे समय तक दस्त और पेट दर्द.

अन्य गंभीर कारण

  • गॉलब्लैडर स्टोन (Gallstones): दाईं तरफ तेज दर्द, खासकर फैटी खाना खाने के बाद.
  • किडनी स्टोन (Kidney Stones): पीठ से लेकर नीचे तक बहुत तेज दर्द.
  • हर्निया (Hernia): पेट में उभार और दर्द, खांसने या वजन उठाने पर बढ़ता है.
  • कैंसर (Cancer): लगातार दर्द के साथ वजन कम होना, खून आना, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें.
  • एपेंडिसाइटिस (Appendicitis): दर्द पहले नाभि के आसपास, फिर दाईं तरफ, साथ में बुखार.

कब डॉक्टर को दिखाना जरूरी?

अगर पेट दर्द के साथ ये लक्षण हों तो देर न करें.

  • अचानक ज्यादा दर्द
  • उल्टी, बुखार
  • खून वाली उल्टी या स्टूल
  • आंख या त्वचा का पीला होना (Jaundice)
  • वजन तेजी से घटना
  • बचाव के आसान तरीके
  • संतुलित और फाइबर से भरपूर डाइट लें.
  • ज्यादा तैलीय और जंक फूड से बचें.
  • स्मोकिंग और शराब कम करें.
  • ज्यादा पेनकिलर (NSAIDs) का सेवन न करें.
  • डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों को कंट्रोल में रखें.

आपको अगर लगातार पेट दर्द को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है. समय रहते डॉक्टर से सलाह लें. अगर समय पर आप डॉक्टर के पास नहीं जाते तो दिक्कतें बढ़ने लगती हैं.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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प्रेग्नेंसी का ऐसा केस आपने नहीं सुना होगा, लीवर में पल रहा था बच्चा…डॉक्टर ने  दी जानकारी

प्रेग्नेंसी का ऐसा केस आपने नहीं सुना होगा, लीवर में पल रहा था बच्चा…डॉक्टर ने दी जानकारी


Ectopic Pregnancy: उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले से एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसने मेडिकल साइंस से जुड़े विशेषज्ञों को भी चौंका दिया है. यहां एक 30 साल की महिला लंबे समय से पेट दर्द और उल्टी की परेशानी से जूझ रही थी. जब इन लक्षणों से राहत नहीं मिली, तो डॉक्टर्स ने उसे एमआरआई जांच के लिए एक निजी सेंटर पर भेजा था.

जांच रिपोर्ट आने के बाद जो सामने आया, वह चौंकाने वाला था. दरअसल, महिला गर्भवती थी, लेकिन उसका गर्भ सही जगह पर नहीं था. यानी रिपोर्ट में पता चला कि 12 हफ्ते का भ्रूण महिला के लीवर के दाहिने हिस्से में पल रहा है और हैरानी की बात यह थी कि भ्रूण जीवित था और उसमें धड़कन भी मौजूद थी.

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डॉ. श्वेता मेंदिरत्ता ने दी अहम जानकारी

फरीदाबाद स्थित मारेंगो एशिया हॉस्पिटल की डॉ. श्वेता मेंदिरत्ता का कहना है कि, इसे “Ectopic Pregnancy” (गर्भाशय के बाहर गर्भधारण) के नाम से जाना जाता है. ऐसा तब होती है जब भ्रूण गर्भाशय की बजाय अन्य स्थानों पर विकसित होने लगता है. यानी गर्भाशय के अंदर ही भ्रूण का विकास होता है, लेकिन कभी-कभी यह गर्भाशय के बाहर, जैसे कि अंडाशय, फैलोपियन ट्यूब, या बहुत दुर्लभ मामलों में लीवर या आंतों में विकसित हो सकता है.

