एक दिन में कितना ब्रेस्ट मिल्क पंप कर सकती हैं महिलाएं, क्या हो जाती है दिक्कत?

एक दिन में कितना ब्रेस्ट मिल्क पंप कर सकती हैं महिलाएं, क्या हो जाती है दिक्कत?


Breast Milk Pumping Tips: बच्चे के लिए मा का दूध सबसे ज्यादा जरूरी होता है. क्योंकि उसके विकास और बीमारियों से बचाने के लिए अहम होता है. लेकिन कभी-कभी माहर वक्त शिशु को स्तनपान नहीं करा सकती, खासकर कामकाजी महिलाओं के लिए यह एक बड़ी चुनौती होती है.

दरअसल, ब्रेस्ट मिल्क पंप करना एक अहम विकल्प बन जाता है. सवाल यह उठता है कि, एक दिन में कितनी बार और कितना दूध पंप करना सुरक्षित होता है? क्या जरूरत से ज्यादा पंपिंग से कोई दिक्कत हो सकती है? डॉ. सगुफ्ता परवीन कहती हैं कि, ब्रेस्ट मिल्क पंपिंग समझदारी और सही समय के अनुसार करना जरूरी है. अगर इसे सही तरीके से न किया जाए, तो यह फायदे की बजाय नुकसान पहुंचा सकता है.

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एक दिन में कितनी बार करें ब्रेस्ट मिल्क पंपिंग?

अगर मां शिशु को डायरेक्ट स्तनपान नहीं करा रही है तो हर 2 घंटे में दूध पंप करना चाहिए, यानी दिनभर में लगभग 8 बार करवा सकती हैं. इससे ब्रेस्ट में फुलनेस या जकड़न नहीं होती. वर्किंग मॉम्स या वे महिलाएं जो फुल टाइम ब्रेस्टफीडिंग नहीं कर पातीं, उनके लिए दिन में कम से कम 6 बार पंपिंग जरूरी मानी जाती है.

एक बार में कितना दूध निकले तो सही है?

  • हर महिला की शारीरिक बनावट और दूध उत्पादन की क्षमता अलग होती है
  • पहले हफ्तों में लगभग 30-60 मिलीलीटर दूध निकल सकता है
  • कुछ दिनों बाद इसकी मात्रा बढ़कर 120 मिलीलीटर हो सकती है
  • महत्वपूर्ण यह नहीं कि कितना निकल रहा है, बल्कि यह है कि पंपिंग नियमित और आरामदायक हो

क्या ज्यादा पंप करने से कोई दिक्कत हो सकती है?

  • अगर आप बार-बार या जरूरत से ज्यादा पंपिंग करती हैं, तो कुछ समस्याएं हो सकती हैं
  • निप्पल में दर्द या सूजन
  • दूध के ओवरप्रोडक्शन से ब्रेस्ट में भारीपन और लीक होना
  • फटी या खुरदरी त्वचा
  • कभी-कभी दूध उत्पादन कम भी हो सकता है, क्योंकि शरीर भ्रम में आ जाता है

पंपिंग के दौरान किन बातों का रखें ध्यान?

  • हमेशा साफ और स्टरलाइज्ड पंप का ही इस्तेमाल करें
  • आरामदायक मुद्रा में बैठें
  • तनाव मुक्त माहौल में पंपिंग करें
  • दूध को निकालने के तुरंत बाद ठंडी जगह या फ्रिज में स्टोर करें

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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यूरीन से आ रही है बदबू, हो सकते हैं ये 5 गंभीर कारण…जानिए लक्षण

यूरीन से आ रही है बदबू, हो सकते हैं ये 5 गंभीर कारण…जानिए लक्षण


Smelly Urine Causes: मारा शरीर जब किसी समस्या से जूझ रहा होता है, तो वह कई बार छोटे-छोटे संकेतों के जरिये हमें चेतावनी देता है. इन्हीं संकेतों में से एक है, यूरीन से आने वाली तेज या असामान्य बदबू. बहुत से लोग इसे नजरअंदाज़ कर देते हैं, सोचते हैं कि पानी कम पिया होगा या कुछ तीखा खा लिया होगा. लेकिन यह बदबू कई बार गंभीर बीमारियों की तरफ भी इशारा कर सकती है?

