खराब लाइफस्टाइल से बिगड़ रहा लिवर? रोजाना खाएं ये 5 फूड्स, जो नैचुरली करेंगे लिवर की सफाई

खराब लाइफस्टाइल से बिगड़ रहा लिवर? रोजाना खाएं ये 5 फूड्स, जो नैचुरली करेंगे लिवर की सफाई


ब्रोकली, फूलगोभी, पत्तागोभी और ब्रसेल्स स्प्राउट्स जैसी सब्जियां ग्लूकोसिनोलेट्स नामक तत्वों से भरपूर होती है जो लिवर के डिटॉक्स एंजाइम्स को एक्टिव करती है. यह सब्जियां टॉक्सिन्स खत्म करके लीवर को साफ करने में मदद करती है. साथ ही इनमें मौजूद फाइबर सूजन को कम करता है और लिवर सेल्स को हेल्दी रखता है.

चुकंदर में मौजूद बेटा लेंस नामक पिगमेंट लिवर की सफाई में मदद करता है और सूजन कम करता है. यह लिवर की डिटॉक्स प्रक्रिया को भी तेज करता है और डैमेज टिश्यू की मरम्मत में सहायता करता है. रोजाना चुकंदर का जूस पीना या इसे सलाद में शामिल करना लिवर हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है.

चुकंदर में मौजूद बेटा लेंस नामक पिगमेंट लिवर की सफाई में मदद करता है और सूजन कम करता है. यह लिवर की डिटॉक्स प्रक्रिया को भी तेज करता है और डैमेज टिश्यू की मरम्मत में सहायता करता है. रोजाना चुकंदर का जूस पीना या इसे सलाद में शामिल करना लिवर हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है.

सैल्मन, मैकेरल और सार्डिन जैसी मछलियों में मौजूद ओमेगा 3 फैटी एसिड लिवर में सूजन और फैट के जमाव को रोकते हैं. यह फैटी लिवर डिजीज के खतरे को कम करते हैं और लिवर सेल्स को रिजनरेट करने में मदद करते हैं. ऐसे में हफ्ते में दो बार फैटी फिश खाने से लिवर एंजाइम का लेवल नॉर्मल रहता है.

सैल्मन, मैकेरल और सार्डिन जैसी मछलियों में मौजूद ओमेगा 3 फैटी एसिड लिवर में सूजन और फैट के जमाव को रोकते हैं. यह फैटी लिवर डिजीज के खतरे को कम करते हैं और लिवर सेल्स को रिजनरेट करने में मदद करते हैं. ऐसे में हफ्ते में दो बार फैटी फिश खाने से लिवर एंजाइम का लेवल नॉर्मल रहता है.

लहसुन में मौजूद सल्फर से भरपूर एलिसिन और सेलेनियम लिवर की सफाई प्रक्रिया को तेज करते हैं.  यह टॉक्सिन्स को शरीर से बाहर निकालने में भी मदद करते हैं और फैट जमा होने से रोकते हैं. साथ ही लहसुन ब्लड में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का लेवल भी घटाता है जिससे लिवर हेल्दी रहता है.

लहसुन में मौजूद सल्फर से भरपूर एलिसिन और सेलेनियम लिवर की सफाई प्रक्रिया को तेज करते हैं. यह टॉक्सिन्स को शरीर से बाहर निकालने में भी मदद करते हैं और फैट जमा होने से रोकते हैं. साथ ही लहसुन ब्लड में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड का लेवल भी घटाता है जिससे लिवर हेल्दी रहता है.

पालक, केला और अरुगुला जैसी हरी सब्जियां क्लोरोफिल से भरपूर होती है. यह सभी सब्जियां शरीर से मेटल्स और केमिकल्स को बाहर निकालने में मदद करती है. यह लिवर का बोझ भी कम करती है और डाइजेशन सुधरती है. नियमित रूप से इनका सेवन करने से लिवर बेहतर तरीके से काम करता है और डैमेज का खतरा भी कम होता है.

पालक, केला और अरुगुला जैसी हरी सब्जियां क्लोरोफिल से भरपूर होती है. यह सभी सब्जियां शरीर से मेटल्स और केमिकल्स को बाहर निकालने में मदद करती है. यह लिवर का बोझ भी कम करती है और डाइजेशन सुधरती है. नियमित रूप से इनका सेवन करने से लिवर बेहतर तरीके से काम करता है और डैमेज का खतरा भी कम होता है.

