बिस्तर पर जाते ही दिखते हैं हार्ट फेल्योर के ये लक्षण, अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं लोग

बिस्तर पर जाते ही दिखते हैं हार्ट फेल्योर के ये लक्षण, अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं लोग


अगर आप सीधे लेटते हैं और आपकी सांस फूलने लगती है या आपको तकिए के सहारे सोना पड़ता है, तो यह संकेत हो सकता है कि आपके फेफड़ों में पानी भर रहा है, जो हार्ट फेल्योर का लक्षण है.

अगर आप सीधे लेटते हैं और आपकी सांस फूलने लगती है या आपको तकिए के सहारे सोना पड़ता है, तो यह संकेत हो सकता है कि आपके फेफड़ों में पानी भर रहा है, जो हार्ट फेल्योर का लक्षण है.

लेटते समय या सोते हुए सांस में घरघराहट की आवाज या बहुत ज्यादा खांसी आए, तो यह भी खतरे का संकेत हो सकता है. इसे फेफड़ों में जमा तरल के कारण अस्थमा जैसी समस्या माना जाता है और हार्ट फेल्योर का लक्षण भी हो सकता है.

लेटते समय या सोते हुए सांस में घरघराहट की आवाज या बहुत ज्यादा खांसी आए, तो यह भी खतरे का संकेत हो सकता है. इसे फेफड़ों में जमा तरल के कारण अस्थमा जैसी समस्या माना जाता है और हार्ट फेल्योर का लक्षण भी हो सकता है.

जब आप आराम के लिए बिस्तर पर लेटते हैं, वहीं अगर तब पैरों या टखनों में सूजन महसूस होती है तो यह दिल की कमजोरी या हार्ट फेल्योर का लक्षण हो सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर में जमा फ्लूइड वापस नसों में लौट नहीं पाता है.

जब आप आराम के लिए बिस्तर पर लेटते हैं, वहीं अगर तब पैरों या टखनों में सूजन महसूस होती है तो यह दिल की कमजोरी या हार्ट फेल्योर का लक्षण हो सकता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर में जमा फ्लूइड वापस नसों में लौट नहीं पाता है.

अगर बिना किसी कारण के आपका वजन बढ़ रहा है, खासकर पेट या टांगों में सूजन के साथ, तो यह भी संकेत हो सकता है कि आपके शरीर में ज्यादा फैट और तरल पदार्थ जमा हो रहा है जो हार्ट फेल का संकेत हो सकता है.

अगर बिना किसी कारण के आपका वजन बढ़ रहा है, खासकर पेट या टांगों में सूजन के साथ, तो यह भी संकेत हो सकता है कि आपके शरीर में ज्यादा फैट और तरल पदार्थ जमा हो रहा है जो हार्ट फेल का संकेत हो सकता है.

अगर आप पूरी रात करवटें बदलते रहते हैं, अच्छी नींद नहीं आती, या सुबह उठकर भी थके हुए लगते हैं तो यह संकेत हो सकता है कि हार्ट शरीर को ठीक से ब्लड सप्लाई नहीं कर पा रहा है और इससे भी हार्ट फेल्योर हो सकता है.

अगर आप पूरी रात करवटें बदलते रहते हैं, अच्छी नींद नहीं आती, या सुबह उठकर भी थके हुए लगते हैं तो यह संकेत हो सकता है कि हार्ट शरीर को ठीक से ब्लड सप्लाई नहीं कर पा रहा है और इससे भी हार्ट फेल्योर हो सकता है.

वहीं हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और फैमिली हिस्ट्री भी हार्ट फेल्योर के बड़े कारण होते हैं, अगर आपको ये समस्याएं हैं, तो समय पर चेकअप कराना बहुत जरूरी है.

वहीं हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और फैमिली हिस्ट्री भी हार्ट फेल्योर के बड़े कारण होते हैं, अगर आपको ये समस्याएं हैं, तो समय पर चेकअप कराना बहुत जरूरी है.

हार्ट फेल्योर से बचने के लिए धूम्रपान और तंबाकू छोड़ें, तेल, घी और फैट को कम करें, साथ ही हेल्दी डाइट लें, स्ट्रेस कम करें और नींद पूरी लें.

हार्ट फेल्योर से बचने के लिए धूम्रपान और तंबाकू छोड़ें, तेल, घी और फैट को कम करें, साथ ही हेल्दी डाइट लें, स्ट्रेस कम करें और नींद पूरी लें.