लीवर में भ्रूण का विकास एक अत्यंत दुर्लभ और जटिल स्थिति है. यदि भ्रूण लीवर में विकसित हो रहा है तो यह जीवन के लिए खतरे का संकेत हो सकता है, क्योंकि लीवर में गर्भ का पलना खून की कमी और पोषक तत्वों की कमी के कारण भ्रूण के लिए विकास को कठिन बना सकता है. इसके अलावा यह स्थिति मां के लिए भी खतरनाक हो सकती है, क्योंकि लीवर में गर्भ का पलना रक्तस्राव, संक्रमण या अन्य जटिलताओं को जन्म दे सकता है.

क्या इसका इलाज हो सकता है

यह स्थिति जल्दी पहचानी जाती है और डॉक्टर से तत्काल इलाज की आवश्यकता होती है. आमतौर पर इस तरह के मामले में सर्जरी की जरूरत होती है, ताकि भ्रूण को हटाया जा सके और महिला के स्वास्थ्य को सुरक्षित किया जा सके. गर्भाशय के बाहर गर्भधारण को सही समय पर पहचानने और इलाज करने से मां की जान को बचाया जा सकता है.

इसके लक्षण कैसे पता चलते हैं

ईसीटॉपिक प्रेग्नेंसी के लक्षणों में पेट में तेज दर्द, रक्तस्राव और जी मिचलाना शामिल हो सकते हैं. अगर ऐसी स्थिति सामने आती है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना बेहद जरूरी होता है. समय रहते उपचार से महिला के स्वास्थ्य को ठीक किया जा सकता है और भविष्य में गर्भधारण के लिए संभावनाएं बेहतर हो सकती हैं.

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बढ़ती उम्र के साथ नहीं, अब बचपन में भी कमजोर हो रही हैं हड्डियां…जानिए क्या है वजह

बढ़ती उम्र के साथ नहीं, अब बचपन में भी कमजोर हो रही हैं हड्डियां…जानिए क्या है वजह


Week Bones of Children: पहले हड्डियों की कमजोरी को उम्र से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन अब यह समस्या बच्चों में भी तेजी से देखने को मिल रही है. छोटी सी गिरावट में फ्रैक्चर, पीठ दर्द की शिकायत या बार-बार थकान, ये संकेत हो सकते हैं कि, आपके बच्चे की हड्डियां मजबूत नहीं हैं.

डॉ. दीपक जोशी बताते हैं कि, यह समस्या केवल पोषण की कमी से नहीं, बल्कि जीवनशैली और आदतों से भी जुड़ी हुई है. इसलिए हम जानेंगे कि आखिर क्यों बच्चों की हड्डियां कमजोर हो रही हैं, इसके लक्षण क्या हैं और कैसे उन्हें दोबारा मजबूत बनाया जा सकता है.

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क्यों हो रही हैं बच्चों की हड्डियां कमजोर?

पोषण की कमी

बच्चों के आहार में कैल्शियम, विटामिन D और फॉस्फोरस की कमी हड्डियों की ताकत को प्रभावित करती है. जंक फूड और बाहर का खाना पोषक तत्वों से रहित होता है.

सूरज की रोशनी से दूरी

बच्चे अब घरों में या स्क्रीन के सामने ज्यादा वक्त बिताते हैं. इससे शरीर में प्राकृतिक रूप से बनने वाला विटामिन D कम हो जाता है, जो कैल्शियम को हड्डियों तक पहुंचाने में जरूरी होता है.

शारीरिक गतिविधियों की कमी

खेलना-कूदना कम और घंटों बैठकर पढ़ाई या मोबाइल देखना बच्चों की हड्डियों को कमजोर बना रहा है.

पढ़ाई या लंबी सिटिंग के बाद क्या करें?

  • हर 30-40 मिनट में बच्चों को खड़ा करें और हल्की स्ट्रेचिंग या वॉक कराएं.
  • स्पाइन को सपोर्ट देने वाली कुर्सी पर बैठने की आदत डालें.
  • बच्चों को योगा, साइक्लिंग या स्विमिंग जैसी हल्की फिजिकल एक्टिविटी के लिए प्रेरित करें.