Published at : 14 Nov 2025 08:00 AM (IST)

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शुगर कंट्रोल नहीं की तो बॉडी में होंगी ये 5 दिक्कतें, जिंदगी हो जाएगी तबाह

शुगर कंट्रोल नहीं की तो बॉडी में होंगी ये 5 दिक्कतें, जिंदगी हो जाएगी तबाह



आजकल डायबिटीज की बीमारी बेहद कॉमन हो चुकी है. अगर शुगर को कंट्रोल न किया जाए तो यह बीमारी चुपके-चुपके पूरे शरीर को खोखला कर देती है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक, अनियंत्रित डायबिटीज से नसों और ब्लड वेसल्स को गंभीर नुकसान पहुंचता है, जिससे हार्ट अटैक, किडनी फेलियर और आंखों की रोशनी जाने जैसी दिक्कतें हो जाती हैं. भारत में हालात और भी खराब हैं.

इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) की 2025 डायबिटीज एटलस रिपोर्ट कहती है कि देश में 10 करोड़ से ज्यादा लोग डायबिटीज से जूझ रहे हैं और इनमें से आधे को तो बीमारी के बारे में पता भी नहीं चलता. आइए आपको बताते हैं कि शुगर कंट्रोल नहीं करने से बॉडी में क्या-क्या दिक्कतें होती हैं और उससे जिंदगी पर क्या असर पड़ता है?

यह होती है पहली दिक्कत

मुंबई के नामी अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. शैलजा पाटिल के मुताबिक, हाई शुगर से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है, ब्लड प्रेशर हाई हो जाता है और आर्टरीज में प्लाक जमने लगता है. इससे हार्ट अटैक या स्ट्रोक हो सकता है. डायबिटीज से जूझ रहे मरीजों में हार्ट अटैक का रिस्क 4 गुना ज्यादा होता है. IDF की 2025 में आई रिपोर्ट में भारत में 40 पर्सेंट डायबिटीज मरीजों को कार्डियोवस्कुलर प्रॉब्लम्स बताई गई है. वहीं, CDC की 2025 की रिपोर्ट भी कहती है कि डायबिटीज से हार्ट फेल्योर और स्ट्रोक के हॉस्पिटलाइजेशन रेट्स लगातार बढ़ रहे हैं. 

ब्लड वेसल्स हो जाते हैं खराब

डॉ. पाटिल ने बताया कि डायबिटीज की वजह से किडनी डैमेज होने का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि शुगर के हाई लेवल से किडनी के छोटे ब्लड वेसल्स खराब हो जाते हैं, यूरिन में प्रोटीन आने लगता है. इससे आखिर में डायलिसिस की नौबत आ जाती है. दरअसल, अनियंत्रित डायबिटीज से किडनी फेल्योर का खतरा पांच गुना तक बढ़ जाता है. भारत में 25% डायबिटीज मरीजों को क्रॉनिक किडनी डिजीज है. शुरुआत में सूजन या थकान लगती है, लेकिन इग्नोर करने से लाइफ तबाह हो जाती है.

नसों में होती है यह दिक्कत

डॉक्टर के मुताबिक, हाई ब्लड शुगर की वजह से नर्व डैमेज या डायबिटिक न्यूरोपैथी की दिक्कत होती है. दरअसल, हाई शुगर से नसों को ऑक्सीजन और न्यूट्रिएंट्स कम मिलते हैं, जिससे हाथ-पैरों में झुनझुनी, सुन्नपन या दर्द होता है. यह दर्द रातों की नींद उड़ा देता है और इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. 

आंखों की रोशनी पर असर

डायबिटीज के कारण आंखों में खराबी आने लगती है या डायबिटिक रेटिनोपैथी हो जाती है. शुगर से रेटिना के ब्लड वेसल्स लीक हो जाते हैं, जिससे धुंधला दिखना या अंधापन हो सकता है. डॉ. पाटिल के मुताबिक, अनियंत्रित डायबिटीज से 20 पर्सेंट मरीजों को विजन लॉस हो जाता है. ADA की 2025 की रिपोर्ट कहती है कि शुरुआती चेकअप से 80 पर्सेंट केस बचाए जा सकते हैं. IDF के अनुसार, भारत में 10 मिलियन लोग इससे प्रभावित हैं.