इसके अलावा हार्ट फेल्योर से बचने के लिए रोजाना कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज करें, जैसे तेज वॉक, साइकलिंग या स्विमिंग.

इसके अलावा हार्ट फेल्योर से बचने के लिए रोजाना कम से कम 30 मिनट एक्सरसाइज करें, जैसे तेज वॉक, साइकलिंग या स्विमिंग.

Published at : 04 Aug 2025 12:33 PM (IST)

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बॉडी में एंट्री करते ही डिटेक्ट होगा कैंसर, इन वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकाली बेहद खास तकनीक

बॉडी में एंट्री करते ही डिटेक्ट होगा कैंसर, इन वैज्ञानिकों ने ढूंढ निकाली बेहद खास तकनीक


Rapid Cancer Detection: कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए अब एक राहत भरी खबर सामने आई है. वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई तकनीक विकसित की है. जिसमें न आपको इंजेक्शन लगाने की जरूरत पड़ेगी और किसी प्रकार का रेडिएशन डालना पड़ेगा.  यह खोज न केवल मरीजों की जान बचा सकती है, बल्कि कैंसर के इलाज का भविष्य भी बदल सकती है. 

शुरुआती स्तर पर कैंसर की पहचान

ब्रिटेन के रॉयल मार्सडेन एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट और लंदन के कैंसर अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक की खोज की है. इस तकनीक में मरीजों का पूरे शरीर का एमआरआई स्कैन किया जाता है, जिससे MRD यानी मायलोमा के अंश भी पकड़ में आ जाते हैं. भले ही बाकी सभी टेस्ट नॉर्मल आए हों. 

ये भी पढ़े- सोशल मीडिया से क्या वाकई छिन जाते हैं नींद और चैन? जानें बच्चों की सेहत पर कितना खराब पड़ता है असर

रिसर्च में क्या निकला 

रिसर्च में 70 मायलोमा मरीजों को शामिल किया गया, जिन्हें स्टेम सेल ट्रांसप्लांट दिया गया था. सभी को ट्रांसप्लांट से पहले और बाद में MRI दिया गया.रिसर्च में यह बात सामने आई कि, हर तीन में से एक मरीज के शरीर में इलाज के बाद भी कैंसर की हल्की मौजूदगी पाई गई, जिसे सिर्फ इस स्कैन से ही पकड़ा लिया गया. इतना ही नहीं, जिन मरीजों में यह बीमारी स्कैन में दिखी, उनकी ओवरऑल सर्वाइवल रेट भी कम रही.

MRI तकनीक क्यों है खास?

यह स्कैनिंग तकनीक रेडिएशन फ्री है और इसके लिए किसी तरह के इंजेक्शन या सुई की जरूरत नहीं होती. इसका मतलब है कि यह पूरी तरह सुरक्षित है, खासकर उन मरीजों के लिए जिन्हें लंबे समय तक निगरानी में रखा जाता है. 

रॉयल मार्सडेन की कहानी क्या है 

जानकारी के मुताबिक, 57 साल के मरीज रॉयल मार्सडेन ने बताया कि, इस स्कैनिंग की वजह से उनके कैंसर का समय रहते पता चल गया और इलाज जल्दी शुरू हो सका. उन्होंने बताया कि, इस तकनीक ने न केवल उनकी जान बचाई, बल्कि उन्हें फिर से फाइटर जेट उड़ाने और ऑपरेशनल ड्यूटी करने का मौका भी दिया. 

वैज्ञानिकों ने क्या कहा?

प्रोफेसर क्रिस्टीना मेसिउ का कहना है कि, यह स्कैनिंग तकनीक इलाज की प्रतिक्रिया को समझने में मदद करती है और पारंपरिक जांचों से छूट जाने वाले कैंसर को पकड़ती है.वहीं प्रोफेसर मार्टिन काइजर ने इसे “गोल्ड स्टैंडर्ड प्रिसिजन इमेजिंग” कहा है, जो मायलोमा के इलाज को नई दिशा दे रही है.

ये भी पढ़ें: गैस की वजह से दर्द या हार्ट अटैक? समझें दोनों में अंतर, जो समझ नहीं पाते लोग

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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ये 35 दवाएं सरकार ने कर दीं बेहद सस्ती, जानें किन बीमारियों में देती हैं राहत?

ये 35 दवाएं सरकार ने कर दीं बेहद सस्ती, जानें किन बीमारियों में देती हैं राहत?


राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) ने उपभोक्ताओं को राहत देने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. प्राधिकरण ने 35 आवश्यक दवाओं की कीमतों में कमी की है. यह फैसला रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा एनपीपीए की सिफारिश के आधार पर लिया गया है. कीमतों में कटौती का लाभ खासतौर पर दिल, डायबिटीज, मानसिक रोग और इंफेक्शन जैसी पुरानी बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को मिलेगा.

किन दवाओं की कीमतें घटीं और किस बीमारी में मददगार हैं?

  • 1. एसिक्लोफेनाक-पैरासिटामोल-ट्रिप्सिन काइमोट्रिप्सिन
  • बीमारी: दर्द और सूजन (आर्थराइटिस, चोट, सर्जरी के बाद)
  • नई कीमत: 13 रुपये प्रति टैबलेट (पहले 15.01 रुपये तक थी)
  • 2. एमोक्सिसिलिन-पोटेशियम क्लैवुलनेट कॉम्बिनेशन
  • बीमारी: बैक्टीरियल इंफेक्शन (गले का संक्रमण, साइनस, फेफड़ों के संक्रमण)
  • 3. एटोरवास्टेटिन + क्लोपिडोग्रेल
  • बीमारी: हार्ट डिजीज, कोलेस्ट्रॉल और ब्लड क्लॉट रोकथाम
  • नई कीमत: 25.61 मूत्र मार्ग के संक्रमण प्रति टैबलेट
  • 4. एम्पैग्लिफ्लोजिन, सिटाग्लिप्टिन, मेटफॉर्मिन (ओरल एंटीडायबिटिक)
  • बीमारी: टाइप-2 डायबिटीज, ब्लड शुगर नियंत्रण
  • 5. डिक्लोफेनाक इंजेक्शन
  • बीमारी: गंभीर दर्द और सूजन (आर्थराइटिस, चोट, पोस्ट-ऑपरेटिव पेन)
  • नई कीमत: 31.77 मूत्र मार्ग के संक्रमण प्रति mL
  • 6. सेफिक्साइम + पैरासिटामोल (ओरल सस्पेंशन)
  • बीमारी: बच्चों में बुखार और बैक्टीरियल इंफेक्शन
  • 7. कोलेकैल्सिफेरॉल (विटामिन D ड्रॉप्स)
  • बीमारी: विटामिन D की कमी, हड्डियों की मजबूती

नियम तोड़ने पर सख्त कार्रवाई

अगर नई कीमतों का पालन नहीं किया गया तो डीपीसीओ, 2013 और आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत कार्रवाई होगी. ज्यादा वसूले गए पैसे ब्याज के साथ वापस करने होंगे. सभी दुकानदारों को अपने यहां नई दवाओं की कीमतों की लिस्ट लगानी जरूरी है.

दवा कंपनियों के लिए नियम

निर्माताओं को नई कीमतों की लिस्ट फॉर्म V में अपडेट करनी होगी और इसे इंटीग्रेटेड फार्मास्युटिकल डेटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम पर डालना होगा. साथ ही इसकी जानकारी एनपीपीए और राज्य औषधि अधिकारियों को देनी होगी.

जीएसटी का नियम

एनपीपीए ने कहा है कि तय कीमतों में जीएसटी शामिल नहीं है. जीएसटी अलग से लगाया जाएगा. इस आदेश के बाद पुरानी कीमतों वाले सभी आदेश रद्द हो गए हैं.

मरीजों को क्या फायदा होगा?

इन दवाओं की कीमत कम होने से उन लोगों को सीधा फायदा मिलेगा जो लंबे समय से महंगी दवाएं खरीदते हैं. अब इलाज का खर्च कम होगा और मरीजों की जेब पर बोझ घटेगा. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ता करने में मदद करेगा.

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किन बीमारियों ने छीन लीं शिबू सोरेन की सांसें, जानें ये कितनी खतरनाक?

किन बीमारियों ने छीन लीं शिबू सोरेन की सांसें, जानें ये कितनी खतरनाक?


झारखंड मुक्ति मोर्चा के फाउंडर और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने आज दिल्ली में अंतिम सांस ली. वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे, जिसके चलते उनको दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के नेफ्रोद डिपार्टमेंट में एडमिट भर्ती करवाया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. इसकी जानकारी देते हुए झारखंड के मुख्यमंत्री और उनके बेटे हेमंत सोरेने ने बताया कि “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं. आज मैं शून्य हो गया हूं.” चलिए, आपको बताते हैं कि किस बीमारी से पीड़ित थे झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन और यह कितना खतरनाक है. 

