प्रेग्नेंट लेडीज को अब क्यों नहीं होता लेबर पेन, इससे बच्चा पैदा करने में कितनी दिक्कत?

प्रेग्नेंट लेडीज को अब क्यों नहीं होता लेबर पेन, इससे बच्चा पैदा करने में कितनी दिक्कत?



No Labor Pain Reason: कई महिलाएं सच में यह कहती हैं कि उन्हें बच्चे के जन्म के दौरान हुए दर्द की याद तक नहीं रहती. वे पूरे अनुभव को तो याद रखती हैं जैसे डॉक्टर की बातें, परिवार की मौजूदगी, बच्चे के रोने की पहली आवाज, लेकिन असल दर्द की तीव्रता याद नहीं रह पाती. एक्सपर्ट के अनुसार, ऐसा नहीं है कि महिलाओं को वाकई मेमोरी लॉस हो जाता है, बल्कि समय के साथ दर्द की यादें स्वाभाविक रूप से कमजोर पड़ जाती हैं. चलिए आपको बताते हैं कि इसका बच्चे पर क्या असर पड़ता है.

क्यों भूल जाती हैं लेबर पेन?

हर महिला का अनुभव एक जैसा नहीं होता. 2014 में जापान में हुई एक रिसर्च में 1,000 से अधिक महिलाओं को शामिल किया गया, जिन्होंने 2000 के शुरुआती सालों में बच्चे को जन्म दिया था. स्टडी में पाया गया कि इन महिलाओं को पांच साल बाद भी अपने लेबर पेन की याद थी. यहां तक कि दर्द वाले हिस्से भी वे साफ साफ बता सकती थीं. वैज्ञानिकों का कहना है कि लेबर पेन की याद या भूल जाना, दोनों ही बेहद व्यक्तिगत और कई कारकों पर निर्भर होते हैं. 2016 की एक स्टडी के मुताबिक, बच्चे के जन्म का पूरा अनुभव, दर्द निवारण के विकल्प, मुश्किलों की मौजूदगी या अनुपस्थिति यह सब मिलकर तय करता है कि महिला को उस दर्द की याद कैसी रहेगी. यानी यह सिर्फ पेन की तीव्रता नहीं, बल्कि उस वक्त के हालात और महिला की मानसिक स्थिति पर भी निर्भर करता है कि मस्तिष्क उस अनुभव को कैसे स्टोर करता है. अब सवाल यह उठता है कि कई महिलाएं क्यों कहती हैं कि उन्हें लेबर पेन याद ही नहीं रहता? इसका जवाब छिपा है शरीर के हार्मोनल बदलावों में.

हार्मोन करते हैं मदद

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद शरीर में ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन का स्तर बहुत बढ़ जाता है. यह वही बॉन्डिंग हार्मोन है जो मां और बच्चे के बीच गहरा जुड़ाव बनाता है.  साइकोलॉजिस्ट जेनेट बायरमयान, जो कैलिफोर्निया की एक साइकोथेरैपिस्ट हैं, वे कहती हैं कि “ऑक्सीटोसिन न सिर्फ मां को बच्चे से जोड़ता है, बल्कि यह दर्द की यादों को भी नरम कर देता है.” यही वजह है कि कई महिलाएं बाद में उस पीड़ा को उतनी तीव्रता से याद नहीं कर पातीं.

इवोल्यूशन का कमाल

रिसर्चर का मानना है कि यह नेचुरल की एक अद्भुत व्यवस्था है अगर महिलाओं को हर बार वही तेज दर्द याद रहता, तो शायद वे दोबारा गर्भधारण करने से डरतीं. इसीलिए शरीर खुद ही सेलेक्टिव अम्नेशिया यानी चुनिंदा याददाश्त का सहारा लेकर दर्द की यादों को धुंधला कर देता है.

क्या इसका असर बच्चे के जन्म पर पड़ता है?