नर्व डैमेज का खतरा

डॉक्टर ने बताया कि डायबिटीज की वजह से फुट अल्सर होने का खतरा भी बढ़ जाता है. दरअसल, हाई शुगर होने से नर्व डैमेज हो जाती हैं और खराब ब्लड फ्लो के कारण घाव नहीं भरते हैं. इससे इंफेक्शन फैलता है और एम्पुटेशन हो जाता है. अनकंट्रोल्ड डायबिटीज से फुट अल्सर का रिस्क 25 गुना बढ़ जाता है. ऐसी कंडीशन में मरीजों को पैरों में जलन या कटने का दर्द नहीं महसूस होता, जो घाव को गंभीर बना देता है.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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ये 5 लक्षण दिखें तो समझ जाएं हो गई डायबिटीज, तुरंत शुरू कर दें ये परहेज

ये 5 लक्षण दिखें तो समझ जाएं हो गई डायबिटीज, तुरंत शुरू कर दें ये परहेज



आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में डायबिटीज जैसी बीमारी किसी को भी चुपके से घेर लेती है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में करीब 83 करोड़ लोग डायबिटीज से जूझ रहे हैं और आधे से ज्यादा को तो पता ही नहीं चलता कि उनकी बॉडी में शुगर का लेवल बढ़ चुका है. भारत में भी हालात बेहद गंभीर हैं. इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (IDF) की 2025 की डायबिटीज एटलस रिपोर्ट कहती है कि भारत में 10 करोड़ से ज्यादा लोग इसकी चपेट में हैं और 2.5 करोड़ लोग अब भी इससे अनजान हैं. वर्ल्ड डायबिटीज डे के मौके पर हम आपको उन 5 लक्षणों के बारे में बता रहे हैं, जिनसे डायबिटीज होने का पता चलता है. अगर समय पर सही परहेज शुरू कर दिए जाएं तो इसे कंट्रोल किया जा सकता है.

कैसे रखें अपना ध्यान?

दिल्ली के नामी अस्पताल में एंडोक्राइनोलॉजी डिपार्टमेंट के चेयरमैन डॉ. वी. सुब्रह्मण्यम के मुताबिक, डायबिटीज को साइलेंट किलर कहा जाता है, क्योंकि यह चुपचाप हार्ट, किडनी, आंखों और नसों को नुकसान पहुंचाती है. अगर आपको बार-बार पेशाब आ रहा है या ज्यादा प्यास लग रही है, थकान, वजन का अचानक कम होना और धुंधला दिखना जैसे लक्षण नजर आ रहे हैं तो तुरंत ब्लड टेस्ट करवाएं. ये लक्षण टाइप-2 डायबिटीज में ज्यादातर देखे जाते हैं, जो 90 पर्सेंट मामलों में होता है.

रात में दिखता है यह लक्षण

डायबिटीज का पहला लक्षण बार-बार पेशाब आना है. दरअसल, जब ब्लड शुगर बढ़ता है तो किडनी उसे बाहर निकालने की कोशिश करती है. इसके चलते रात में भी 4-5 बार टॉयलेट जाना पड़ता है. डॉ. सुब्रह्मण्यम के मुताबिक, मरीज अक्सर कहते हैं कि रात भर नींद नहीं आती, क्योंकि पेशाब रोक नहीं पाते हैं. यह शुरुआती संकेत है, जिसे इग्नोर करने से किडनी डैमेज हो जाती है. IDF की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर वक्त पर चेकअप न हे तो भारत में 40 पर्सेंट डायबिटीज के मरीजों को किडनी प्रॉब्लम हो जाती है.

बार-बार प्यास लगना भी खतरनाक

दूसरा लक्षण अजीब-सी प्यास लगना है. दरअसल, शुगर बढ़ने से बॉडी डिहाइड्रेट हो जाती है और आप जितना पानी पिएंगे, उतनी ही प्यास लगती है. डॉ. सुब्रह्मण्यम कहते हैं कि गर्मी में प्यास तो लगती ही है, लेकिन ठंडे मौसम में भी बार-बार पानी पीना पड़ रहा है तो शुगर चेक कराएं. हमने हाल ही में एक स्टडी में देखा कि 70 पर्सेंट मरीजों में यह लक्षण सबसे पहले नजर आया. ADA (अमेरिकन डायबिटीज असोसिएशन) की 2025 गाइडलाइंस में भी यही कहा गया है कि प्यास का बढ़ना हाइपरग्लाइसीमिया का सिग्नल होता है. 