डॉ. सुप्रिया पुराणिक बताती हैं कि, यूरीन की गंध में बदलाव केवल डाइट की वजह से नहीं होता, बल्कि यह शरीर में छिपे संक्रमण या ऑर्गन से जुड़ी किसी गंभीर परेशानी का संकेत भी हो सकता है. ऐसे में इसे नजरअंदाज़ करना भविष्य में स्वास्थ्य पर भारी पड़ सकता है. तो आइए जानें वे 5 संभावित कारण, जिनकी वजह से यूरीन से बदबू आ सकती है.

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यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI)

महिलाओं में सबसे आम कारणों में से एक है यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन. इस संक्रमण में पेशाब से बदबू आने के साथ-साथ जलन, बार-बार पेशाब आना और निचले पेट में दर्द जैसी परेशानियाँ होती हैं.

  • पेशाब करते समय जलन
  • बार-बार यूरिन आना
  • गाढ़े रंग का यूरीन
  • दुर्गंध युक्त पेशाब

डिहाइड्रेशन

शरीर में जब पानी की मात्रा कम हो जाती है, तो यूरीन अधिक गाढ़ा और पीले रंग का हो जाता है, जिससे उसमें से तेज़ गंध आने लगती है.

  • मुंह सूखना
  • चक्कर आना
  • थकान
  • गहरे पीले रंग की पेशाब

डायबिटीज और कीटोएसिडोसिस

डायबिटीज़ से पीड़ित लोगों में जब ब्लड शुगर लेवल बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है, तो यूरीन से फलों जैसी मीठी या अजीब गंध आने लगती है. इसे डायबेटिक कीटोएसिडोसिस कहा जाता है, जो एक मेडिकल इमरजेंसी हो सकती है.

  • अधिक प्यास लगना
  • बार-बार पेशाब आना
  • सांसों में भी अजीब गंध
  • थकावट और उलझन

लिवर से जुड़ी समस्याएं

लिवर ठीक से काम नहीं करता तो टॉक्सिन्स शरीर से नहीं निकल पाते, जिससे यूरीन की गंध बदल जाती है.

  • आंखों और त्वचा का पीला पड़ना
  • पेट में सूजन
  • भूख न लगना
  • गहरे रंग की यूरीन

कुछ दवाइयों और सप्लीमेंट्स का प्रभाव

कई बार विटामिन बी6, ऐंटीबायोटिक्स या कुछ खास दवाएं भी यूरीन की गंध को बदल देती हैं.

  • यूरीन का रंग और गंध दोनों बदलना
  • कोई और बीमारी न होते हुए भी बदलाव महसूस होना

यूरीन से बदबू आने पर क्या करना चाहिए

  • पानी खूब पिएं
  • साफ-सफाई का ध्यान रखें
  • तीखा या बहुत प्रोटीन युक्त भोजन कम करें
  • लक्षण बने रहने पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें

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शराब और स्मोकिंग से भी ज्यादा खतरनाक है यह एक आदत, इस डॉक्टर ने बताया जान बचाने का तरीका

शराब और स्मोकिंग से भी ज्यादा खतरनाक है यह एक आदत, इस डॉक्टर ने बताया जान बचाने का तरीका


हाल ही में हुई कई रिसर्च बताती हैं कि अकेलापन और सोशल आइसोलेशन का हमारी हेल्थ पर उतना ही या उससे भी ज्यादा बुरा असर पड़ सकता है जितना कि शराब पीने या स्मोकिंग से होता है. यह सिर्फ एक इमोशनल फीलिंग नहीं है, बल्कि एक गंभीर हेल्थ रिस्क फैक्टर बनकर सामने आया है. अकेलेपन से क्रॉनिक स्ट्रेस बढ़ता है, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है. इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. कुछ स्टडीज तो यह भी बताती हैं कि अकेलापन दिन में 15 सिगरेट पीने जितना खतरनाक हो सकता है.  

