इस तकनीक से इलाज कराया तो 6 महीने में ठीक हो जाएगी टीबी, सिर्फ इन अस्पतालों में ही मिलेगी दवा

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अब बैक्टीरिया खुद कैंसर का ट्यूमर ढूंढकर करेंगे इलाज, लेकिन इंसानों को नहीं पहुंचाएंगे नुकसान

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धीरेंद्र शास्त्री को 100 डिग्री बुखार, जानें इसे इग्नोर करना कितना खतरनाक?

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Dhirendra Shastri fever: हरियाणा में बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की सनातन एकता पदयात्रा आज बुधवार (12 नवंबर) को पांचवें दिन में पहुंची. यह यात्रा पलवल के तुमसरा गांव से शुरू हुई थी, लेकिन आगे बढ़ते हुए खटेला सराय गांव के पास शास्त्री की तबीयत अचानक बिगड़ गई. उन्हें तेज बुखार आ गया, जिसके चलते वे सड़क पर ही लेट गए. डॉक्टरों को तुरंत मौके पर बुलाया गया. जांच में उनका तापमान 100 डिग्री से ज्यादा पाया गया. डॉक्टरों ने उन्हें दो दिन आराम करने की सलाह दी, ताकि शरीर पूरी तरह ठीक हो सके. हालांकि, कुछ समय दवाई लेकर आराम करने के बाद भी शास्त्री ने पदयात्रा को बीच में नहीं रोका और दोबारा यात्रा शुरू कर दी. चलिए आपको बताते हैं कि इसको इग्नोर करना कितना भारी पड़ सकता है. 

कितना खतरनाक हो सकता है इग्नोर करना

बुखार को हल्के में लेना यानी उसे इग्नोर करना कई बार बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. शरीर का तापमान बढ़ना अपने आप में एक संकेत है कि शरीर किसी इंफेक्शन या थकान से लड़ रहा है. अगर इस वक्त शरीर को आराम न दिया जाए, तो स्थिति और बिगड़ सकती है. अगर आप दवा खाकर इसको इग्नोर करते रहते हैं, तो दवा से थोड़ी देर के लिए आराम हो सकता है. हालांकि शरीर को बाद में इसके चलते काफी तकलीफ का सामना करना पड़ सकता है. 

कब डॉक्टर के पास जाना चाहिए

Mayo Clinic की रिपोर्ट के अनुसार, बुखार को हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह शरीर में किसी इंफेक्शन या बीमारी का संकेत होता है. डॉक्टरों का कहना है कि अगर शरीर का तापमान लगातार बढ़ा रहे या 103°F लगभग 39.4°C से अधिक हो जाए, तो इसे इग्नोर नहीं करना चाहिए, बल्कि तुरंत चिकित्सा सलाह लेनी चाहिए. यह इस बात का संकेत होता है कि शरीर किसी गंभीर संक्रमण या सूजन से लड़ रहा है.

वहीं, University of Pittsburgh Medical Center की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर बुखार 105°F लगभग 40.6°C से ऊपर चला जाए या इसके साथ बेहोशी, दौरे या सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण दिखें, तो यह स्थिति बेहद खतरनाक हो सकती है. ऐसे मामलों में समय पर इलाज न मिलने पर ब्रेन पर असर, अंगों की काम करने की क्षमता में कमी और कभी-कभी जान का खतरा भी हो सकता है.

तबीयत को लेकर डॉक्टर ने क्या कहा

मीडिया से बातचीत में उनकी हेल्थ पर नजर रखने वाले  डॉ. विजेन्द्र सिंह ने बताया कि “धीरेंद्र शास्त्री की तबीयत पिछले दो दिनों से ठीक नहीं है. आज जांच करने पर उनका तापमान 100 डिग्री से ज्यादा पाया गया और उनके गले में भी तकलीफ है.” उन्हें कम से कम दो से तीन दिन आराम करने की सलाह दी है, ताकि पूरी तरह से ठीक हो सकें. हालांकि, तबीयत ठीक न होने के बावजूद वह बिना रुके अपनी पदयात्रा जारी रखे हैं.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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सर्दियों में गरम पानी से नहाना ज्यादा अच्छा या ठंडे पानी से? जानें फायदे की बात

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बच्चे की पहली पॉटी से कैसे पता चलती है उसकी हेल्थ, किन-किन चीजों की मिलती है डिटेल?