लगातार थकान लग रही तो कराएं जांच

डायबिटीज में कोशिकाएं शुगर को एनर्जी में बदल नहीं पाती हैं, जिसकी वजह से हर वक्त थकान महसूस होती है. डॉ. सुब्रह्मण्यम के मुताबिक, मरीज सोचते हैं कि काम की थकान है, लेकिन ऐसा डायबिटीज की वजह से होता है. WHO की स्टडी भी बताती है कि अनट्रीटेड डायबिटीज से थकान हार्ट अटैक का रिस्क दोगुना कर देती है.

अचानक घट रहा वजन तो दें ध्यान

टाइप-1 डायबिटीज के दौरान वजन काफी तेजी से कम होने लगता है, क्योंकि बॉडी फैट और मसल्स को तोड़कर एनर्जी बनाने लगती है. डॉ. सुब्रह्मण्यम ने बताया कि एक महीने में 4-5 किलो वजन घटना नॉर्मल नहीं होता है. यह इंसुलिन की कमी का संकेत है. IDF की लेटेस्ट रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में 10 मिलियन टाइप-1 केस हैं, जिनमें यह लक्षण प्रमुख है.

धुंधला दिख रहा है तो हो जाएं अलर्ट

डायबिटीज का पांचवां लक्षण आंखों से धुंधला दिखना है. दरअसल, हाई शुगर की वजह से आंखों के लेंस में सूजन आ जाती है, जिससे विजन ब्लर हो जाता है. डॉ. सुब्रह्मण्यम बताते हैं कि डायबिटिक रेटिनोपैथी से 20 पर्सेंट मरीज अंधे हो जाते हैं. 2025 की ADA रिपोर्ट कहती है कि शुरुआती चेकअप से 80 पर्सेंट केस बचाए जा सकते हैं. यह लक्षण बच्चों में भी तेजी से बढ़ रहा है. 

कैसे करना चाहिए परहेज?

डॉ. सुब्रह्मण्यम सलाह देते हैं कि अगर डायबिटीज को कंट्रोल करना है तो चीनी, मैदा, प्रोसेस्ड फूड और रेड मीट से तौबा करें. इसकी जगह फाइबर वाली चीजें खाएं. IDF की 2025 में पब्लिश रिपोर्ट में बताया गया है कि हेल्दी डाइट से 58 पर्सेंट केस प्रिवेंट हो सकते हैं. इसके अलावा सुबह उठते ही गुनगुने पानी में नींबू निचोड़कर पिएं. ब्रेकफास्ट में ओट्स, दलिया या मल्टीग्रेन पराठा लें. सुबह 7 से 8 बजे के बीच नाश्ता करें, जिसमें 300 कैलोरी हो. फल में सेब, अमरूद या पपीता चुनें, केला कम खाएं. लंच में ब्राउन राइस, दाल, हरी सब्जी और सलाद रखें. रोटी 2-3 ही लें. शाम के स्नैक में मुट्ठी भर बादाम या स्प्राउट्स खाएं.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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मेंटल हेल्थ के लिए AI चैटबॉट्स पर भरोसा करना खतरनाक, अमेरिकी साइकोलॉजिस्ट ने दी चेतावनी

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सर्दियों में क्यों बढ़ जाती है नींद और थकान, जानिए इसके पीछे के असली कारण

सर्दियों में क्यों बढ़ जाती है नींद और थकान, जानिए इसके पीछे के असली कारण



जैसे ही सर्दियां शुरू होती है, बहुत से लोगों को सुस्ती, नींद और थकान महसूस होने लगती है. कुछ लोग समझते हैं कि यह उनकी इमेजिनेशन होती है, लेकिन यह कोई आपकी इमेजिनेशन नहीं बल्कि सच होता है कि ठंड के मौसम में हमारे शरीर की ऊर्जा कम होने लगती है. छोटा दिन, ठंडी हवाएं और सूरज की रोशनी की कमी हमारी नींद और मूड दोनों को प्रभावित करती है.