यही नहीं, अकेलेपन का सीधा लिंक डिप्रेशन, एंग्जायटी और कॉग्निटिव डिक्लाइन से पाया गया है. बूढ़े लोगों में तो यह डिमेंशिया का भी रिस्क बढ़ा सकता है. जो लोग अकेला महसूस करते हैं, उन्हें अक्सर नींद आने में दिक्कत होती है या उनकी नींद की क्वालिटी खराब होती है. इससे ओवरऑल हेल्थ पर नेगेटिव असर पड़ता है. इसके अलावा अकेले लोग अक्सर अनहेल्दी लाइफस्टाइल अपना लेते हैं, जैसे कि कम फिजिकल एक्टिविटी, अनहेल्दी ईटिंग हैबिट्स और कभी-कभी शराब या ड्रग्स का सहारा लेना, जिससे उनकी हेल्थ और बिगड़ जाती है.

पर्पसफुल जीने में लॉन्ग और सेटिस्फाइंग लाइफ का रहस्य

102 साल के अमेरिकी डॉ. हॉवर्ड टकर ने वर्ल्ड के सबसे ओल्डेस्ट लिविंग फिजिशियन के तौर पर गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपनी जगह बनाई है. उनका मानना है कि शराब और धूम्रपान से भी ज्यादा खतरनाक एक आदत है “अकेलापन”. उनका कहना है कि अकेलापन हृदय रोग, डिप्रेशन और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है. वो कहते हैं कि अगर आपकी लाइफ में कोई पर्पस नहीं है, तो कोई भी मिरेकल डाइट या सप्लीमेंट आपको लॉन्ग लाइफ नहीं दे सकता. एक इंटरव्यू में, डॉ. टकर ने कहा कि रिटायरमेंट लॉन्गविटी का एनिमी है. उनके हिसाब से, लॉन्ग और सेटिस्फाइंग लाइफ का फॉर्मूला किसी पिल में नहीं, बल्कि पर्पसफुल लाइफ जीने में है. 

कंटीन्यूअस एक्टिविटी और लर्निंग

डॉ. टकर लाइफ की बिजीनेस से दूर हटने के बजाय इंटेलेक्चुअली और इमोशनली एक्टिव रहने को सपोर्ट करते हैं. वे कहते हैं कि हॉबीज, वॉलंटियर वर्क, या यहां तक कि लाइट रिस्पॉन्सिबिलिटीज भी ब्रेन को स्टिम्युलेट कर सकती हैं. उनके अनुसार, कंटीन्यूअस लर्निंग और क्यूरियोसिटी एसेंशियल मेंटल एक्सरसाइज हैं, जो कॉग्निटिव क्लैरिटी को मेंटेन करने में हेल्प करती हैं. डॉ. टकर ने 100 साल की एज तक मेडिकल प्रैक्टिस की और सिर्फ इसलिए रुके, क्योंकि जिस हॉस्पिटल से वे जुड़े थे… वह 2022 में क्लोज हो गया. 