लेबर पेन महसूस न होना या उसका कम याद रह जाना बच्चे के जन्म पर कोई नकारात्मक असर नहीं डालता. आजकल मेडिकल साइंस में कई पेन-रिलीफ ऑप्शंस जैसे एपिड्यूरल और गैस-रिलीफ तकनीकें उपलब्ध हैं, जिनसे महिलाएं सुरक्षित रूप से बिना अत्यधिक दर्द के डिलीवरी कर सकती हैं.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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कम उम्र में ही लोगों को क्यों लग रहा फेसलिफ्ट का चस्का, जानें क्यों प्लास्टिक सर्जरी करवा रहे य

कम उम्र में ही लोगों को क्यों लग रहा फेसलिफ्ट का चस्का, जानें क्यों प्लास्टिक सर्जरी करवा रहे य



Young People Plastic Surgery: आज सोशल मीडिया पर एक नजर डालें, तो हर तरफ 20 और 30 की उम्र वाले लोगों के पोस्ट दिख जाते हैं कोई मिनी फेसलिफ्ट करवा रहा है, कोई पोनीटेल या डीप प्लेन लिफ्ट. पहले जहां फेसलिफ्ट सिर्फ उम्रदराज और अमीर लोगों के लिए माना जाता था, अब कम उम्र के लोग भी बड़ी संख्या में सर्जरी करवाने लगे हैं. पहले इस तरह की प्रक्रियाओं को लोग छिपाकर करवाते थे, लेकिन अब यह कोई राज नहीं रहा. कई सेलिब्रिटी खुले तौर पर अपनी फेसलिफ्ट सर्जरी के बारे में बात कर चुके हैं. अब तो कई लोग सोशल मीडिया पर अपनी सर्जरी के पहले, बाद और रिकवरी के दौरान की तस्वीरें भी साझा करते हैं.

लेकिन सवाल यह है कि आखिर इतनी कम उम्र में लोग अपनी शक्ल-सूरत बदलवाने के लिए इतने बेताब क्यों हो गए हैं? क्या ऑनलाइन दिखावे की इस दुनिया ने हमें इतना इनसिक्योर बना दिया है कि हम अपनी परफेक्ट तस्वीर पाने के लिए हजारों-लाखों रुपये खर्च करने को तैयार हैं? या फिर बार-बार बोटॉक्स और फिलर्स करवाने के बाद अब लोगों को फेसलिफ्ट अगला लॉजिकल और लॉन्ग-लास्टिंग स्टेप लगने लगा है?. चलिए आपको इसके बारे आपको बताते हैं.

क्यों शक्ल बदलवा रहे हैं लोग?

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, कनाडा की एमिली ने 28 साल की उम्र में फेसलिफ्ट करवाई. उनका कहना है कि उन्होंने यह सर्जरी स्नैच्ड लुक यानी शार्प जॉलाइन, हाई चीबोन्स और फॉक्स आईज पाने के लिए करवाई. एमिली बताती हैं कि उन्होंने तुर्की में एक ही बार में छह सर्जरी करवाईं, जिनमें मिड-फेस लिफ्ट, लिप लिफ्ट और राइनोप्लास्टी नाक की सर्जरी शामिल थीं. सर्जरी का अनुभव उनके लिए काफी कठिन था. उन्होंने कहा कि “मुझे याद है जब मैं बेहोश हो रही थी, तो डॉक्टर मेरा पसंदीदा गाना बजा रहे थे. मैं सो गई, और जब आंख खुली तो मेरे चेहरे पर दर्द था और आईने में एक नया चेहरा दिख रहा था.” दर्द और सूजन कई हफ्तों तक बनी रही और लगभग छह महीने बाद जाकर उन्हें अपने गालों में दोबारा एहसास होने लगा. 

क्यों बढ़ा ट्रेंड?

