World Lung Cancer Day: क्या होती है लिक्विड बायोप्सी, इससे कैसे आसान हो जाता है कैंसर का इलाज

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AIIMS में वेटिंग पीरियड ज्यादा, लेकिन इन मरीजों को नहीं कराया जाता इंतजार

AIIMS में वेटिंग पीरियड ज्यादा, लेकिन इन मरीजों को नहीं कराया जाता इंतजार


दिल्ली का अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स (AIIMS) देश का सबसे बड़ा और मशहूर अस्पताल है. देश के कोने-कोने से हजारों लोग रोजाना यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं. बीमारी चाहे छोटी हो या बड़ी, AIIMS में हर विभाग में मरीजों की लंबी कतारें लगी रहती हैं. इसकी वजह से कुछ खास सर्जरी के लिए मरीजों को महीनों, बल्कि कई बार वर्षों तक इंतजार करना पड़ता है. हाल ही में संसद में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री प्रतापराव जाधव ने इस बारे में कुछ अहम जानकारी दीं. 

इन मरीजों को नहीं कराते इंतजार

उन्होंने बताया कि AIIMS के दो विभागों में सर्जरी के लिए करीब 2 साल तक का इंतजार करना पड़ सकता है. ये विभाग न्यूरोसर्जरी और कार्डियो-थोरैसिक-वेस्कुलर सर्जरी हैं. हालांकि, गंभीर मरीजों को प्रायॉरिटी दी जाती है, ताकि उनकी जान को खतरा न हो. 

किस विभाग में कितना इंतजार?

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री ने लिखित जवाब में बताया कि AIIMS नई दिल्ली के अलग-अलग विभागों में सर्जरी के लिए इंतजार का समय अलग-अलग है. कुछ विभागों में मरीजों को बिल्कुल इंतजार नहीं करना पड़ता, जबकि कुछ में काफी वक्त लग सकता है. उदाहरण के लिए नेत्र (आंख), ईएनटी (नाक-कान-गला), बाल रोग, बर्न्स व प्लास्टिक सर्जरी, यूरोलॉजी और डेंटल सर्जरी जैसे विभागों में कोई वेटिंग नहीं है. इन विभागों में मरीजों को तुरंत सर्जरी की सुविधा मिल जाती है. वहीं, जनरल सर्जरी के लिए करीब 2 महीने तक इंतजार करना पड़ सकता है.

इन विभागों में ज्यादा परेशानी

अगर बात गायनोकॉलॉजी और कैंसर विभाग की बात करें तो यहां करीब 3 महीने की वेटिंग रहती है. गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल सर्जरी (पेट और आंत से जुड़ी सर्जरी) में गंभीर मामलों को प्राथमिकता मिलती है, लेकिन सामान्य मामलों में 3 से 6 महीने तक का समय लग सकता है. सबसे ज्यादा इंतजार न्यूरोसर्जरी और कार्डियो-थोरैसिक-वेस्कुलर सर्जरी में है. यहां गंभीर और इमरजेंसी केसेज की सर्जरी तुरंत हो जाती है, लेकिन सामान्य या पहले से तय (प्लान्ड) सर्जरी के लिए मरीजों को 2 साल तक इंतजार करना पड़ सकता है.

वेटिंग में कितने मरीज?

मंत्री ने यह भी बताया कि कुछ विभागों में सर्जरी के लिए इंतजार कर रहे मरीजों की संख्या काफी ज्यादा है. आइए इनके बारे में जानते हैं. 

  • कार्डियो-थोरैसिक-वेस्कुलर सर्जरी: 690 मरीज
  • न्यूरोसर्जरी: 1324 मरीज
  • सर्जिकल ऑन्कोलॉजी: 505 मरीज
  • कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी: 28 मरीज

इन आंकड़ों से साफ है कि न्यूरोसर्जरी और कार्डियो सर्जरी में सबसे ज्यादा भीड़ है, जिसके चलते मरीजों को काफी इंतजार करना पड़ रहा है.