एक रिसर्च के अनुसार, सर्दियों में कम धूप मिलने से शरीर की सर्काडियन रिदम यानी नींद-जागने की प्राकृतिक प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि सर्दियों में नींद और थकान क्यों बढ़ जाती है और इसके पीछे का असली कारण क्या है.

धूप की कमी से क्यों बढ़ती है थकान?

सर्दियों में दिन छोटे होने और धूप कम मिलने के कारण शरीर में मेलाटोनिन नामक हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, जो हमें नींद की कमी का एहसास कराता है. जब नेचुरल रोशनी आंखों में कम पहुंचती है तो शरीर की जैविक घड़ी तंत्र भी भ्रमित हो जाती है. इसका असर यह होता है कि दिन में नींद आने लगती है और रात को नींद पूरी नहीं होती. अगर आप लंबे समय तक घर के अंदर रहते हैं तो यह समस्या और बढ़ जाती है. वहीं सर्दियों में कपड़ों की परत और कम धूप की वजह से शरीर को पर्याप्त विटामिन डी नहीं मिल पाता है. यह कमी न सिर्फ शरीर की ऊर्जा घटाती है, बल्कि मूड पर भी असर डालती है. एक रिसर्च बताती है कि विटामिन डी की कमी थकान, मांसपेशियों की कमजोरी और यहां तक की सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर जैसी समस्या का कारण भी बन सकती है. ऐसे में हेल्दी हेल्थ बनाए रखने के लिए थोड़ी देर धूप में समय बिताना, मछली, अंडे और डेयरी जैसा विटामिन डी युक्त खाना और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से सप्लीमेंट लेना फायदेमंद होता है.

ठंड का मौसम और नींद की गुणवत्ता

सर्दियों की ठंड न सिर्फ शरीर को सिहरा देती है, बल्कि नींद की गुणवत्ता पर भी असर डालती है. लंबी रात और कम रोशनी के कारण हम सर्दियों में जल्दी सो जाते हैं, लेकिन गहरी नींद नहीं आ पाती है. अगर कमरे का तापमान बहुत ज्यादा गर्म या ठंडा है तो यह भी नींद में खलल डाल सकता है. ऐसे में अच्छी नींद के लिए कमरा ठंडा, अंधेरा और शांत होना चाहिए. वहीं आपको हर दिन एक ही समय पर सोने और उठने की कोशिश करनी चाहिए. इससे शरीर की घड़ी संतुलित रहती हैं और थकान महसूस नहीं होती है.

सीजनल डिप्रेशन और लाइफस्टाइल में बदलाव से राहत  

सर्दियों में केवल शरीर ही नहीं मूड भी फीका पड़ जाता है. धूप की कमी सेरोटोनिन का लेवल घट जाता है जो हमें खुश और एनर्जेटिक बनाए रखता है. इसका असर यह होता है कि व्यक्ति सुस्त, चिड़चिड़ा या उदास महसूस कर सकता है. कई बार तो यह सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर में भी बदल सकता है. ऐसे में हल्की एक्सरसाइज करना, म्यूजिक सुनना मूड को बेहतर बनाता है और शरीर में नेचुरल ऊर्जा लौटाता है. वहीं सर्दियों में ज्यादातर लोग भारी और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर खाना पसंद करते हैं जो शरीर को सुस्त बना देता है. इसकी जगह आप ओट्स, दालें, अंडे और हरी सब्जियां खाने में शामिल कर सकते हैं जो आपको लंबे समय तक एनर्जेटिक रखती है. पानी की कमी भी थकान को बढ़ा सकते हैं, ऐसे में पर्याप्त मात्रा में पानी पिए.

सर्दियों की थकान से बचने के उपाय

  • सर्दियों में थकान से राहत पाने के लिए आप सुबह उठते ही सूरज की रोशनी में थोड़ा समय बिताएं.
  • इसके अलावा रोजाना हल्की एक्सरसाइज करें जिससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है.
  • वहीं रात में सोने के लिए कमरे को ठंडा और आरामदायक रखें.
  • रोजाना संतुलित और पौष्टिक खाना खाएं.
  • वहीं दिन में कुछ समय बाहर बिताएं, ताकि शरीर की जैविक घड़ी सही रहे.

