कहां दान किया जाता है ब्रेस्ट मिल्क, कौन-सी संस्थाएं करती हैं यह काम?

कहां दान किया जाता है ब्रेस्ट मिल्क, कौन-सी संस्थाएं करती हैं यह काम?


Breast Milk Donation Organizations: मां का दूध शिशु के लिए पहला और सबसे जरूरी आहार होता है, जो न केवल उसे पोषण देता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता है. लेकिन सोचिए उन नवजात शिशुओं के बारे में, जिनकी मां उन्हें दूध पिलाने में असमर्थ होती हैं. चाहे वह किसी बीमारी, ऑपरेशन या अन्य कारणों से हो. हालांकि मां का दूध दान करके कई नवजातों की जिंदगी बचाई जा रही है. सवाल उठता है कि, यह दूध कहां और कैसे दान किया जाता है? कौन-सी संस्थाएं या अस्पताल इसका संचालन करते हैं? आइए जानते हैं विस्तार से…

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भारत में कहां किया जाता है ब्रेस्ट मिल्क दान?

सायन अस्पताल (मुंबई)

यह भारत का पहला ह्यूमन मिल्क बैंक है, जिसे 1989 में स्थापित किया गया था. इसे “सुधा साल्वी ह्यूमन मिल्क बैंक” के नाम से भी जाना जाता है. 

फोर्टिस ला फेम अस्पताल (दिल्ली)

यहां अत्याधुनिक तकनीक से दूध संग्रह और सुरक्षित स्टोरेज की प्रक्रिया होती है. यह नवजात गहन चिकित्सा इकाई (NICU) में भर्ती बच्चों को यह दूध उपलब्ध कराता है.

अमराह मिल्क बैंक (Hyderabad)

यह एक प्रमुख प्राइवेट मिल्क बैंक है जो दान और वितरण दोनों करता है, खासकर समय से पहले जन्मे या बीमार शिशुओं के लिए  है.

रोटरी क्लब दूध बैंक

भारत में कई रोटरी क्लब ह्यूमन मिल्क बैंकों को सपोर्ट कर रहे हैं, विशेषकर ग्रामीण और जरूरतमंद क्षेत्रों में नजर आते हैं. 

कौन कर सकता है दूध दान?

  • दूध देने वाली मां का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरूरी है
  • उसे कोई संक्रामक रोग नहीं होना चाहिए
  • दवा या नशे का सेवन नहीं होना चाहिए
  • डॉक्टर की जांच के बाद ही दूध स्वीकार किया जाता है

दूध दान के फायदे

  • समय से पहले जन्मे बच्चों की जान बचती है
  • मां का दूध बीमारियों से लड़ने में सबसे कारगर है
  • फॉर्मूला मिल्क की निर्भरता कम होती है
  • एक सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन होता है

ब्रेस्ट मिल्क डोनेशन एक ऐसा कदम है जो नन्ही जानों के जीवन में उजाला भर सकता है. यह न सिर्फ चिकित्सा का हिस्सा है, बल्कि एक भावनात्मक जुड़ाव भी है. मां की ममता का विस्तार अगर आप या आपके आसपास कोई मां है जो दूध दान कर सकती है, तो यह जानकारी साझा करें.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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सिगरेट पीने से ज्यादा खतरनाक है भांग खाना, हो सकता है यह खौफनाक कैंसर

सिगरेट पीने से ज्यादा खतरनाक है भांग खाना, हो सकता है यह खौफनाक कैंसर


यह संभव है कि भांग भी कैंसर के रिस्क को बढ़ा सकती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि भांग के धुएं में तंबाकू के धुएं जैसे ही कई कैंसर पैदा करने वाले एलिमेंट्स होते हैं. वहीं, जो लोग भांग पीते हैं…वे हर कश में ज्यादा स्मोक इनहेल करते हैं और उसे अपने लंग्स में तंबाकू सिगरेट पीने वालों की तुलना में ज्यादा देर तक होल्ड करके रखते हैं. ऐसे में लॉन्ग टाइम तक भांग यूज करने से कैंसर का रिस्क बढ़ सकता है, स्पेशली लंग्स, हेड और नेक कैंसर का.