गंभीर मरीजों को राहत

AIIMS में गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों के लिए कुछ अच्छी खबर भी है. मंत्री के जवाब के मुताबिक, कुछ ऐसी बीमारियों में मरीजों को एक साल से ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता है. इनमें हार्ट डिजीज से पीड़ित मरीजों को एक साल से ज्यादा की वेटिंग नहीं दी जाती है. किडनी की बीमारी के आखिरी स्टेज वाले मरीज, जिनके पास डोनर उपलब्ध हैं, उन्हें भी ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ता है. लिवर से जुड़ी ऐसी बीमारियां, जिनका इलाज सर्जरी से हो सकता है, उनमें कोई वेटिंग नहीं है. हालांकि, लिवर ट्रांसप्लांट के लिए डोनर की उपलब्धता जरूरी है.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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तांबे की बोतल में पानी क्यों पिएं? फायदे जानकर रह जाएंगे हैरान

तांबे की बोतल में पानी क्यों पिएं? फायदे जानकर रह जाएंगे हैरान


तांबे के बर्तन में पानी स्टोर करके पीना एक ओल्ड आयुर्वेदिक प्रैक्टिस है, जो अब अपने पोटेंशियल हेल्थ बेनिफिट्स के लिए काफी पॉपुलर हो रही है. इस  मेटल को लंबे टाइम से इसकी हीलिंग, एंटीमाइक्रोबियल और स्पिरिचुअल प्रॉपर्टीज के लिए वैल्यू दी जाती रही है.  ऐसा माना जाता है कि ये बॉडी की एनर्जी को बैलेंस करता है और ओवरऑल वेल-बीइंग को सपोर्ट करता है.

डेली लाइफ में तांबे को ऐड करने का सबसे आसान तरीका है कि तांबे की बॉटल्स या वेसल्स में रखा पानी पीना. जैसे-जैसे ज्यादा लोग हेल्थ के लिए नेचुरल और होलिस्टिक अप्रोचेस ट्राई कर रहे हैं. तांबे को इसके कई पोटेंशियल बेनिफिट्स के लिए फिर से अटेंशन मिल रहा है.

डाइजेशन से लेकर इम्यूनिटी तक ये हैं फायदे

डॉ. रॉबिन शर्मा कहते हैं कि तांबे की बॉटल्स और वेसल्स से पानी पीने से कई हेल्थ बेनिफिट्स मिल सकते हैं. उन्होंने बताया कि तांबे की बोतल से पानी पीने के वाकई में कई सारे हेल्थ बेनिफिट होते हैं. तांबा यानी कॉपर में कई एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीऑक्सीडेंट प्रॉपर्टीज होती हैं, जिससे यह हमारे इम्यून सिस्टम को बूस्ट करता, गट हेल्थ के लिए अच्छा होता है और हमारे डाइजेस्टिव सिस्टम को भी इम्प्रूव करता है.

पानी प्यूरिफाई करता है: तांबे में स्ट्रॉन्ग एंटीमाइक्रोबियल प्रॉपर्टीज होती हैं, जो पानी को प्यूरिफाई करने और बैक्टीरिया, वायरस और फंगस जैसे हार्मफुल माइक्रोऑर्गेनिज्म्स को किल करने में हेल्प कर सकती हैं. ये इसे पानी को सेफली स्टोर करने के लिए एक एक्सीलेंट मटेरियल बनाता है.

डाइजेशन इम्प्रूव करता है: तांबे के वेसल्स से पानी पीने से डाइजेस्टिव एंजाइम्स स्टिम्युलेट होते हैं, जिससे डाइजेशन बेटर होता है और न्यूट्रिएंट्स का एब्जॉर्प्शन इम्प्रूव होता है.