किस बीमारी से पीड़ित थे शिबू सोरेन

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 81 साल के शिबू सोरेन किडनी की बीमारी से पीड़ित थे साथ में वे शुगर और हार्ट की समस्याओं से भी जूझ रहे थे. इसके अलावा उनको कई अन्य तरह की समस्याएं भी थीं. इसके चलते लंबे समय से अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. उन्हें अचानक ब्रेन स्ट्रोक हुआ था, जिसके चलते उनको अस्पताल में भर्ती करवाया गया था और वे पिछले 2 दिनों से वेंटीलेटर पर थे. 

कितनी खतरनाक है बीमारी

किडनी हमारे शरीर से टॉक्सिन और अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने का काम करती है. जब यह ठीक से काम नहीं करती, तो शरीर में हानिकारक तत्व जमा होने लगते हैं. लंबे समय तक ऐसा रहने पर किडनी फेलियर हो सकता है, जिसमें डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट जरूरी हो जाता है. किडनी रोग अक्सर डायबिटीज और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों के कारण बढ़ता है.

डायबिटीज को साइलेंट किलर कहा जाता है क्योंकि यह धीरे-धीरे शरीर के हर अंग पर असर डालती है. ब्लड शुगर का स्तर लगातार बढ़ा रहने से नसों को नुकसान पहुंचता है, जिससे किडनी फेलियर और हार्ट अटैक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. शुगर कंट्रोल न होने पर आंखों की रोशनी कम होना, स्ट्रोक और पैर की नसों में खराबी जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं.

हार्ट डिजीज का खतरा

हार्ट ब्लॉकेज या हार्ट की मांसपेशियों का कमजोर होना जानलेवा साबित हो सकता है. जिन मरीजों को किडनी और डायबिटीज की समस्या होती है, उनमें हार्ट अटैक और स्ट्रोक का रिस्क कई गुना बढ़ जाता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि इन बीमारियों से बचाव का सबसे अच्छा तरीका है समय पर जांच, संतुलित आहार और नियमित दवाएं. लापरवाही जानलेवा हो सकती है.

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सोशल मीडिया से क्या वाकई छिन जाते हैं नींद और चैन? जानें बच्चों की सेहत पर कितना पड़ता है असर

सोशल मीडिया से क्या वाकई छिन जाते हैं नींद और चैन? जानें बच्चों की सेहत पर कितना पड़ता है असर


आज के दौर में सोशल मीडिया बच्चों के जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके इस्तेमाल के कई गंभीर नेगेटिव इफेक्ट भी हो सकते हैं. हाल के अध्ययनों से पता चला है कि कम उम्र के बच्चे जो इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं. उनमें प्रॉब्लमैटिक डिजिटल बिहेवियर होने की पॉसिबिलिटी ज्यादा होती है.

सोशल मीडिया पर अपने बच्चे के टाइम को छोड़ना या लिमिट करना इतना आसान नहीं है. एक नेशनल सर्वे के हिसाब से, 11 से 15 साल की 33% लड़कियां सोशल मीडिया की एडिक्टेड महसूस करती हैं और आधे से ज्यादा टीनएजर्स का कहना है कि सोशल मीडिया छोड़ना मुश्किल होगा. तो सोशल मीडिया इतना बुरा क्यों हो सकता है? डॉक्टर्स हमें सोशल मीडिया के पोटेंशियल रिस्क के बारे में बताते हैं.

बॉडी इमेज से जुड़ी टेंशन

सोशल मीडिया एप्स पर बहुत ज्यादा टाइम बिताने से बॉडी से असंतुष्टि, ईटिंग डिसऑर्डर्स और सेल्फ-एस्टीम कम होने जैसी प्रॉब्लम्स बढ़ सकती हैं. हालांकि यह टीनएज लड़कियों के लिए खास तौर पर चिंताजनक है, लेकिन रिपोर्ट्स बताती हैं कि 13 से 17 साल की 46% टीनएजर्स ने कहा कि सोशल मीडिया ने उन्हें अपनी बॉडी के बारे में बुरा महसूस कराया है. बच्चों के स्पेशलिस्ट डॉ. विजय राठौर के अनुसार, यह समझना जरूरी है कि हाई-टेक फोन और अलग-अलग एप्स के साथ, परफेक्ट पिक्चर क्लिक करना बहुत आसान है, जो शायद किसी के रियल लुक को सही से रिप्रेजेंट नहीं करती.