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How Baby Poop Shows Health: जन्म के बाद बच्चे की पहली पॉटी  देखने में भले मामूली लगे, लेकिन साइंटिस्ट के लिए यह किसी खजाने से कम नहीं. इसी छोटी-सी पॉटी में छिपे होते हैं बच्चे के भविष्य के स्वास्थ्य से जुड़े कई बड़े राज. लंदन के क्वीन हॉस्पिटल की एक लेबोरेटरी में 2017 में कुछ साइंटिस्ट हर दिन डाक का इंतजार करते थे. उन लिफ़ाफ़ों में उन्हें मिलते थे छोटे-छोटे पैकेट, जिनमें नवजात शिशुओं की पॉटी के सैंपल होते थे, जो उनके माता-पिता ने बड़े प्यार से भेजे थे. यह सब एक बड़े वैज्ञानिक प्रोजेक्ट का हिस्सा था “बेबी बायोम स्टडी”, जिसमें रिसर्चर यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि बच्चे के शरीर में बनने वाले गट माइक्रोबायोम उसके पूरे जीवन की सेहत पर कैसे असर डालते हैं. इस अध्ययन में 2016 से 2017 के बीच करीब 3,500 नवजात शिशुओं की पॉटी का विश्लेषण किया गया. नतीजे बेहद चौंकाने वाले थे. चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफेसर नाइजेल फील्ड बताते हैं कि “जन्म के समय बच्चे का शरीर पूरी तरह से स्टेराइल मुक्त होता है. जन्म के तीन-चार दिन बाद ही उसकी आंतों में माइक्रोब्स बसने लगते हैं. यह वह पल होता है जब पहली बार उसका शरीर बाहरी जीवाणुओं से परिचित होता है और यही उसकी इम्यून सिस्टम की नींव रखता है.” दरअसल, जब बच्चा मां के गर्भ में होता है, तो वहां कोई बैक्टीरिया मौजूद नहीं होता. जन्म के समय जब वह मां के शरीर से बाहर आता है, तभी उसकी पहली मुलाकात उन माइक्रोब्स से होती है जो बाद में उसकी आंतों की दुनिया बसाते हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि यह बैक्टीरिया अधिकतर मां की डाइजेस्टिव ट्रैक्ट  से आते हैं, न कि योनि से जैसा पहले माना जाता था.

वैज्ञानिकों ने क्या कहा है इसको लेकर?

ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी की वैज्ञानिक आर्चिता मिश्रा कहती हैं कि “बच्चे के गट माइक्रोबायोम के शुरुआती जीवाणु उसके इम्यून सिस्टम के आर्किटेक्ट की तरह होते हैं. वे शरीर को यह सिखाते हैं कि कौन-से तत्व हानिकारक हैं और कौन-से नहीं. यही बैक्टीरिया आगे चलकर एलर्जी, संक्रमण और वैक्सीन के प्रति प्रतिक्रिया तक को प्रभावित करते हैं.” पहले छह से बारह महीनों में जो बैक्टीरिया बच्चे की आंतों में बसते हैं, वे उसकी सेहत की दिशा तय करते हैं जैसे एलर्जी का खतरा कितना होगा, पाचन तंत्र कितना मजबूत रहेगा और शरीर भोजन को किस तरह स्वीकार करेगा. वैज्ञानिकों के अनुसार, जीवन के पहले हजार दिन सबसे अहम होते हैं. इन्हीं दिनों में गट माइक्रोबायोम की जो नींव पड़ती है, उसका असर आने वाले दशकों तक रहता है.

रिसर्च में क्या निकला?

फील्ड की रिसर्च यह भी दिखाती है कि जिन नवजातों की आंतों में जन्म के शुरुआती हफ्तों में सही बैक्टीरिया विकसित हो जाते हैं, वे आगे चलकर वायरल इंफेक्शन और इम्यून कमजोरियों से बेहतर तरीके से लड़ पाते हैं. यानी, बच्चे की पहली पॉटी केवल एक अपशिष्ट नहीं, बल्कि एक हेल्थ रिपोर्ट है, जो यह बताती है कि उसका शरीर अंदर से कैसा विकसित हो रहा है, उसकी इम्यूनिटी कितनी मजबूत है और आने वाले वक्त में वह बीमारियों से कितना मुकाबला कर सकेगा.