इन्फ्लेमेशन कम करता है: तांबे में एंटी-इन्फ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज होती हैं, जो पूरी बॉडी में इन्फ्लेमेशन को रिड्यूस करने और उससे जुड़े पेन को कम करने में हेल्प कर सकती हैं.

एनर्जी बढ़ाता है: तांबे के वेसल्स से पानी पीने से एनर्जी लेवल्स बूस्ट होने और ओवरऑल हेल्थ और वेल-बीइंग इम्प्रूव होने की बात कही जाती है.

इम्यूनिटी बूस्ट करता है: तांबा व्हाइट ब्लड सेल्स के प्रोडक्शन को बढ़ाकर इम्यून सिस्टम को बूस्ट करने में हेल्प कर सकता है, जो इन्फेक्शंस से फाइट करने और गुड हेल्थ बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी हैं.

एंटीऑक्सीडेंट प्रॉपर्टीज: तांबे में एंटीऑक्सीडेंट प्रॉपर्टीज भी होती हैं, जो बॉडी को ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और फ्री रेडिकल्स से होने वाले डैमेज से प्रोटेक्ट करने में हेल्प कर सकती हैं.

ऐसे में देखा जा सकता है कि तांबा एक एसेंशियल मिनरल है, जो गुड हेल्थ बनाए रखने में एक क्रूशियल रोल प्ले करता है. इससे तांबे के बर्तन आपकी डेली रूटीन में एक वैल्यूएबल एडिशन बन जाते हैं.

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साइलेंट किलर होता है ये वाला कैंसर, शुरुआत में तो बिल्कुल नहीं दिखते लक्षण और अचानक से…

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World Lung Cancer Day: हर साल 1 अगस्त को वर्ल्ड लंग्स कैंसर डे मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य है लोगों को लंग कैंसर के लक्षण, कारण, रोकथाम और इलाज के बारे में जागरूक करना. फेफड़े का कैंसर दुनिया भर में सबसे ज्यादा जानलेवा कैंसरों में से एक है, जिसकी पहचान अक्सर बहुत देर से होती है.

बता दें, इस बार की थीम “Breaking Barriers: Championing Early Detection and Equal Care” रखी गई है. यानी अगर समय रहते लंग कैंसर की पहचान हो जाए, तो जीवन बचाया जा सकता है. इसके लिए खुद की और परिवार की देखभाल करना बेहद जरूरी है. अब हम जान लेतें हैं कि, अचानक इसके लक्षण कैसे दिखते हैं.

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लंग कैंसर को साइलेंट किलर कहा जाता है

वैशाली में स्थित मैक्स हॉस्पिटल के निदेशक-पल्मोनोलॉजी डॉ. शरद जोशी का कहना है कि, लंग कैंसर, जिसे “साइलेंट किलर” कहा जाता है, एक ऐसा कैंसर है जो प्रारंभिक अवस्था में अधिकतर लक्षणों का कोई संकेत नहीं देता. इस कैंसर का सबसे बड़ा खतरा यही है कि, जब तक इसके लक्षण दिखते हैं, तब तक यह गंभीर अवस्था में पहुंच चुका होता है. हर साल दुनिया भर में लाखों लोग इस खतरनाक बीमारी का शिकार होते हैं और यह कैंसर मृत्यु दर के हिसाब से अन्य प्रकार के कैंसर के मुकाबले सबसे अधिक खतरनाक है.

शुरुआत में लक्षण कैसे दिखते हैं

लंग कैंसर के शुरुआती चरण में कोई खास लक्षण नहीं होते, जिससे व्यक्ति इसे पहचान सके. अधिकतर लोग इसे साधारण खांसी या सर्दी-जुकाम समझकर नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन जब बीमारी बढ़ जाती है, तब इसके लक्षण स्पष्ट होने लगते हैं, जैसे लगातार खांसी, सांस लेने में दिक्कत, सीने में दर्द और वजन का अचानक कम होना.