नई स्टडी में सामने आई यह बात

नई स्टडी ने ऐसे ही कई चौंकाने वाली तथ्य सामने रखे हैं. लंबे टाइम तक भांग का कंजम्पशन ओरल कैंसर के रिस्क को काफी बढ़ा सकता है. यह रिस्क इतना है कि यह रेगुलर सिगरेट पीने वालों के रिस्क के कंपेरेबल है. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, सैन डिएगो के रिसर्चर्स ने पाया है कि भांग यूज डिसऑर्डर वाले इंडिविजुअल्स में ओरल कैंसर होने की पॉसिबिलिटी बहुत ज्यादा होती है.

इतने मरीजों पर की गई रिसर्च

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स द्वारा 45,000 से ज्यादा पेशेंट्स की हेल्थ रिपोर्ट्स को एग्जामिन किया गया. इसमें पाया गया कि सीयूडी से पीड़ित इंडिविजुअल्स में पांच सालों के अंदर ओरल कैंसर होने की पॉसिबिलिटी उन लोगों की तुलना में थ्री टाइम्स ज्यादा होती है, जो भांग का कंजम्पशन नहीं करते. रिसर्चर्स ने बताया कि भांग के स्मोक में तंबाकू के स्मोक में पाए जाने वाले कई कार्सिनोजेनिक कंपाउंड्स होते हैं, जिनके मुह के एपिथेलियल टिशू पर हार्मफुल इफेक्ट्स पड़ते हैं.

स्मोक में छिपे हार्मफुल केमिकल्स

हमारा मुंह सेंसिटिव टिशूज, ब्लड वेसल्स और म्यूकस मेंब्रेन से बना होता है, जो लॉन्ग टर्म हॉट स्मोक, टॉक्सिक कंपाउंड्स या किसी भी ऐसी चीज के एक्सपोजर में आने पर बुरी तरह रिएक्ट कर सकते हैं, जो मुंह की लाइनिंग को इरिटेट करती है. जब आप भांग पीते हैं, तो आप अपने मुंह को वही हार्मफुल केमिकल्स के एक्सपोजर में लाते हैं, जो तंबाकू में भी पाए जाते हैं, जैसे पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, वोल्टाइल आर्गेनिक कम्पाउंड्स आदि. ये वही टॉक्सिक एलिमेंट्स हैं, जो सेल्स को डैमेज करते हैं और कैंसर की डेवलपमेंट को प्रमोट करते हैं. 

भांग और सिगरेट में क्या है अंतर?

तंबाकू को लंबे टाइम से ओरल कैंसर का कारण माना जाता रहा है. इस स्टडी से पता चलता है कि भांग भी उतना बेहतर नहीं है, खासकर अगर आप इसके रेगुलर यूजर हैं. दरअसल, जो लोग पांच या उससे ज्यादा सालों तक वीक में कम से कम एक बार भांग पीते थे, उनमें प्री-कैंसरस मुंह के घाव होने का रिस्क काफी ज्यादा था.  यह स्टडी बस एक रिमाइंडर है कि हालाँकि भांग लीगल है और कई लोगों के लिए बेनेफिशियल भी है, लेकिन यह बायोलॉजी के रूल्स से अछूता नहीं है. 

ये भी पढ़ें: किडनी की इस बीमारी ने छीन लीं सत्यपाल मलिक की सांसें, जानिए कितनी गंभीर होती है ये दिक्कत?