रिलेशनशिप्स और पर्सनल पैशन

प्रोफेशनल एक्टिविटीज के अलावा, डॉ. टकर डीप रिलेशनशिप्स और पर्सनल पैशन से स्ट्रेंथ गेन करते हैं. उनकी मैरिज को 70 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं और वे फोर किड्स और टेन ग्रैंडचिल्ड्रन के एक लार्ज फैमिली के प्राउड हेड हैं. ये स्ट्रॉन्ग फैमिली बॉन्ड, उनकी होमटाउन की स्पोर्ट्स टीम्स के लिए उनकी अनवेवरिंग लॉयल्टी के साथ, उन्हें कंटीन्यूअस इमोशनल सपोर्ट और जॉय प्रोवाइड करती है. रिसर्च ने भी बार-बार दिखाया है कि डीप इमोशनल अटैचमेंट और लाइफ के प्रति ऑप्टिमिस्टिक अप्रोच वाले लोग अक्सर लॉन्ग और हेल्दी लाइफ एंजॉय करते हैं.

लर्निंग और फिजिकल एक्टिविटी का इम्पोर्टेंस

डॉ. टकर सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, बल्कि एक लीगल स्कॉलर भी हैं. उन्होंने 67 साल की एज में लॉ की डिग्री हासिल की…ये प्रूव करते हुए कि एज कभी भी एकेडमिक या पर्सनल ग्रोथ में बैरियर नहीं बनती. मृत्यु दर के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने रियलिस्टिक अप्रोच अपनाई और कहा कि डेथ की इनविटेबिलिटी लाइफ की वैल्यू को और बढ़ा देती है. उनके लिए, एंड को एक्सेप्ट करना पर्सन को प्रेजेंट को एंथुसिएज्म के साथ एम्ब्रेस करने के लिए मोटिवेट करता है. फिजिकल एक्टिविटी भी टकर के फिलॉसफी का एक और पिलर है. वह डेली एक्टिविटी के इम्पोर्टेंस पर ज़ोर देते हैं, और कहते हैं कि 15 मिनट की सिंपल वॉक भी प्रीमैच्योर डेथ की पॉसिबिलिटी को काफी कम कर सकती है. 

बैलेंस्ड डाइट है इम्पोर्टेंट

उनकी डाइट बैलेंस और मॉडरेशन पर बेस्ड है. वह अपनी मॉर्निंग को सीजनल फ्रूट्स या सीरियल्स के साथ लो-फैट मिल्क से स्टार्ट करते हैं और कॉफी के बजाय टी प्रेफर करते हैं. मेंटल क्लैरिटी मेंटेन करने के लिए वह अक्सर लंच स्किप करते हैं और डिनर में यूजुअली फिश या कई तरह की वेजिटेबल्स खासकर ब्रोकली और कभी-कभार मीट शामिल होता है. 

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क्या होती है टाइप-5 डायबिटीज, यह टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज से कितनी खतरनाक?

क्या होती है टाइप-5 डायबिटीज, यह टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज से कितनी खतरनाक?


टाइप 5 डायबिटीज, जिसे अक्सर मोनोजेनिक डायबिटीज या युवावस्था में मैच्योरिटी से शुरू होने वाला डायबिटीज (MODY) कहा जाता है. ये डायबिटीज का एक रेयर और जेनेटिक फॉर्म है. ये टाइप 1 या टाइप 2 से डिफरेंट है. टाइप 5 डायबिटीज एक जीन में म्यूटेशन के कारण होती है, जो बॉडी में ब्लड शुगर के रेगुलेशन को अफेक्ट करता है.

Diabetes के एक्सपर्ट डॉ. राहुल बख्शी के अनुसार, टाइप-5 डायबिटीज यूजुअली टीनेज या अर्ली एडल्टहुड में अपीयर होता है, लेकिन इसके सिम्पटम्स दूसरे टाइप की डायबिटीज से सिमिलर होने के कारण इसे अक्सर टाइप 1 या टाइप 2 समझ लिया जाता है. MODY के कई सब-टाइप्स हैं और हर सब-टाइप डिफरेंट जीन म्यूटेशन से जुड़ा है. 