कैल्शियम की कमी के लक्षण

  • हड्डियों और जोड़ों में दर्द
  • मांसपेशियों में ऐंठन
  • दांत जल्दी खराब होना
  • बार-बार फ्रैक्चर होना
  • कमजोरी और थकान महसूस होना

बच्चों की हड्डियों को कैसे बनाएं मजबूत?

  • संतुलित आहार दें: बच्चों को दूध, दही, पनीर, अंडे, हरी सब्ज़ियां और सूखे मेवे दें.
  • विटामिन D का ध्यान रखें: रोज सुबह 20-30 मिनट की धूप में बैठने की आदत डालें.
  • स्क्रीन टाइम कम करें: मोबाइल, टीवी और लैपटॉप के सामने समय सीमित करें और आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें.
  • बच्चों की हड्डियों की सेहत को नज़रअंदाज़ करना आगे चलकर बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकता है. जरूरी है कि हम समय रहते उनकी जीवनशैली और पोषण पर ध्यान दें.

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गुलाबी नमक या सफेद नमक, सेहत के लिए कौन-सा ज्यादा फायदेमंद?

गुलाबी नमक या सफेद नमक, सेहत के लिए कौन-सा ज्यादा फायदेमंद?


नमक हमारे खाने का जरूरी हिस्सा है. चाहे सब्जी बनानी हो, सलाद पर डालना हो या फ्रेंच फ्राइज का स्वाद बढ़ाना हो, नमक हर जगह इस्तेमाल होता है. लेकिन ज्यादा नमक यानी ज्यादा सोडियम सेहत के लिए नुकसानदायक है. सोडियम ज्यादा लेने से ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है और हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है. तो क्या पिंक सॉल्ट रेगुलर नमक से बेहतर है? आइए जानते हैं.

पिंक सॉल्ट क्या है?

पिंक सॉल्ट को हिमालयन सॉल्ट भी कहते हैं. यह नमक हिमालय के पास की खानों से निकाला जाता है. इसका गुलाबी रंग इसमें मौजूद मिनरल्स जैसे आयरन ऑक्साइड की वजह से होता है. न्यूट्रिशनिस्ट हरीप्रिय N. के अनुसार, यह नमक ज्यादा प्रोसेस नहीं किया जाता, इसलिए इसे ज्यादा नैचुरल माना जाता है.

रेगुलर सॉल्ट क्या है?

रेगुलर सॉल्ट यानी टेबल सॉल्ट सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला नमक है. इसे प्रोसेस करके बनाया जाता है, जिसमें ज्यादातर मिनरल्स हटा दिए जाते हैं. इसमें एंटी-कैकिंग एजेंट भी मिलाए जाते हैं. CDC के अनुसार, एक टीस्पून रेगुलर सॉल्ट में करीब 2400 mg सोडियम होता है, जबकि US FDA रोजाना 2300 mg से कम सोडियम लेने की सलाह देता है.

पिंक सॉल्ट और रेगुलर सॉल्ट में समानताएं

  • दोनों में मुख्य रूप से सोडियम क्लोराइड होता है. पिंक सॉल्ट में 84-98 प्रतिशत और रेगुलर सॉल्ट में 97-99 प्रतिशत.
  • दोनों का इस्तेमाल खाने का स्वाद बढ़ाने और फूड को प्रिजर्व करने के लिए किया जाता है.
  • दोनों का ज्यादा सेवन ब्लड प्रेशर बढ़ा सकता है और हार्ट डिजीज का खतरा पैदा करता है.

फर्क क्या है?