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मानसून में पुदीने की चाय पीने के कई फायदे, जानिए किस समय करना चाहिए सेवन

मानसून में पुदीने की चाय पीने के कई फायदे, जानिए किस समय करना चाहिए सेवन


Benefits of Mint Tea: मानसून की रिमझिम फुहारें, मिट्टी की सोंधी खुशबू और गर्मागर्म चाय का प्याला, ये तीनों मिल जाएं तो मौसम और भी सुहाना हो जाता है. लेकिन अगर इस चाय में आप पुदीने का तड़का लगा दें, तो न सिर्फ स्वाद बढ़ता है, बल्कि सेहत को भी कई फायदे मिलते हैं. 

इस पर डॉ. सतीश गुप्ता बताते हैं कि, खासकर मानसून में पुदीने की चाय का सेवन कई मौसमी बीमारियों से हमें बचा सकता है. आखिर कैसे…पूरी डिटेल में जान लीजिए. 

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पाचन में सुधार

मानसून में अक्सर लोग अपच, गैस और पेट दर्द से परेशान रहते हैं. पुदीने की चाय इन समस्याओं को दूर करने में बेहद प्रभावी होती है.

इम्युनिटी बूस्ट करता है

पुदीने में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन C रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं, जिससे सर्दी-जुकाम और वायरल फीवर से बचाव होता है. 

सिरदर्द और तनाव में राहत

पुदीना एक नेचुरल रिलैक्सेंट है. इसकी चाय पीने से माइग्रेन और मानसून में होने वाले सिरदर्द में आराम मिलता है. 

स्किन प्रॉब्लम्स में लाभकारी

मानसून में त्वचा पर रैशेज और एलर्जी की समस्या आम होती है. पुदीना शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे स्किन हेल्दी रहती है. 

सांस लेने में आसानी

जिन लोगों को साइनस या एलर्जी की समस्या है, उनके लिए पुदीने की चाय बेहद लाभकारी होती है. यह नाक के मार्ग को खोलने में मदद करती है. 

कब और कैसे करें सेवन?

पुदीने की चाय सुबह खाली पेट या शाम के वक्त स्नैक्स के साथ ली जाए तो इसका अधिक लाभ मिलता है. दिन में 1 बार इसका सेवन करना पर्याप्त होता है. चाय बनाने के लिए ताजे पुदीने की पत्तियों को उबालकर उसमें थोड़ा सा अदरक और नींबू मिलाने से स्वाद और गुण दोनों बढ़ जाते हैं. 

इन बातों का रखें ध्यान 

  • बहुत अधिक मात्रा में पुदीने की चाय पीने से एसिडिटी हो सकती है
  • गर्भवती महिलाएं और दवाएं ले रहे लोग डॉक्टर से परामर्श करके ही सेवन करें

मानसून के मौसम में अगर आप एक हेल्दी और स्वादिष्ट विकल्प की तलाश में हैं, तो पुदीने की चाय आपके लिए एक बेहतरीन ऑप्शन हो सकती है. यह न केवल बीमारियों से बचाव करती है, बल्कि शरीर और मन दोनों को तरोताजा कर देती है.

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एमजीयूजी और एम्स में कामयाब हुईं रेयर कैंसर सर्जरी, गोरखपुर बन रहा नया मेडिकल हब

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गोरखपुर अब सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी ही नहीं, बल्कि मेडिकल हब के रूप में भी अपनी पहचान बना रहा है. यहां के दो बड़े मेडिकल ऑर्गनाइजेशंस महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय गोरखपुर (एमजीयूजी) और गोरखपुर एम्स ने हाल ही में बेहद मुश्किल और रेयर कैंसर की सर्जरी की हैं. कन्याकुमारी से आए 76 साल के बुजुर्ग मरीज के रेयर पैरोटिड ग्लैंड कैंसर से लेकर गोरखपुर की एक महिला के फुटबॉल जितने बड़े किडनी ट्यूमर को इन दोनों संस्थानों ने ट्रीट किया है. 