टाइप-1, टाइप-2 और टाइप-5 डायबिटीज में अंतर

  • टाइप-1 डायबिटीज: यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है. इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से पैन्क्रियाज में इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं पर हमला करके उन्हें नष्ट कर देती है. परिणामस्वरूप, शरीर बहुत कम या बिल्कुल भी इंसुलिन नहीं बना पाता. 
  • टाइप-2 डायबिटीज: यह डायबिटीज का सबसे आम प्रकार है. इसमें शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता या फिर इंसुलिन का ठीक से उपयोग नहीं कर पाता. यह अक्सर लाइफस्टाइल से जुड़ी होती है, जैसे मोटापा, शारीरिक गतिविधि की कमी और गलत खान-पान.
  • टाइप-5 डायबिटीज: जैसा कि ऊपर बताया गया है, इसका मुख्य कारण लंबे समय तक चला कुपोषण है, विशेष रूप से बचपन से ही अपर्याप्त पोषण. यह न तो ऑटोइम्यून है और न ही मुख्य रूप से इंसुलिन रेजिस्टेंस से संबंधित है. इसमें शरीर पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता, लेकिन इसे मेडिसन से नियंत्रित किया जा सकता है.

किस वजह से होती है टाइप-5 डायबिटीज?

टाइप-5 डायबिटीज का मेन रीजन एक जेनेटिक म्यूटेशन है. ये म्यूटेशन पेरेंट्स से बच्चों में ऑटोसोमल डोमिनेंट पैटर्न में ट्रांसमिट होता है. इसका मतलब है कि इस कंडीशन को डेवलप होने के लिए डिफेक्टिव जीन की सिर्फ एक कॉपी ही काफी होती है. अगर किसी पेरेंट को टाइप-5 डायबिटीज है, तो 50% चांस है कि उनके बच्चे को भी ये डिसीज इनहेरिट होगी. एन्वायरनमेंटल फैक्टर्स या लाइफस्टाइल इस टाइप की डायबिटीज का फैक्टर्स नहीं होते. ये एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो पैंक्रियाज के फंक्शन या सेल्यूलर लेवल पर इंसुलिन के प्रोडक्शन को अफेक्ट करता है.

ये होते हैं लक्षण

टाइप-5 डायबिटीज के सिम्पटम्स हर सबटाइप के हिसाब से थोड़े डिफरेंट हो सकते हैं, लेकिन कुछ कॉमन इंडिकेटर्स हैं जो इसे पहचानने में हेल्प करते हैं. सामन्य तौर पर, पेशेंट्स में छोटी एज से ही ब्लड शुगर का लेवल हल्का से मॉडरेट बढ़ा हुआ दिखता है. सबसे इम्पोर्टेंट बात ये है कि इसमें ओबेसिटी या इंसुलिन रेजिस्टेंस जैसे कोई सिम्पटम्स नहीं होते, जो कि टाइप-2 डायबिटीज में अक्सर दिखते हैं. इस कंडीशन का एक और बड़ा हिंट है फैमिली हिस्ट्री . अगर आपकी फैमिली में कई जनरेशंस से डायबिटीज चली आ रही है, तो MODY होने के चांसेस बढ़ जाते हैं. कुछ स्पेसिफिक MODY टाइप्स में बार-बार यूरिन आना, बहुत ज्यादा प्यास लगना, थकान और बिना किसी खास रीज़न के वेट लॉस जैसे सिम्पटम्स भी दिख सकते हैं. 

टाइप 5 डायबिटीज का मैनेजमेंट

टाइप-5 डायबिटीज का मैनेजमेंट इसके जेनेटिक म्यूटेशन पर डिपेंड करता है. कुछ टाइप्स में ट्रीटमेंट की नीड नहीं होती. दूसरों में ओरल सल्फोनीलुरिया की कम डोज हेल्प करती है, जो इंसुलिन प्रोडक्शन को स्टिम्युलेट करती है. हेल्दी लाइफस्टाइल और रेगुलर ब्लड शुगर मॉनिटरिंग भी जरूरी है. टाइप-1 या एडवांस्ड टाइप-2 के अपोजिट, अक्सर इंसुलिन थेरेपी की जरूरत नहीं होती.

