हमारी स्किन पर हर वक्त रहता है यह वायरस, धीरे-धीरे बन जाता है कैंसर

हमारी स्किन पर हर वक्त रहता है यह वायरस, धीरे-धीरे बन जाता है कैंसर


आपने HPV वायरस के बारे में जरूर सुना होगा, जिसे ज्यादातर लोग गर्भाशय ग्रीवा (सर्वाइकल) कैंसर से जोड़ते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि HPV का एक प्रकार ऐसा भी है जो हमारी त्वचा पर बिना किसी नुकसान के चुपचाप रहता है? इसे बीटा-HPV कहा जाता है. वैज्ञानिकों का अब तक मानना था कि यह वायरस सीधे कैंसर नहीं करता, बल्कि सूरज की रोशनी से होने वाले नुकसान को बढ़ाने में मदद करता है.

नई खोज से वैज्ञानिक भी चौंके

अब एक बड़ी खोज ने यह धारणा बदल दी है. अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के वैज्ञानिकों ने साबित किया है कि यह “निर्दोष” समझा जाने वाला बीटा-HPV स्किन कैंसर का सीधा कारण बन सकता है, खासकर उन लोगों में जिनकी इम्यून सिस्टम कमजोर है.

कहानी एक मरीज से शुरू हुई

कहानी शुरू होती है 34 साल की एक महिला से, जिसे बार-बार स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा नामक त्वचा कैंसर हो रहा था. यह कैंसर उसके माथे पर बार-बार वापस आता रहा, जबकि डॉक्टर सर्जरी और इलाज करते रहे. शुरुआत में डॉक्टरों को लगा कि महिला की त्वचा सूरज की रोशनी से ठीक से रिपेयर नहीं कर पा रही और कमजोर इम्यून सिस्टम वायरस को बढ़ने दे रहा है.

वायरस ने किया स्किन कोशिकाओं पर कब्जा

जांच में चौंकाने वाला सच सामने आया. बीटा-HPV वायरस ने महिला की त्वचा की कोशिकाओं के डीएनए में प्रवेश कर लिया था और वहां प्रोटीन बना रहा था, यानी कोशिकाओं को पूरी तरह अपने कब्जे में कर लिया था. इससे पहले वैज्ञानिकों को नहीं पता था कि यह वायरस ऐसा कर सकता है.

कमजोर इम्यून सिस्टम बना बड़ी समस्या
महिला की इम्यून सिस्टम में भी गड़बड़ी थी. उसके टी-सेल्स ठीक से काम नहीं कर रहे थे, जिससे वायरस को रोकने की शक्ति खत्म हो गई थी. नतीजा यह हुआ कि वायरस लंबे समय तक शरीर में बना रहा और कैंसर बार-बार लौटता रहा.

स्टेम सेल ट्रांसप्लांट से मिला जीवन

NIH की टीम ने एक पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट प्लान बनाया और महिला को स्टेम सेल ट्रांसप्लांट दिया, जिससे उसकी खराब इम्यून कोशिकाओं की जगह स्वस्थ कोशिकाएं आ गईं. नतीजा चमत्कारिक था. ट्रांसप्लांट के बाद महिला की सभी HPV से जुड़ी समस्याएं खत्म हो गईं, यहां तक कि कैंसर भी. तीन साल से ज्यादा समय से यह कैंसर दोबारा नहीं लौटा है.

कैंसर के इलाज का तरीका बदल सकता है

यह केस दिखाता है कि कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों में बीटा-HPV सीधे त्वचा की कोशिकाओं को हाइजैक कर सकता है और कैंसर का कारण बन सकता है. NIH के डॉ. एंड्रिया लिस्को के अनुसार, “यह खोज हमारी समझ को पूरी तरह बदल सकती है कि यह कैंसर कैसे विकसित होता है और इसे कैसे ट्रीट किया जाए. हो सकता है कि कई ऐसे मरीज हों जिनमें इम्यून सिस्टम की गड़बड़ी के कारण कैंसर हो रहा हो और उन्हें इम्यून-टारगेटेड ट्रीटमेंट से फायदा मिल सके.”