एमजीयूजी में हुई रेयर पैरोटिड ग्लैंड कैंसर की सर्जरी

पूर्वांचल के लोगों को कैंसर के मरीजों को अब इलाज के लिए मुंबई-दिल्ली जैसे बड़े शहरों की भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी. गोरखपुर के महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय (एमजीयूजी) के महायोगी गोरखनाथ चिकित्सालय ने हाल ही में बेहद मुश्किल कैंसर सर्जरी को अंजाम दिया है. यहां कन्याकुमारी से आए 76 साल के बुजुर्ग मरीज के रेयर पैरोटिड ग्लैंड कैंसर का ऑपरेशन सफलतापूर्वक किया. यह सर्जरी कैंसर सर्जन डॉ. संजय माहेश्वरी के नेतृत्व में हुई.

मरीज को यह थी दिक्कत

इस मरीज को लार ग्रंथि में रेयर और मुश्किल कैंसर था. कई जगह इलाज कराने के बाद भी मरीज को राहत नहीं मिली थी. डॉक्टरों की टीम ने सुप्राहायॉइड ब्लॉक विच्छेदन के साथ इस मुश्किल सर्जरी को अंजाम दिया. सर्जरी के बाद मरीज की हालत स्थिर है और वह तेजी से ठीक हो रहे हैं. 

गोरखपुर एम्स में हुई 3.5 किलो के ट्यूमर की सर्जरी

वहीं, गोरखपुर एम्स ने भी बड़ी उपलब्धि हासिल की है. यहां के डॉक्टरों ने किडनी कैंसर से जूझ रही 33 साल की दीपिका कुमारी के पेट से फुटबॉल के आकार का ट्यूमर निकाला, जिसका वजह करीब 3.5 किलोग्राम था. गोरखपुर के अमलेरी की रहने वाली दीपिका करीब तीन महीने से पेट दर्द, बुखार और कमजोरी से परेशान थीं. कई अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद भी उनकी बीमारी का सही पता नहीं चल पाया था. उनके पति चंपू राय उन्हें गोरखपुर एम्स के सर्जरी विभाग में लेकर पहुंचे. यहां सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. गौरव गुप्ता और उनकी टीम ने मरीज का सिटी स्कैन किया, जिसमें बाईं किडनी में फुटबॉल जितना बड़ा ट्यूमर दिखा. यह ट्यूमर पेट की प्रमुख नस इन्फीरियर वेना कावा से चिपका हुआ था और किडनी की नस (रीनल वेन) में भी फैलने का खतरा था. इस ट्यूमर को निकालना बेहद जोखिम भरा था.

1 अगस्त को हुई थी सर्जरी

डॉ. गौरव गुप्ता ने अपनी टीम के साथ कई जांच कीं और एनेस्थेटिया विभाग के डॉक्टरों से इस केस पर चर्चा की. 1 अगस्त को तीन यूनिट ब्लड के साथ सर्जरी की गई. सर्जरी के दौरान 30×25 सेमी के ट्यूमर को निकालना बड़ी चुनौती थी. ट्यूमर का वजन 3.5 किलोग्राम था और यह पेट की मुख्य नस से चिपका हुआ था. इसके बावजूद सर्जरी टीम ने इसे सफलतापूर्वक हटा दिया. अब दीपिका की हालत स्थिर है.

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क्या ब्रेस्टफीडिंग से फर्टिलिटी पर पड़ता है असर? डॉक्टर से समझें जरूरी बात

क्या ब्रेस्टफीडिंग से फर्टिलिटी पर पड़ता है असर? डॉक्टर से समझें जरूरी बात


प्रसव के बाद महिला का शरीर कई बदलावों से गुजरता है. ब्रेस्टफीडिंग इस दौरान मां और बच्चे दोनों के लिए बेहद जरूरी है, लेकिन यह प्रक्रिया महिला के हार्मोन लेवल को भी प्रभावित करती है. यही कारण है कि कई महिलाएं समझती हैं कि जब तक वह बच्चे को दूध पिला रही हैं, तब तक गर्भवती नहीं हो सकतीं. क्या यह सच है? आइए डॉक्टर से समझते हैं.