  • सोर्स:   रेगुलर सॉल्ट समुद्र के पानी या जमीन की खानों से प्रोसेस करके बनाया जाता है, जबकि पिंक सॉल्ट हिमालय के पास की नमक खानों से मिलता है.
  • प्रोसेसिंग: रेगुलर सॉल्ट ज्यादा रिफाइंड होता है और इसमें आयोडीन मिलाया जाता है. पिंक सॉल्ट नैचुरल और अनरिफाइंड होता है.
  • मिनरल्स: पिंक सॉल्ट में 84 से ज्यादा मिनरल्स होते हैं, जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम (जानकारी Foods जर्नल के मुताबिक).
  • रंग और टेक्सचर: रेगुलर सॉल्ट सफेद और फाइन ग्रेन वाला होता है, जबकि पिंक सॉल्ट गुलाबी और आमतौर पर कोर्स होता है.
  • टेस्ट: रेगुलर सॉल्ट ज्यादा सॉल्टी लगता है, जबकि पिंक सॉल्ट हल्का और मिनरल फ्लेवर वाला.
  • हेल्थ बेनिफिट्स: रेगुलर सॉल्ट आयोडीन डिफिशिएंसी रोकने में मदद करता है. पिंक सॉल्ट हाइड्रेशन और इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस में मदद कर सकता है.

कौन सा नमक लें?

दोनों के फायदे और नुकसान हैं. अगर आपको आयोडीन चाहिए तो रेगुलर सॉल्ट सही है. अगर नैचुरल मिनरल्स और अलग स्वाद चाहते हैं तो पिंक सॉल्ट ले सकते हैं. लेकिन ध्यान रखें, किसी भी नमक का ज्यादा सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक है.

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अनवांटेड प्रेग्नेंसी रोकने के लिए कितनी बार खा सकते हैं पिल्स, कब शरीर पर पड़ने लगता है असर?

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Side Effects of Unwanted Pregnancy Pills: आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में जहां रिश्ते, जिम्मेदारियां और प्राथमिकताएं लगातार बदल रही हैं. वहीं महिलाओं के लिए फैमिली प्लानिंग और अनवांटेड प्रेग्नेंसी से जुड़ी जागरूकता पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है. ऐसे में बाजार में उपलब्ध इमरजेंसी कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स महिलाओं को एक अस्थायी राहत का रास्ता जरूर देती हैं, लेकिन क्या यह समाधान हर बार सुरक्षित होता है?

डॉ. रीता बेदी बताती हैं कि, अनवांटेड प्रेग्नेंसी को रोकने के लिए पिल्स का इस्तेमाल तभी करना चाहिए जब कोई और विकल्प न बचा हो, क्योंकि इसका बार-बार उपयोग शरीर पर गंभीर असर डाल सकता है.

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पिल्स कैसे काम करती हैं?

इमरजेंसी पिल्स हार्मोन आधारित दवाएं होती हैं, जिनमें प्रोजेस्टेरोन या एस्ट्रोजन जैसे हॉर्मोन शामिल होते हैं. ये ओव्यूलेशन को रोकने, फर्टिलाइजेशन को बाधित करने या गर्भाशय की लाइनिंग को इस तरह प्रभावित करने का काम करती हैं कि, बच्चा आपके पेट में न रह सके. 

कितनी बार लिया जा सकता है पिल्स?

  • ये पिल्स केवल आपातकालीन स्थिति में ही इस्तेमाल की जानी चाहिए, न कि रेगुलर गर्भनिरोधक के लिए…
  • एक महीने में एक से दो बार से अधिक इनका सेवन न करें
  • बार-बार सेवन से हार्मोनल असंतुलन, अनियमित पीरियड्स, सिरदर्द, थकान और पाचन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं.
  • लंबे समय तक बार-बार पिल्स लेने से फर्टिलिटी पर भी असर पड़ सकता है.

शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव

इन पिल्स का असर शरीर पर कुछ ही घंटों में दिखना शुरू हो सकता है. कुछ महिलाओं को हल्की ब्लीडिंग, जी मिचलाना, उल्टी, पेट दर्द और ब्रेस्ट टेंडरनेस जैसी समस्याएं हो सकती हैं.