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Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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भुट्टे के इस चीज की चाय पी ली तो गल जाएगा पुराने से भी पुराना किडनी स्टोन, डॉक्टर्स से समझें कै

भुट्टे के इस चीज की चाय पी ली तो गल जाएगा पुराने से भी पुराना किडनी स्टोन, डॉक्टर्स से समझें कै


Corn Tea for Kidney Stones: भुट्टा सिर्फ स्वाद में ही नहीं, सेहत के लिए भी बेहतरीन है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसके एक हिस्से की चा, जिसे हम आमतौर पर फेंक देते हैं. किडनी स्टोन जैसे दर्दनाक रोग को जड़ से खत्म कर सकती है? हम बात कर रहे हैं कॉर्न सिल्क यानी भुट्टे के रेशों की. यही वह हिस्सा है जो आमतौर पर छीलकर कूड़े में डाल दिया जाता है, लेकिन आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा दोनों ही इसके चमत्कारी गुणों को मान्यता दे रहे हैं.

डॉ. विमल छाजेड़ बताते हैं कि, कॉर्न सिल्क टी यानी भुट्टे के रेशों से बनी चाय न केवल किडनी स्टोन को घुलाने में मदद करती है, बल्कि यह सूजन कम करती है और यूरिनेशन को बेहतर बनाती है.

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क्या है कॉर्न सिल्क टी और कैसे बनती है?

कॉर्न सिल्क वो रेशेदार हिस्सा होता है जो भुट्टे की हरी पत्तियों के भीतर छिपा होता है। यह हल्के पीले या भूरे रंग के धागों जैसा होता है. इन्हें धोकर सुखाया जाता है और फिर चाय की तरह उबालकर पीया जाता है.

  • 1 गिलास पानी लें
  • उसमें 1 चम्मच सूखे कॉर्न सिल्क डालें
  • 7 मिनट तक उबालें
  • छानकर गुनगुना पी लें
  • चाहें तो थोड़ा शहद मिला सकते हैं स्वाद के लिए

कॉर्न सिल्क टी किडनी स्टोन पर कैसे असर करती है?

सूजन को कम करना

कॉर्न सिल्क में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो किडनी की सूजन और जलन को कम करते हैं.

स्टोन के बनने से रोकथाम

यह चाय कैल्शियम और ऑक्सालेट जैसे तत्वों को इकट्ठा होने से रोकती है, जिससे भविष्य में स्टोन बनने की संभावना भी घटती है.

कब और कितना सेवन करें?

  • दिन में 1 बार गुनगुनी कॉर्न सिल्क टी पी सकते हैं
  • 2 से 3 हफ्ते तक इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन डॉक्टरी सलाह जरूर है.
  • यदि दर्द बढ़े या पेशाब में खून आए, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें

किडनी स्टोन की दवाएं महंगी होती हैं और दर्द भी काफी होता. लेकिन भुट्टे के रेशों से बनी कॉर्न सिल्क टी एक ऐसा प्राकृतिक, सस्ता और साइड इफेक्ट फ्री उपाय है जो आपको राहत दे सकता है.

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जागरूक न हुए तो बढ़ेगा कैंसर का संकट, जानिए हेपेटाइटिस D से कैसे बढ़ता है खतरा

जागरूक न हुए तो बढ़ेगा कैंसर का संकट, जानिए हेपेटाइटिस D से कैसे बढ़ता है खतरा


Hepatitis D and Liver Cancer Risk: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय संस्था IARC अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी ने हेपेटाइटिस D वायरस को इंसानों के लिए कैंसर की दिक्कत मान लिया गया है. यानी यह वायरस अब आधिकारिक रूप से कैंसर का कारण माना गया है, जैसे कि हेपेटाइटिस B और C पहले से हैं. इस घोषणा के बाद स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि, अगर जल्द से जल्द टीकाकरण, जांच और इलाज की व्यवस्था नहीं की गई, तो लाखों लोगों की जान को खतरा हो सकता है.

क्या है हेपेटाइटिस D और यह कैसे फैलता है?

हेपेटाइटिस D एक दुर्लभ और खतरनाक वायरस है जो केवल उन्हीं लोगों को संक्रमित करता है जो पहले से हेपेटाइटिस B से पीड़ित हैं. इस वायरस के संक्रमण से लीवर को गंभीर नुकसान पहुंचता है और लिवर कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.

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क्यों है यह घोषणा बेहद जरूरी?

IARC की यह घोषणा इसलिए अहम है क्योंकि अब HDV को भी वैसी ही गंभीरता से देखा जाएगा जैसे हेपेटाइटिस B और C को देखा जाता है. WHO के अनुसार दुनिया में 1.2 से 2 करोड़ लोग हेपेटाइटिस D से प्रभावित हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है.