ब्रिटिश असोसिएशन ऑफ एस्थेटिक प्लास्टिक सर्जन्स के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले एक साल में यूके में फेसलिफ्ट करवाने वालों की संख्या 8 प्रतिशत बढ़ी है. उम्र के आधार पर डेटा जारी नहीं हुआ है, लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि अब सर्जरी करवाने वालों में युवा वर्ग तेजी से बढ़ रहा है. BAAPS की अध्यक्ष नोरा नजेंट ने बताया कि  इसके कई कारण हैं, उनमें से एक है वजन घटाने वाली दवाओं का ट्रेंड. तेजी से वजन कम करने से चेहरे की स्किन ढीली हो जाती है. ऐसे में कई लोग फेसलिफ्ट करवाते हैं ताकि चेहरा टाइट दिखे. साथ ही, नई तकनीकें आने से अब फेसलिफ्ट पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा सुरक्षित और नेचुरल लगने लगी है. हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि फेसलिफ्ट कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं है. यह एक बड़ी सर्जरी है, जिसे सिर्फ किसी अनुभवी और रजिस्टर्ड प्लास्टिक सर्जन द्वारा ही किया जाना चाहिए.

एक्सपर्ट मानते हैं कि 40 वर्ष से कम उम्र में फेसलिफ्ट कराना अभी भी बहुत असामान्य माना जाता है. इसके गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे ब्लड क्लॉट बनना, इंफेक्शन, नसों को नुकसान या बाल झड़ना. यूके में एक फेसलिफ्ट सर्जरी की कीमत 15 से 45 हजार पाउंड तक होती है, जबकि कुछ क्लीनिक इसे मात्र 5 हजार पाउंड में भी ऑफर करते हैं. एक्सपर्ट्स की मानें तो जो भी व्यक्ति सर्जरी करवाने की सोच रहा है, उसे पहले पूरी जानकारी लेनी चाहिए और सिर्फ सर्टिफाइड सर्जन से ही प्रक्रिया करवानी चाहिए.

ये भी पढ़ें: वेट लॉस या फैट लॉस… ब्लड शुगर मरीजों के लिए क्या है सही तरीका?

Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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क्या गर्म पानी पीने से पिघल जाती है पेट की चर्बी? जानें यह फैक्ट या फेक

क्या गर्म पानी पीने से पिघल जाती है पेट की चर्बी? जानें यह फैक्ट या फेक



Hot Water for Weight Loss: यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पानी हमारे जीवन के लिए कितना जरूरी है. यह सिर्फ प्यास बुझाने के लिए नहीं, बल्कि हमारे शरीर के सही तरीके से काम करने और बीमारियों से बचाव के लिए भी बेहद अहम है. हमारे शरीर का करीब 70 फीसदी हिस्सा पानी से बना है, इसलिए शरीर को सही तरीके से काम करने के लिए हर व्यक्ति को रोजाना 2 से 3 लीटर पानी ज़रूर पीना चाहिए. ठंडा और गर्म पानी दोनों के अपने-अपने फायदे हैं. एक तरफ ठंडा पानी वर्कआउट के बाद शरीर को ठंडक पहुंचाता है, तो वहीं गर्म पानी शरीर से टॉक्सिन्स यानी विषैले तत्वों को बाहर निकालने और पाचन को बेहतर करने में मदद करता है. अक्सर कहा जाता है कि गर्म पानी पीने से वजन कम होता है, लेकिन क्या यह सच है? आइए जानते हैं.

क्या कहती हैं रिसर्च?

कुछ शोधों में पाया गया है कि ज्यादा पानी पीने से वजन घटाने में मदद मिल सकती है. इसका एक कारण यह हो सकता है कि पानी पीने से पेट भरा-भरा महसूस होता है, जिससे हम कम खाते हैं. साथ ही यह शरीर को पोषक तत्वों को बेहतर तरीके से सोखने और हानिकारक तत्वों को बाहर निकालने में मदद करता है. 2003 में प्रकाशित एक रिसर्च में बताया गया कि गर्म पानी पीने से मेटाबॉलिज्म बढ़ता है और 500 मिलीलीटर पानी खाने से पहले पीने से मेटाबॉलिक रेट करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ सकता है.