क्या ब्रेस्टफीडिंग रोकता है प्रेग्नेंसी?

वाराणसी स्थित चंद्रा हॉस्पिटल की गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. कुसुम चंद्रा ने helloswasthya के साथ बातचीत में इसके बारे में बताया था. वे बताती हैं, “अगर कोई महिला चाहती है कि पहले बच्चे के तुरंत बाद दूसरे बच्चे को जन्म दे, तो ऐसा संभव नहीं है. क्योंकि प्रसव के बाद से कम से कम तीन महीने तक महिला के शरीर में ओव्यूलेशन नहीं होता है, जिससे उसके पीरियड्स भी नहीं आते हैं. इसी वजह से महिला की फर्टिलिटी प्रभावित होती है.”

वह आगे कहती हैं, “एक बार पीरियड्स सही तरीके से शुरू हो जाएं तो महिला दोबारा गर्भवती हो सकती है. हालांकि, दो बच्चों में कम से कम तीन साल का अंतर रखना चाहिए ताकि मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य सही बना रहे.”

ब्रेस्टफीडिंग और ओव्यूलेशन का कनेक्शन

बच्चे को जन्म देने के बाद महिला के शरीर में प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन का स्तर बढ़ता है. यह हार्मोन दूध बनाने में मदद करता है और साथ ही ओव्यूलेशन को कुछ समय तक रोकता है. इस वजह से महिला को पीरियड्स नहीं आते. हालांकि, यह स्थिति हमेशा एक जैसी नहीं रहती. कुछ महिलाओं में यह असर 3-6 महीने तक रहता है, जबकि कुछ में जल्दी पीरियड्स आ सकते हैं.

क्या ब्रेस्टफीडिंग 100 प्रतिशत प्रोटेक्शन देता है?

कई लोग मानते हैं कि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान प्रेग्नेंसी नहीं हो सकती, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है. जैसे ही महिला के पीरियड्स वापस आने लगते हैं, गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है. इसलिए अगर आप प्रेग्नेंसी नहीं चाहतीं, तो डॉक्टर से सलाह लेकर कॉन्ट्रासेप्शन का इस्तेमाल करना जरूरी है.

क्यों जरूरी है बच्चों के बीच गैप?

डॉ. कुसुम चंद्रा सलाह देती हैं कि दो प्रेग्नेंसी के बीच कम से कम तीन साल का अंतर होना चाहिए. इससे महिला का शरीर पूरी तरह रिकवर हो जाता है और बच्चे का पोषण भी बेहतर तरीके से हो पाता है. जल्दी प्रेग्नेंसी प्लान करने से मां के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है और बच्चे में भी पोषण की कमी का खतरा बढ़ जाता है.

ब्रेस्टफीडिंग का फर्टिलिटी पर असर होता है, लेकिन यह असर स्थायी नहीं है. एक बार ओव्यूलेशन और पीरियड्स शुरू हो जाएं, तो महिला गर्भवती हो सकती है. इसलिए सही समय और अंतराल के लिए डॉक्टर की सलाह लेना बेहद जरूरी है.

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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शराब कब करने लगती है आपके लिवर को खराब? ये लक्षण दिखें तो तुरंत हो जाएं अलर्ट

शराब कब करने लगती है आपके लिवर को खराब? ये लक्षण दिखें तो तुरंत हो जाएं अलर्ट


जब आप शराब पीते हैं तो लिवर उसे तोड़कर बाहर करता है. इस दौरान कुछ जहरीले पदार्थ बनते हैं, जो लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं. अगर आप रोज ज्यादा शराब पीते हैं तो यह नुकसान बढ़ता जाता है.

जब आप शराब पीते हैं तो लिवर उसे तोड़कर बाहर करता है. इस दौरान कुछ जहरीले पदार्थ बनते हैं, जो लिवर को नुकसान पहुंचाते हैं. अगर आप रोज ज्यादा शराब पीते हैं तो यह नुकसान बढ़ता जाता है.