तंबाकू और धूम्रपान है मुख्य कारण

लंग कैंसर का सबसे बड़ा कारण तंबाकू और धूम्रपान है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, लगभग 85% लंग कैंसर के मामले धूम्रपान से जुड़े होते हैं. धूम्रपान करने वाले लोग इस कैंसर के लिए सबसे अधिक जोखिम में होते हैं. हालांकि, जो लोग धूम्रपान नहीं करते, उन्हें भी यह कैंसर हो सकता है, लेकिन उनके लिए यह जोखिम कम होता है.

लंग कैंसर डे पर लोगों के लिए जागरूकता

वर्ल्ड लंग कैंसर डे पर यह संदेश दिया जाता है कि, अगर हम समय रहते लंग कैंसर के संकेतों को पहचानें और उचित जांच कराएं, तो इस बीमारी का इलाज संभव हो सकता है. धूम्रपान से बचने, स्वस्थ जीवनशैली अपनाने और नियमित स्वास्थ्य जांच से हम लंग कैंसर के खतरे को कम कर सकते हैं.

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एक दिन में कितना ब्रेस्ट मिल्क पंप कर सकती हैं महिलाएं, क्या हो जाती है दिक्कत?

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Breast Milk Pumping Tips: बच्चे के लिए मा का दूध सबसे ज्यादा जरूरी होता है. क्योंकि उसके विकास और बीमारियों से बचाने के लिए अहम होता है. लेकिन कभी-कभी माहर वक्त शिशु को स्तनपान नहीं करा सकती, खासकर कामकाजी महिलाओं के लिए यह एक बड़ी चुनौती होती है.

दरअसल, ब्रेस्ट मिल्क पंप करना एक अहम विकल्प बन जाता है. सवाल यह उठता है कि, एक दिन में कितनी बार और कितना दूध पंप करना सुरक्षित होता है? क्या जरूरत से ज्यादा पंपिंग से कोई दिक्कत हो सकती है? डॉ. सगुफ्ता परवीन कहती हैं कि, ब्रेस्ट मिल्क पंपिंग समझदारी और सही समय के अनुसार करना जरूरी है. अगर इसे सही तरीके से न किया जाए, तो यह फायदे की बजाय नुकसान पहुंचा सकता है.

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एक दिन में कितनी बार करें ब्रेस्ट मिल्क पंपिंग?

अगर मां शिशु को डायरेक्ट स्तनपान नहीं करा रही है तो हर 2 घंटे में दूध पंप करना चाहिए, यानी दिनभर में लगभग 8 बार करवा सकती हैं. इससे ब्रेस्ट में फुलनेस या जकड़न नहीं होती. वर्किंग मॉम्स या वे महिलाएं जो फुल टाइम ब्रेस्टफीडिंग नहीं कर पातीं, उनके लिए दिन में कम से कम 6 बार पंपिंग जरूरी मानी जाती है.

एक बार में कितना दूध निकले तो सही है?

  • हर महिला की शारीरिक बनावट और दूध उत्पादन की क्षमता अलग होती है
  • पहले हफ्तों में लगभग 30-60 मिलीलीटर दूध निकल सकता है
  • कुछ दिनों बाद इसकी मात्रा बढ़कर 120 मिलीलीटर हो सकती है
  • महत्वपूर्ण यह नहीं कि कितना निकल रहा है, बल्कि यह है कि पंपिंग नियमित और आरामदायक हो

क्या ज्यादा पंप करने से कोई दिक्कत हो सकती है?

  • अगर आप बार-बार या जरूरत से ज्यादा पंपिंग करती हैं, तो कुछ समस्याएं हो सकती हैं
  • निप्पल में दर्द या सूजन
  • दूध के ओवरप्रोडक्शन से ब्रेस्ट में भारीपन और लीक होना
  • फटी या खुरदरी त्वचा
  • कभी-कभी दूध उत्पादन कम भी हो सकता है, क्योंकि शरीर भ्रम में आ जाता है

पंपिंग के दौरान किन बातों का रखें ध्यान?