इसे भी पढ़ें: Pregnant Women Labor Pain: प्रेग्नेंट लेडीज को अब क्यों नहीं होता लेबर पेन, इससे बच्चा पैदा करने में कितनी दिक्कत?

Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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प्रेग्नेंट लेडीज को अब क्यों नहीं होता लेबर पेन, इससे बच्चा पैदा करने में कितनी दिक्कत?

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No Labor Pain Reason: कई महिलाएं सच में यह कहती हैं कि उन्हें बच्चे के जन्म के दौरान हुए दर्द की याद तक नहीं रहती. वे पूरे अनुभव को तो याद रखती हैं जैसे डॉक्टर की बातें, परिवार की मौजूदगी, बच्चे के रोने की पहली आवाज, लेकिन असल दर्द की तीव्रता याद नहीं रह पाती. एक्सपर्ट के अनुसार, ऐसा नहीं है कि महिलाओं को वाकई मेमोरी लॉस हो जाता है, बल्कि समय के साथ दर्द की यादें स्वाभाविक रूप से कमजोर पड़ जाती हैं. चलिए आपको बताते हैं कि इसका बच्चे पर क्या असर पड़ता है.

क्यों भूल जाती हैं लेबर पेन?

हर महिला का अनुभव एक जैसा नहीं होता. 2014 में जापान में हुई एक रिसर्च में 1,000 से अधिक महिलाओं को शामिल किया गया, जिन्होंने 2000 के शुरुआती सालों में बच्चे को जन्म दिया था. स्टडी में पाया गया कि इन महिलाओं को पांच साल बाद भी अपने लेबर पेन की याद थी. यहां तक कि दर्द वाले हिस्से भी वे साफ साफ बता सकती थीं. वैज्ञानिकों का कहना है कि लेबर पेन की याद या भूल जाना, दोनों ही बेहद व्यक्तिगत और कई कारकों पर निर्भर होते हैं. 2016 की एक स्टडी के मुताबिक, बच्चे के जन्म का पूरा अनुभव, दर्द निवारण के विकल्प, मुश्किलों की मौजूदगी या अनुपस्थिति यह सब मिलकर तय करता है कि महिला को उस दर्द की याद कैसी रहेगी. यानी यह सिर्फ पेन की तीव्रता नहीं, बल्कि उस वक्त के हालात और महिला की मानसिक स्थिति पर भी निर्भर करता है कि मस्तिष्क उस अनुभव को कैसे स्टोर करता है. अब सवाल यह उठता है कि कई महिलाएं क्यों कहती हैं कि उन्हें लेबर पेन याद ही नहीं रहता? इसका जवाब छिपा है शरीर के हार्मोनल बदलावों में.

हार्मोन करते हैं मदद

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद शरीर में ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन का स्तर बहुत बढ़ जाता है. यह वही बॉन्डिंग हार्मोन है जो मां और बच्चे के बीच गहरा जुड़ाव बनाता है.  साइकोलॉजिस्ट जेनेट बायरमयान, जो कैलिफोर्निया की एक साइकोथेरैपिस्ट हैं, वे कहती हैं कि “ऑक्सीटोसिन न सिर्फ मां को बच्चे से जोड़ता है, बल्कि यह दर्द की यादों को भी नरम कर देता है.” यही वजह है कि कई महिलाएं बाद में उस पीड़ा को उतनी तीव्रता से याद नहीं कर पातीं.

इवोल्यूशन का कमाल

रिसर्चर का मानना है कि यह नेचुरल की एक अद्भुत व्यवस्था है अगर महिलाओं को हर बार वही तेज दर्द याद रहता, तो शायद वे दोबारा गर्भधारण करने से डरतीं. इसीलिए शरीर खुद ही सेलेक्टिव अम्नेशिया यानी चुनिंदा याददाश्त का सहारा लेकर दर्द की यादों को धुंधला कर देता है.

क्या इसका असर बच्चे के जन्म पर पड़ता है?

लेबर पेन महसूस न होना या उसका कम याद रह जाना बच्चे के जन्म पर कोई नकारात्मक असर नहीं डालता. आजकल मेडिकल साइंस में कई पेन-रिलीफ ऑप्शंस जैसे एपिड्यूरल और गैस-रिलीफ तकनीकें उपलब्ध हैं, जिनसे महिलाएं सुरक्षित रूप से बिना अत्यधिक दर्द के डिलीवरी कर सकती हैं.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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