बहुत ज्यादा शराब पीने से एक बीमारी होती है, जिसे Alcohol-Related Liver Disease (ARLD) कहते हैं. यह तीन स्टेज में बढ़ती है. फैटी लिवर (लिवर में चर्बी जमना), एल्कोहॉलिक हेपेटाइटिस (लिवर में सूजन) और सिरोसिस (लिवर का सख्त हो जाना).

बहुत ज्यादा शराब पीने से एक बीमारी होती है, जिसे Alcohol-Related Liver Disease (ARLD) कहते हैं. यह तीन स्टेज में बढ़ती है. फैटी लिवर (लिवर में चर्बी जमना), एल्कोहॉलिक हेपेटाइटिस (लिवर में सूजन) और सिरोसिस (लिवर का सख्त हो जाना).

पहली स्टेज फैटी लिवर है. इसमें लिवर में चर्बी जमा हो जाती है. यह कुछ हफ्तों की भारी शराब पीने से भी हो सकता है. अच्छी बात यह है कि अगर समय रहते शराब छोड़ दें तो लिवर फिर से ठीक हो सकता है.

पहली स्टेज फैटी लिवर है. इसमें लिवर में चर्बी जमा हो जाती है. यह कुछ हफ्तों की भारी शराब पीने से भी हो सकता है. अच्छी बात यह है कि अगर समय रहते शराब छोड़ दें तो लिवर फिर से ठीक हो सकता है.

दूसरी स्टेज एल्कोहॉलिक हेपेटाइटिस है. इसमें लिवर में सूजन आ जाती है. इसके लक्षण थकान, उल्टी, भूख कम लगना और पीली त्वचा (जॉन्डिस) हैं. अगर समय पर इलाज न हो तो यह जानलेवा हो सकता है.

दूसरी स्टेज एल्कोहॉलिक हेपेटाइटिस है. इसमें लिवर में सूजन आ जाती है. इसके लक्षण थकान, उल्टी, भूख कम लगना और पीली त्वचा (जॉन्डिस) हैं. अगर समय पर इलाज न हो तो यह जानलेवा हो सकता है.

तीसरी स्टेज सिरोसिस है. इसमें लिवर बहुत खराब हो जाता है और उसकी जगह सख्त ऊतक बन जाते हैं. इस स्टेज में लिवर ठीक नहीं होता. कई बार लिवर ट्रांसप्लांट ही आखिरी इलाज होता है.

तीसरी स्टेज सिरोसिस है. इसमें लिवर बहुत खराब हो जाता है और उसकी जगह सख्त ऊतक बन जाते हैं. इस स्टेज में लिवर ठीक नहीं होता. कई बार लिवर ट्रांसप्लांट ही आखिरी इलाज होता है.

अगर ये लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से मिलें. आंख और स्किन पीली होना, पेट में सूजन या दर्द, भूख कम होना, वजन कम होना, हाथ की हथेलियां लाल होना, ज्यादा थकान आदि लक्षणों को नजरअंदाज न करें.

अगर ये लक्षण दिखें तो तुरंत डॉक्टर से मिलें. आंख और स्किन पीली होना, पेट में सूजन या दर्द, भूख कम होना, वजन कम होना, हाथ की हथेलियां लाल होना, ज्यादा थकान आदि लक्षणों को नजरअंदाज न करें.

लिवर को बचाने का सबसे आसान तरीका है शराब कम करना या छोड़ देना. अगर पहले से लिवर में दिक्कत है तो शराब बिल्कुल न पिएं. समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराते रहें, ताकि बीमारी जल्दी पता चल सके.

लिवर को बचाने का सबसे आसान तरीका है शराब कम करना या छोड़ देना. अगर पहले से लिवर में दिक्कत है तो शराब बिल्कुल न पिएं. समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराते रहें, ताकि बीमारी जल्दी पता चल सके.

Published at : 06 Aug 2025 06:48 AM (IST)

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