गर्म पानी और वजन घटाने का कनेक्शन

सुबह खाली पेट या दिनभर में हल्का गुनगुना पानी पीना वजन घटाने की प्रक्रिया में तीन तरीकों से मदद कर सकता है. गर्म पानी पीने से शरीर का तापमान थोड़ा बढ़ जाता है. इसे संतुलित करने के लिए शरीर अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करता है, जिससे मेटाबॉलिज्म एक्टिव होता है. गर्म पानी शरीर में मौजूद चर्बी को तोड़ने और उसे छोटे-छोटे मोलिक्यूल्स में बदलने में मदद करता है, जिससे पाचन तंत्र उन्हें आसानी से जला सके. खाने से आधा घंटा पहले एक गिलास गर्म पानी पीने से भूख कम लगती है, जिससे कैलोरी का सेवन कम होता है.

गर्म पानी के अन्य फायदे

पाचन बेहतर करता है: पानी पाचन तंत्र को चिकनाई प्रदान करता है और उन खाद्य पदार्थों को घोलने में मदद करता है जिन्हें पचाना मुश्किल होता है.

तनाव कम करता है: गर्म पानी नर्वस सिस्टम को शांत करता है, जिससे शरीर में दर्द और तनाव दोनों कम महसूस होते हैं.

कब्ज से राहत: गुनगुना पानी आंतों की गति को बढ़ाता है, जिससे मल त्याग आसान होता है.

टॉक्सिन्स बाहर निकालता है: गर्म पानी पीने से शरीर का तापमान बढ़ता है और पसीने के जरिए त्वचा के पोर्स से विषैले तत्व बाहर निकलते हैं.

इसे भी पढ़ें: kidney disease symptoms: ये 5 सिग्नल नजर आएं तो समझ लें सड़ने लगी है आपकी किडनी, तुरंत भागें डॉक्टर के पास

Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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आज से ही शुरू कर दें ये 5 एक्सरसाइज, रिवर्स हो जाएगा खतरनाक फैटी लिवर

आज से ही शुरू कर दें ये 5 एक्सरसाइज, रिवर्स हो जाएगा खतरनाक फैटी लिवर


राहत की बात यह है कि एक्सरसाइज से लिवर में जमा फैट को काफी हद तक कम किया जा सकता है. बिना ज्यादा वजन घटाए भी एक्सरसाइज लिवर को मजबूत बनाती है. अगर इसे सही डाइट के साथ किया जाए, तो यह बीमारी को रिवर्स करने में मदद करती है. रिसर्च बताती है कि नियमित एक्सरसाइज लिवर फैट घटाने के साथ-साथ मेटाबॉलिज्म भी सुधारती है.

फैटी लिवर डिजीज में लिवर के अंदर 5 से 10 प्रतिशत तक फैट जमा हो जाता है. यह फैट लिवर की सेल्स को नुकसान पहुंचाता है और सूजन पैदा करता है. शुरुआती स्टेज में इसके लक्षण नजर नहीं आते, लेकिन इलाज न मिलने पर यह लिवर फेल्योर या कैंसर का कारण बन सकता है.

फैटी लिवर डिजीज में लिवर के अंदर 5 से 10 प्रतिशत तक फैट जमा हो जाता है. यह फैट लिवर की सेल्स को नुकसान पहुंचाता है और सूजन पैदा करता है. शुरुआती स्टेज में इसके लक्षण नजर नहीं आते, लेकिन इलाज न मिलने पर यह लिवर फेल्योर या कैंसर का कारण बन सकता है.

स्टडीज बताती हैं कि एक्सरसाइज फैटी लिवर का असरदार इलाज है. एरोबिक एक्सरसाइज लिवर फैट को घटाती है और ब्लड प्रेशर व कोलेस्ट्रॉल को भी संतुलित रखती है. हफ्ते में 150 से 300 मिनट की मीडियम एक्सरसाइज या दो दिन स्ट्रेंथ ट्रेनिंग लिवर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त है.

स्टडीज बताती हैं कि एक्सरसाइज फैटी लिवर का असरदार इलाज है. एरोबिक एक्सरसाइज लिवर फैट को घटाती है और ब्लड प्रेशर व कोलेस्ट्रॉल को भी संतुलित रखती है. हफ्ते में 150 से 300 मिनट की मीडियम एक्सरसाइज या दो दिन स्ट्रेंथ ट्रेनिंग लिवर को स्वस्थ रखने के लिए पर्याप्त है.