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बार-बार फ्लश करने के बावजूद क्या कमोड में तैरती रहती है आपकी पॉटी, कैसे खोलती है सेहत के राज?

बार-बार फ्लश करने के बावजूद क्या कमोड में तैरती रहती है आपकी पॉटी, कैसे खोलती है सेहत के राज?



Floating poop causes: आपने कभी ध्यान दिया है कि आपका पाखाना कभी-कभी टॉयलेट में डूबने के बजाय तैरने लगता है? अगर हां, तो यह बिल्कुल सामान्य है. कई लोग ऐसा नोटिस करते हैं और सोचते हैं कि कहीं यह कोई समस्या तो नहीं. दरअसल, टॉयलेट में आपका मल कैसे व्यवहार कर रहा है, उससे आपके पाचन से जुड़ी कुछ बातें पता चल सकती हैं. आम तौर पर पाखाना इसलिए नीचे बैठ जाता है क्योंकि उसका वजन पानी से ज्यादा होता है. लेकिन कभी-कभी उसमें गैस ज्यादा बन जाती है या उसमें फैट ठीक से पच नहीं पाता, जिसकी वजह से वह हल्का होकर तैरने लगता है.

कभी-कभार ऐसा होना बिल्कुल नुकसानदायक नहीं है. कई बार ज्यादा फाइबर वाला खाना, दालें, चने-राजमा, पत्ता गोभी, सोडा जैसे गैस बनाने वाले पदार्थ खाने के बाद ऐसा होता है. लेकिन अगर मल बार-बार तैरने लगे, वह ज्यादा चिपचिपा हो, बदबू तेज हो या पेट में तकलीफ भी हो, तो यह पाचन संबंधी समस्या का संकेत हो सकता है, जैसे कि मालऐब्सॉर्प्शन. चलिए आपको बताते हैं कि इससे क्या-क्या पता चलता है.

स्टूल तैरेगा या डूबेगा, यह किन चीजों पर निर्भर?

सामान्य और स्वस्थ स्टूल आमतौर पर टॉयलेट में नीचे जाता है. इसमें पानी, अनपचा खाना, बैक्टीरिया और थोड़ी-सी फैट होती है. इसलिए यह पानी से भारी होता है. लेकिन जब इसमें गैस ज्यादा बन जाए या फैट पच न पाए, तो यह हल्का हो जाता है और तैरने लगता है. एक रिसर्च में पाया गया कि जिन लोगों को IBS होता है, खासकर जिनमें कब्ज और दस्त दोनों आते रहते हैं, उनमें तैरते हुए मल की समस्या ज्यादा देखी गई.

तैरते हुए मल के सामान्य कारण

ज्यादातर मामलों में चिंता की जरूरत नहीं होती. इसके पीछे खाने-पीने की आदतें होती हैं, इनमें गैस बनाने वाले खाने जैसे राजमा, चना, दालें, गोभी, ब्रोकली और सोडा वगैरह. दूसरे नम्बर पर ज्यादा फाइबर खाना जिसमें अचानक फाइबर बढ़ाने पर स्टूल हल्का हो सकता है और तीसरे नम्बर पर  ज्यादा तैलीय भोजन कभी-कभी ज्यादा चिकनाई खाने से भी मल तैरने लगता है. ये सब अस्थायी वजहें हैं और कुछ समय बाद खुद ही ठीक हो जाती हैं.

कब चिंता की जरूरत?

अगर मल बार-बार तैर रहा हो, साथ में ये लक्षण हों, जैसे मल का ज्यादा चिपचिपा या चिकना होना, बहुत बदबू आना, पेट में दर्द, वजन कम होना, तो यह पोषक तत्व सही से न पचने की निशानी हो सकती है.

  •  फैट न पचना-  मल तैलीय, चिपचिपा और बहुत बदबूदार होता है
  • कार्ब्स न पचना-  मल ढीला, नरम या फूला हुआ हो जाता है

कई बार सीलिएक डिजीज, क्रोहन डिजीज, आंतों के इंफेक्शन या बैक्टीरिया की बढ़ोतरी की वजह से शरीर खाना अच्छे से सोख नहीं पाता.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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