  • हमेशा साफ और स्टरलाइज्ड पंप का ही इस्तेमाल करें
  • आरामदायक मुद्रा में बैठें
  • तनाव मुक्त माहौल में पंपिंग करें
  • दूध को निकालने के तुरंत बाद ठंडी जगह या फ्रिज में स्टोर करें

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यूरीन से आ रही है बदबू, हो सकते हैं ये 5 गंभीर कारण…जानिए लक्षण

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Smelly Urine Causes: मारा शरीर जब किसी समस्या से जूझ रहा होता है, तो वह कई बार छोटे-छोटे संकेतों के जरिये हमें चेतावनी देता है. इन्हीं संकेतों में से एक है, यूरीन से आने वाली तेज या असामान्य बदबू. बहुत से लोग इसे नजरअंदाज़ कर देते हैं, सोचते हैं कि पानी कम पिया होगा या कुछ तीखा खा लिया होगा. लेकिन यह बदबू कई बार गंभीर बीमारियों की तरफ भी इशारा कर सकती है?

डॉ. सुप्रिया पुराणिक बताती हैं कि, यूरीन की गंध में बदलाव केवल डाइट की वजह से नहीं होता, बल्कि यह शरीर में छिपे संक्रमण या ऑर्गन से जुड़ी किसी गंभीर परेशानी का संकेत भी हो सकता है. ऐसे में इसे नजरअंदाज़ करना भविष्य में स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है. तो आइए जानें वे 5 संभावित कारण, जिनकी वजह से यूरीन से बदबू आ सकती है.

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यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI)

महिलाओं में सबसे आम कारणों में से एक है यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन. इस संक्रमण में पेशाब से बदबू आने के साथ-साथ जलन, बार-बार पेशाब आना और निचले पेट में दर्द जैसी परेशानियाँ होती हैं.

  • पेशाब करते समय जलन
  • बार-बार यूरिन आना
  • गाढ़े रंग का यूरीन
  • दुर्गंध युक्त पेशाब

डिहाइड्रेशन

शरीर में जब पानी की मात्रा कम हो जाती है, तो यूरीन अधिक गाढ़ा और पीले रंग का हो जाता है, जिससे उसमें से तेज़ गंध आने लगती है.

  • मुंह सूखना
  • चक्कर आना
  • थकान
  • गहरे पीले रंग की पेशाब

डायबिटीज और कीटोएसिडोसिस

डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों में जब ब्लड शुगर लेवल बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है, तो यूरीन से फलों जैसी मीठी या अजीब गंध आने लगती है. इसे डायबेटिक कीटोएसिडोसिस कहा जाता है, जो एक मेडिकल इमरजेंसी हो सकती है.

  • अधिक प्यास लगना
  • बार-बार पेशाब आना
  • सांसों में भी अजीब गंध
  • थकावट और उलझन

लिवर से जुड़ी समस्याएं

लिवर ठीक से काम नहीं करता तो टॉक्सिन्स शरीर से नहीं निकल पाते, जिससे यूरीन की गंध बदल जाती है.

  • आंखों और त्वचा का पीला पड़ना
  • पेट में सूजन
  • भूख न लगना
  • गहरे रंग की यूरीन

कुछ दवाइयों और सप्लीमेंट्स का प्रभाव

कई बार विटामिन बी6, ऐंटीबायोटिक्स या कुछ खास दवाएं भी यूरीन की गंध को बदल देती हैं.

  • यूरीन का रंग और गंध दोनों बदलना
  • कोई और बीमारी न होते हुए भी बदलाव महसूस होना

यूरीन से बदबू आने पर क्या करना चाहिए

  • पानी खूब पिएं
  • साफ-सफाई का ध्यान रखें
  • तीखा या बहुत प्रोटीन युक्त भोजन कम करें
  • लक्षण बने रहने पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें

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