तेज चलना या हल्की दौड़ना एक आसान एरोबिक एक्सरसाइज है. इसमें सांस थोड़ी तेज हो जाती है लेकिन आप बात कर सकते हैं. रोज़ाना 30 से 45 मिनट तक तेज चाल से चलना लिवर फैट कम करने में मदद करता है.

तेज चलना या हल्की दौड़ना एक आसान एरोबिक एक्सरसाइज है. इसमें सांस थोड़ी तेज हो जाती है लेकिन आप बात कर सकते हैं. रोज़ाना 30 से 45 मिनट तक तेज चाल से चलना लिवर फैट कम करने में मदद करता है.

साइक्लिंग एक शानदार कार्डियो एक्सरसाइज है जो बड़ी मांसपेशियों को एक्टिव करती है और इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाती है. घर पर स्टेशनरी बाइक पर भी इसे किया जा सकता है. हफ्ते में 3 से 4 बार, 30 मिनट तक साइक्लिंग करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं.

साइक्लिंग एक शानदार कार्डियो एक्सरसाइज है जो बड़ी मांसपेशियों को एक्टिव करती है और इंसुलिन सेंसिटिविटी बढ़ाती है. घर पर स्टेशनरी बाइक पर भी इसे किया जा सकता है. हफ्ते में 3 से 4 बार, 30 मिनट तक साइक्लिंग करने से अच्छे नतीजे मिलते हैं.

हाई-इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग यानी HIIT में तेज एक्सरसाइज जैसे स्प्रिंट, बर्पीज़ और जंप स्क्वैट्स शामिल हैं. यह कम समय में ज्यादा असर देती है. एक स्टडी के मुताबिक, इससे एमएएसएच मरीजों में लिवर की स्थिति में सुधार देखा गया.

हाई-इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग यानी HIIT में तेज एक्सरसाइज जैसे स्प्रिंट, बर्पीज़ और जंप स्क्वैट्स शामिल हैं. यह कम समय में ज्यादा असर देती है. एक स्टडी के मुताबिक, इससे एमएएसएच मरीजों में लिवर की स्थिति में सुधार देखा गया.

स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से मसल्स मजबूत होते हैं और मेटाबॉलिज्म तेज होता है. यह शरीर को फैट बर्न करने में मदद करती है और लिवर पर दबाव कम करती है. हफ्ते में 3 सेशन पर्याप्त हैं. सही एक्सरसाइज और नियमित दिनचर्या से फैटी लिवर को शुरुआती स्टेज में ही रिवर्स किया जा सकता है.

स्ट्रेंथ ट्रेनिंग से मसल्स मजबूत होते हैं और मेटाबॉलिज्म तेज होता है. यह शरीर को फैट बर्न करने में मदद करती है और लिवर पर दबाव कम करती है. हफ्ते में 3 सेशन पर्याप्त हैं. सही एक्सरसाइज और नियमित दिनचर्या से फैटी लिवर को शुरुआती स्टेज में ही रिवर्स किया जा सकता है.

Published at : 12 Nov 2025 12:16 PM (IST)

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शरीर को कब होती है वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत? वॉर्निंग सिग्नल से लेकर रिस्क और रिकवरी तक जानें

शरीर को कब होती है वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत? वॉर्निंग सिग्नल से लेकर रिस्क और रिकवरी तक जानें



जब किसी मरीज की सांसें सामान्य रूप से नहीं चल पाती है, तब डॉक्टर उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखते हैं. यह एक लाइफ सेविंग मशीन होती है जो मरीज की सांस लेने में मदद करती है. वेंटिलेटर का इस्तेमाल आमतौर पर तब किया जाता है, जब मरीज के फेफड़े या सांस लेने की मांसपेशियां ठीक से काम नहीं कर पाती जैसे कि गंभीर फेफड़ों की बीमारी, बड़ी सर्जरी या किसी गंभीर संक्रमण के दौरान. वहीं डॉक्टर मरीज के ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड लेवल, सांस लेने के कोशिश और पूरी हेल्थ को देखकर यह तय करते हैं कि मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत है या नहीं. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि शरीर को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत कब-कब होती है.