ऐसे करें बचाव और ट्रीटमेंट

टाइप-5 डायबिटीज एक जेनेटिक कंडीशन है, इसे प्रिवेंट नहीं किया जा सकता. हालांकि, फैमिली हिस्ट्री चेक और जेनेटिक काउंसलिंग से अर्ली डायग्नोसिस पॉसिबल है. हेल्दी वेट और शुगर कंट्रोल जैसे लाइफस्टाइल चॉइसेस कॉम्प्लीकेशंस को कम कर सकते हैं. वहीं, इसका ट्रीटमेंट सबटाइप के अकॉर्डिंग कस्टमाइज किया जाता है, जिसमें जेनेटिक टेस्टिंग और एंडोक्रिनोलॉजिस्ट का इवैल्यूएशन गाइड करता है. ज्यादातर केसेस में ओरल मेडिसन ही पर्याप्त होती हैं. हालांकि, कुछ मामलों में इंसुलिन थेरेपी की जरूरत हो सकती है.

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आपको कब पड़ेगा हार्ट अटैक, AI पहले से ही कर देगा भविष्यवाणी

आपको कब पड़ेगा हार्ट अटैक, AI पहले से ही कर देगा भविष्यवाणी


आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह बहुत सारे डेटा को एक साथ देख सकता है और उसका एनालिसिस कर सकता है. दिल्ली स्थित अपोलो हॉस्पिटल के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश गोयल बताते हैं कि AI किसी मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, परिवार में पहले हुईं बीमारियों और जांच रिपोर्ट्स जैसे ब्लड टेस्ट, ECG और स्कैन को ध्यान में रखकर यह बता सकता है कि उस व्यक्ति को हार्ट अटैक होने की कितनी आशंका है. इस तकनीक की मदद से यह भी बताया जा सकता है कि मरीज की जान को कितना खतरा है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह बहुत सारे डेटा को एक साथ देख सकता है और उसका एनालिसिस कर सकता है. दिल्ली स्थित अपोलो हॉस्पिटल के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. मुकेश गोयल बताते हैं कि AI किसी मरीज की मेडिकल हिस्ट्री, परिवार में पहले हुईं बीमारियों और जांच रिपोर्ट्स जैसे ब्लड टेस्ट, ECG और स्कैन को ध्यान में रखकर यह बता सकता है कि उस व्यक्ति को हार्ट अटैक होने की कितनी आशंका है. इस तकनीक की मदद से यह भी बताया जा सकता है कि मरीज की जान को कितना खतरा है.

डॉ. गोयल के मुताबिक, AI की खासियत यह है कि यह इंसान से ज्यादा तेजी और सटीकता से काम करता है. एक अनुभवी डॉक्टर को जो चीजें समझने में समय लग सकता है, AI उसे चंद सेकेंड्स में बता देता है. यह तकनीक न सिर्फ मरीज की बीमारी का जल्दी पता लगाती है, बल्कि डॉक्टरों को सही समय पर सही फैसला लेने में भी मदद करती है. अब कई बड़े हॉस्पिटल और मेडिकल इंस्टिट्यूट AI का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके.

डॉ. गोयल के मुताबिक, AI की खासियत यह है कि यह इंसान से ज्यादा तेजी और सटीकता से काम करता है. एक अनुभवी डॉक्टर को जो चीजें समझने में समय लग सकता है, AI उसे चंद सेकेंड्स में बता देता है. यह तकनीक न सिर्फ मरीज की बीमारी का जल्दी पता लगाती है, बल्कि डॉक्टरों को सही समय पर सही फैसला लेने में भी मदद करती है. अब कई बड़े हॉस्पिटल और मेडिकल इंस्टिट्यूट AI का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके.