साइबरबुलिंग

साइबरबुलिंग… टेक्नोलॉजी, इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए किसी को परेशान करने, धमकाने या शर्मिंदा करने के लिए होती है. हार्मफुल लैंग्वेज, पिक्चर्स और वीडियोज आम हैं. 64% टीनएजर्स बताते हैं कि वे अक्सर या कभी-कभी हेट बेस्ड कंटेंट के कॉन्टैक्ट में आते हैं. डॉ. राठौर बताते हैं कि साइबरबुलिंग की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह हमेशा मौजूद रहती है, जिससे नेगेटिव बातचीत से दूर रहना बहुत मुश्किल हो जाता है. 

ऑनलाइन प्रेडेटर्स

दुर्भाग्य से, सोशल मीडिया पर ऐसे लोग हैं जो बच्चों और टीनएजर्स को टारगेट करते हैं. चाहे उनका सेक्सुअल अब्यूज करना हो, उनसे पैसों के लिए एक्सप्लॉइट करना हो या उन्हें गैरकानूनी ड्रग्स बेचना हो. बच्चों और टीनएजर्स के लिए यह जानना मुश्किल हो सकता है कि ऑनलाइन क्या शेयर करें और क्या नहीं. डॉक्टर बताते हैं कि पेरेंट्स को अपने बच्चों के साथ सोशल मीडिया के पोटेंशियल थ्रेट्स के बारे में बात करनी चाहिए. 

डेंजरस वायरल ट्रेंड्स

आपने शायद डेंजरस वायरल ट्रेंड्स के बारे में सुना होगा  और उन्हें ट्राई करने के डिस्ट्रक्टिव रिजल्ट्स के बारे में भी, जैसे अरेस्ट होना, हॉस्पिटल में एडमिट होना और यहां तक कि डेथ भी. वह कहते हैं कि बच्चों में हार्मफुल सिचुएशंस के बारे में सोचने और यह समझने की कॉग्निटिव और एग्जीक्यूटिव एबिलिटी नहीं होती कि ये एक बुरा आईडिया क्यों हो सकता है. इसलिए, कभी-कभी वे खुद को फिजिकल रिस्क में डाल देते हैं.

डेली बिहेवियर में चेंजेस

प्रॉब्लमैटिक डिजिटल बिहेवियर्स के अलावा, घर पर बच्चों के डेली बिहेवियर में भी बदलाव हो सकते हैं, जैसे इरिटेबिलिटी बढ़ना, एंग्जाइटी में बढ़ोतरी, डिप्रेशन में बढ़ोतरी, नींद की प्रॉब्लम्स, सेल्फ एस्टीम कम होना, अटेंशन और कॉन्सेंट्रेशन की कमी आदि.  उनके अनुसार अगर बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रहने और अपना होमवर्क या कोई भी अनचाहा काम करने के लिए कहा जाता है, तो पेरेंट्स के प्रति इरिटेबिलिटी या फ्रस्ट्रेशन बढ़ सकती है. 

नहीं लगाई रोक तो खराब होंगे हालात

डॉ. विजय कहते हैं कि बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर अगर रोक नहीं लगाई गई, तो आने वाले दिनों में हालात और भी खराब होंगे. हमारे पास बहुत सारे टीनएजर और बच्चे नींद डिस्टर्ब होने, स्टैस और एंग्जाइटी या हिंसक हो रहे बर्ताव की परेशानियां लेकर आ रहे हैं. इनमें से अधिकांश के पीछे स्मार्टफोन और सोशल मीडिया ही जिम्मेदार है.

माता-पिता ध्यान रखें ये बातें

घरों में स्मार्टफोन या इंटरनेट डिवाइसों का इस्तेमाल कम करने की जरूरत है. इसके लिए कहीं न कहीं पेरेंट्स काफी हद तक जिम्मेदार हैं. माता-पिता अपने छोटे बच्चों को बिजी करने के लिए फोन पकड़ाने की आदत से बाज आएं. इसके अलावा स्कूल जाने वाले छात्रों को भी फोन न दें, जब तक कि कोई विशेष जरूरत न हो. सबसे जरूरी है कि उनके डिजिटल कंटेंट पर जरूर निगाह रखें.  इस बात को समझ लें कि फोन आपके बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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