कब होती है वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत?

  • गंभीर सांस लेने में परेशानी- जब फेफड़े ठीक से गैस एक्सचेंज नहीं कर पाते , जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है. ऐसे में वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ती है.
  • गंभीर चोट या बीमारी- बड़ी चोट, स्ट्रोक या सेप्सिस जैसी कंडीशन में सांस कमजोर पड़ने लगती है और वेंटीलेटर की जरूरत पड़ सकती है.
  • न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम- स्ट्रोक, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी या मसल्स कमजोर करने वाली बीमारियों में सांस लेने वाली मांसपेशियां काम करना बंद कर देती है. इसके बाद वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है.
  • बड़ी सर्जरी या एनेस्थीसिया के दौरान- ऑपरेशन के समय एनेस्थीसिया से सांस रुक सकती है, इसलिए अस्थायी रूप से वेंटिलेटर की जरूरत होती है.
  • हार्ट प्रॉब्लम- हार्ट फेल्योर या हार्ट अटैक के बाद शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है, ऐसे में वेंटिलेटर जरूरी हो सकती है.

कौन से संकेत बताते हैं वेंटिलेटर की जरूरत?

डॉक्टर मरीज के कुछ प्रमुख संकेत होते हैं जिन्हें देखकर तय करते हैं कि उसे वेंटिलेटर की जरूरत है या नहीं. इन संकेतों में बहुत मुश्किल से सांस लेना, ब्लड में ऑक्सीजन की कमी, ब्लड में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ना, भ्रम की कंडीशन और सांस लेने वाली मांसपेशियों की थकान शामिल होती है.

वेंटीलेटर के उपयोग के खतरे

वेंटिलेटर कई जिंदगियां बचाता है, लेकिन लंबे समय तक इसके इस्तेमाल से कुछ खतरे भी हो सकते हैं. जैसे लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहने से फेफड़ों में इंफेक्शन हो सकता है. वहीं मशीन से लंबे समय तक प्रेशर मिलने से फेफड़े कमजोर भी हो सकते हैं. इसके अलावा सिडेशन और न चलने के कारण मांसपेशियों की कमजोरी या ब्लड क्लॉट का खतरा भी हो सकता है. वहीं जब मरीज की तबीयत में सुधार होता है तो डॉक्टर धीरे-धीरे सपोर्ट कम कर देते हैं. इस दौरान मरीज के सांस लेने की क्षमता, ऑक्सीजन लेवल और शरीर की कंडीशन पर लगातार नजर रखी जाती है. सही समय पर वेंटिलेटर हटाना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि जल्दी हटाने से फिर से सांस रूकने का खतरा रहता है, जबकि देर से हटाने से भी कई प्रकार की समस्याएं भी हो सकती है.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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ये 5 सिग्नल नजर आएं तो समझ लें सड़ने लगी है आपकी किडनी, तुरंत भागें डॉक्टर के पास

ये 5 सिग्नल नजर आएं तो समझ लें सड़ने लगी है आपकी किडनी, तुरंत भागें डॉक्टर के पास



Early signs of kidney failure: किडनी हमारे शरीर का वह हिस्सा हैं जो चुपचाप दिन-रात काम करते रहते हैं. ये शरीर से जहरीले तत्व और अतिरिक्त पानी बाहर निकालते हैं, ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं और मिनरल्स का संतुलन बनाए रखते हैं. लेकिन जब किडनी ठीक से काम करना बंद कर देती है, तो शरीर कई संकेत देता है. जिन्हें अगर समय रहते न समझा जाए, तो यह गंभीर बीमारी का रूप ले सकती है. दुनिया की करीब 10 प्रतिशत आबादी किसी न किसी तरह की किडनी समस्या से जूझ रही है और हर साल लाखों लोगों की मौत इसी कारण होती है. चलिए आपको बताते हैं कि इसके कौन से लक्षण दिखाई देते हैं.