  • हार्मोनल गड़बड़ी
  • अनियमित मासिक चक्र
  • वजन बढ़ना या घटना
  • मूड स्विंग्स

इमरजेंसी पिल्स एक जरूरत की चीज हो सकती हैं, लेकिन इनका बार-बार उपयोग नुकसानदेह साबित हो सकता है. सही जानकारी और डॉक्टर की सलाह के साथ ही इसका प्रयोग करें, ताकि आपकी सेहत सुरक्षित रहे और भविष्य में कोई पछतावा न हो.

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सिर्फ बॉडी ही नहीं बनाती, मेंटल हेल्थ भी बेहतर करती है एक्सरसाइज, जानें कितना पड़ता है असर?

सिर्फ बॉडी ही नहीं बनाती, मेंटल हेल्थ भी बेहतर करती है एक्सरसाइज, जानें कितना पड़ता है असर?


कसरत यानी एक्सरसाइज को लोग अक्सर सिर्फ फिट बॉडी या वजन कम करने के लिए करते हैं. क्या आप जानते हैं कि यह आपके दिमाग और मानसिक सेहत के लिए भी उतनी ही जरूरी है? एक्सपर्ट्स मानते हैं कि नियमित एक्सरसाइज न सिर्फ शरीर को मजबूत बनाती है, बल्कि मूड अच्छा करती है, तनाव कम करती है और दिमाग को भी एक्टिव रखती है.

कसरत से मानसिक स्वास्थ्य कैसे बेहतर होता है?

जब हम कसरत करते हैं तो शरीर में एंडोर्फिन नामक हार्मोन रिलीज होता है. इसे ‘हैप्पी हार्मोन’ कहा जाता है. यह तनाव और चिंता को कम करता है और मूड को बेहतर बनाता है. कसरत करने से दिमाग में ब्लड सर्कुलेशन भी बढ़ता है, जिससे फोकस और मेमोरी तेज होती है.

डिप्रेशन और एंग्जायटी में मददगार

कई रिसर्च में पाया गया है कि नियमित कसरत करने वाले लोगों में डिप्रेशन और एंग्जायटी के लक्षण कम होते हैं. ब्रिस्क वॉक, जॉगिंग, योगा या डांस जैसी एक्टिविटीज तनाव को दूर करने में मदद करती हैं. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि दिन में सिर्फ 30 मिनट की एक्सरसाइज भी मूड को काफी हद तक बेहतर कर सकती है.

नींद की क्वालिटी में सुधार

आजकल ज्यादातर लोग नींद की समस्या से परेशान रहते हैं. कसरत इस समस्या का आसान इलाज है. जब आप फिजिकली एक्टिव रहते हैं तो रात में नींद जल्दी और गहरी आती है. अच्छी नींद का सीधा असर आपके दिमाग और इमोशनल हेल्थ पर पड़ता है.

कितनी देर करें कसरत?

हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, हफ्ते में कम से कम 150 मिनट मॉडरेट एक्सरसाइज या 75 मिनट हाई-इंटेंसिटी एक्सरसाइज जरूरी है. इसका मतलब है कि रोजाना 20 से 30 मिनट कसरत करके आप अपनी मेंटल और फिजिकल हेल्थ दोनों को बेहतर रख सकते हैं.

कौन-कौन सी एक्सरसाइज करें?

  • वॉकिंग या जॉगिंग: सबसे आसान और असरदार तरीका.
  • योग और मेडिटेशन: मानसिक शांति और फोकस के लिए बेस्ट.
  • डांस और साइक्लिंग: मजेदार तरीके से एक्टिव रहना.
  • जिम या स्ट्रेंथ ट्रेनिंग: बॉडी और माइंड दोनों के लिए फायदेमंद.

कसरत सिर्फ बॉडी बनाने के लिए नहीं है, यह दिमाग और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी जरूरी है. यह तनाव कम करती है, मूड अच्छा करती है, नींद सुधारती है और डिप्रेशन-एंग्जायटी के खतरे को घटाती है. तो चाहे घर पर हों या बाहर, हर दिन थोड़ा वक्त एक्सरसाइज के लिए निकालें. याद रखें, हेल्दी बॉडी और हेल्दी माइंड, दोनों जरूरी हैं.

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