AI का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह बीमारी के लक्षणों को पहले ही पकड़ लेता है. इससे डॉक्टरों को पहले से पता चल जाता है कि मरीज को क्या खतरा हो सकता है. डॉ. गोयल कहते हैं, 'अगर हमें पहले से पता चल जाए कि मरीज को हार्ट अटैक का खतरा है तो हम समय रहते उसका इलाज शुरू कर सकते हैं. इससे न सिर्फ मरीज की जान बचाई जा सकती है, बल्कि उसकी सेहत को और बेहतर बनाया जा सकता है.'

AI का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह बीमारी के लक्षणों को पहले ही पकड़ लेता है. इससे डॉक्टरों को पहले से पता चल जाता है कि मरीज को क्या खतरा हो सकता है. डॉ. गोयल कहते हैं, ‘अगर हमें पहले से पता चल जाए कि मरीज को हार्ट अटैक का खतरा है तो हम समय रहते उसका इलाज शुरू कर सकते हैं. इससे न सिर्फ मरीज की जान बचाई जा सकती है, बल्कि उसकी सेहत को और बेहतर बनाया जा सकता है.’

उन्होंने बताया कि अगर AI किसी मरीज के डेटा को देखकर बता दे कि अगले कुछ साल में उसे हार्ट अटैक का खतरा है तो डॉक्टर उस मरीज को दवाइयां, लाइफस्टाइल में बदलाव या जरूरी ट्रीटमेंट शुरू करने की सलाह दे सकते हैं. इससे मरीज को न सिर्फ बीमारी से बचाया जा सकता है, बल्कि उसकी जिंदगी की क्वालिटी भी बेहतर हो सकती है.

उन्होंने बताया कि अगर AI किसी मरीज के डेटा को देखकर बता दे कि अगले कुछ साल में उसे हार्ट अटैक का खतरा है तो डॉक्टर उस मरीज को दवाइयां, लाइफस्टाइल में बदलाव या जरूरी ट्रीटमेंट शुरू करने की सलाह दे सकते हैं. इससे मरीज को न सिर्फ बीमारी से बचाया जा सकता है, बल्कि उसकी जिंदगी की क्वालिटी भी बेहतर हो सकती है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि AI भविष्य में दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों को कम करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा. आजकल हार्ट अटैक दुनिया भर में मौत का बड़ा कारण है, लेकिन AI की मदद से अगर हमें पहले से पता चल जाए कि खतरा क्या है तो इसे रोकना आसान हो जाएगा. यह तकनीक न सिर्फ मरीजों के लिए फायदेमंद है, बल्कि डॉक्टरों और हॉस्पिटल्स के लिए भी गेम-चेंजर साबित हो रही है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि AI भविष्य में दिल की बीमारियों से होने वाली मौतों को कम करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा. आजकल हार्ट अटैक दुनिया भर में मौत का बड़ा कारण है, लेकिन AI की मदद से अगर हमें पहले से पता चल जाए कि खतरा क्या है तो इसे रोकना आसान हो जाएगा. यह तकनीक न सिर्फ मरीजों के लिए फायदेमंद है, बल्कि डॉक्टरों और हॉस्पिटल्स के लिए भी गेम-चेंजर साबित हो रही है.

डॉ. गोयल कहते हैं कि AI का इस्तेमाल अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन आने वाले समय में यह और भी स्मार्ट और सटीक होगा. इससे न सिर्फ हार्ट अटैक, बल्कि दूसरी कई गंभीर बीमारियों को भी पहले से पकड़ा जा सकेगा.

डॉ. गोयल कहते हैं कि AI का इस्तेमाल अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन आने वाले समय में यह और भी स्मार्ट और सटीक होगा. इससे न सिर्फ हार्ट अटैक, बल्कि दूसरी कई गंभीर बीमारियों को भी पहले से पकड़ा जा सकेगा.

Published at : 01 Aug 2025 06:59 AM (IST)

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