कौन से दिखते हैं लक्षण?

किडनी की परेशानी की शुरुआत अक्सर बहुत मामूली लक्षणों से होती है, लेकिन इन्हें नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है. अगर शरीर में लगातार थकान बनी रहती है, पैरों या आंखों के नीचे सूजन दिखती है, यूरिन का रंग या मात्रा बदल जाती है, सांस लेने में दिक्कत होती है या त्वचा रूखी और खुजलीदार महसूस होती है, तो यह संकेत हो सकता है कि आपकी किडनी कमजोर हो रही है.

लगातार थकान या कमजोरी इस बात का संकेत हो सकती है कि शरीर में टॉक्सिन्स जमा हो रहे हैं और किडनी उन्हें ठीक से बाहर नहीं निकाल पा रही. अगर भरपूर नींद लेने के बाद भी थकान महसूस होती है, तो इसे हल्के में न लें और डॉक्टर से जांच करवाएं. शरीर में सूजन भी एक बड़ा संकेत है. जब किडनी अतिरिक्त तरल पदार्थ नहीं निकाल पाती, तो वह शरीर के हिस्सों में जमा होने लगता है. इसका असर सबसे पहले पैरों, हाथों या चेहरे पर दिखता है. इसे मेडिकल भाषा में एडेमा  कहा जाता है.

यूरिन में बदलाव किडनी की समस्या का सबसे साफ़ संकेत होता है. पेशाब का रंग गहरा होना, उसमें झाग या बुलबुले दिखना, बार-बार पेशाब लगना या जलन महसूस होना.ये लक्षण बता सकते हैं कि किडनी में कुछ गड़बड़ है.  सांस फूलना या सांस लेने में परेशानी भी किडनी फेलियर का एक छिपा हुआ संकेत है. जब किडनी शरीर से अतिरिक्त तरल नहीं निकाल पाती, तो वही फ्लूइड फेफड़ों तक पहुंच जाता है और सांस लेना मुश्किल कर देता है. कई बार लोग इसे हार्ट या लंग्स की बीमारी समझ लेते हैं, जबकि असली वजह किडनी होती है. रूखी और खुजलीदार त्वचा इस बात का संकेत है कि किडनी खून से जरूरी मिनरल्स और अपशिष्ट पदार्थों को फिल्टर नहीं कर पा रही. इससे शरीर में मिनरल असंतुलन हो जाता है, जो स्किन को सूखा और खुजलीदार बना देता है. ये स्थिति अक्सर किडनी रोग के बढ़े हुए चरण में देखी जाती है.

डॉक्टर से संपर्क करने की जरूरत कब?

अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण महसूस हो, तो देर न करें और डॉक्टर से सलाह लें. शुरुआती पहचान से न सिर्फ बीमारी को रोका जा सकता है, बल्कि किडनी की कार्यक्षमता भी काफी हद तक बचाई जा सकती है. किडनी को स्वस्थ रखने के लिए सबसे जरूरी है संतुलित और हेल्दी डाइट. खाने में नमक कम करें, क्योंकि ज्यादा सोडियम ब्लड प्रेशर बढ़ाता है और किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे फल और सब्जियां खाएं जिनमें पोटैशियम कम हो जैसे सेब, बेरीज़, अंगूर, फूलगोभी, पत्ता गोभी और शिमला मिर्च. इनमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट सूजन को कम करते हैं और किडनी पर दबाव घटाते हैं. प्रोटीन के लिए हमेशा हल्के स्रोत चुनें जैसे मछली, दालें या अंडे का सफेद भाग. रेड मीट और प्रोसेस्ड फूड से परहेज करें क्योंकि इनमें मौजूद प्रिज़रवेटिव्स किडनी को ज़्यादा काम करने पर मजबूर करते हैं. इसके साथ-साथ, दवाइयों का अत्यधिक सेवन, खासकर पेनकिलर्स का, किडनी को नुकसान पहुंचा सकता है. डॉक्टर की सलाह के बिना दर्द निवारक दवाएं बार-बार न लें.

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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