इसके पीछे कारण क्या है

  • सीमित जांच सुविधाएं
  • कमजोर स्वास्थ्य व्यवस्था
  • हेपेटाइटिस से जुड़ा सामाजिक कलंक

रोकथाम का सबसे कारगर उपाय

डॉक्टर और विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि, हेपेटाइटिस D से बचने के लिए सबसे जरूरी है टीकाकरण. क्योंकि HDV, HBV के बिना नहीं फैल सकता. यानी अगर आपने हेपेटाइटिस B से खुद को सुरक्षित कर लिया, तो HDV से भी बचे रहेंगे.

  • टीकाकरण नवजात और जोखिम वाले समूहों में, सबसे सशक्त सुरक्षा है
  • हेपेटाइटिस B का व्यापक टीकाकरण अभियान चलाना
  • जो लोग पहले से हेपेटाइटिस B से संक्रमित हैं, उनकी नियमित जांच कराना
  • गरीब और दूरदराज के इलाकों में मुफ्त जांच व इलाज मुहैया कराना
  • डॉक्टरों और आम जनता के बीच HDV को लेकर जागरूकता फैलाना

हेपेटाइटिस D को अब हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. यह वायरस खामोशी से लीवर को बर्बाद करता है और कैंसर की ओर ले जाता है. समय रहते टीकाकरण, जागरूकता और जांच ही इस खतरे से लड़ने का सबसे असरदार हथियार है.

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पहली बार मिला

पहली बार मिला


CRIB Blood Group: कभी-कभी एक मामूली सी मेडिकल जांच एक ऐतिहासिक खोज की शुरुआत बन जाती है. कर्नाटक के कोलार जिले में एक महिला के हार्ट सर्जरी से पहले की गई रूटीन ब्लड टेस्टिंग ने भारत ही नहीं, पूरी दुनिया को चौंका दिया है. यह एक ऐसा केस बन गया, जिसने ट्रांसफ्यूजन साइंस के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है.

दुनिया में पहली बार खोजा गयाCRIB”

कोलार जिले की 38 साल की महिला को हार्ट सर्जरी से पहले अस्पताल में भर्ती किया गया था. उनका ब्लड ग्रुप O+ बताया गया था, जो दुनिया का सबसे आम ब्लड ग्रुप माना जाता है. लेकिन जब उन्हें सर्जरी के दौरान ब्लड की जरूरत पड़ी तो डॉक्टर्स ने देखा कि O+ ग्रुप का कोई भी खून उनके लिए मैच नहीं हो रहा है. यह हैरान करने वाली स्थिति थी, क्योंकि O+ खून लगभग हर ब्लड बैंक में आसानी से मिल जाता है.

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मिस्ट्री से खोज तक का सफर

जब ये मामला बैंगलोर के रोटरी बैंगलोर टीटीके ब्लड सेंटर तक पहुंचाया गया. वहां के डायरेक्टर डॉ. अंकित माथुर के मौजूदगी में टीम ने इस केस की गंभीरता को समझते हुए गहराई से जांच शुरू की. जिसके बाद डॉ. माथुर ने बताया कि, मरीज का खून किसी भी सामान्य टेस्ट सैंपल से मेल नहीं खा रहा था. हमें शक हुआ कि शायद इसमें कोई नय एंटीजन है. इसके बाद महिला और उनके 20 परिवारजनों के सैंपल की जांच की गई, लेकिन किसी का खून भी मेल नहीं खाया.

बिना खून चढ़ाए हुई हार्ट सर्जरी

स्थिति इतनी गंभीर थी कि डॉक्टरों को पूरी सर्जरी बिना खून चढ़ाए करनी पड़ी. सावधानी और परिवार के सहयोग से यह सर्जरी सफलतापूर्वक की गई.

CRIB एंटीजन की पुष्टि हुई

महिला और उनके परिवार के ब्लड सैंपल को ब्रिटेन के अंतर्राष्ट्रीय रक्त समूह संदर्भ प्रयोगशाला भेजा गया. 10 महीनों की जांच के बाद वैज्ञानिकों ने पुष्टि की कि यह एक नया एंटीजन है. इस नए एंटीजन को CRIB नाम दिया गया.

आज भले ही यह CRIB ब्लड ग्रुप सिर्फ एक महिला में पाया गया है, लेकिन आने वाले समय में इसी प्रकार की खोजें कई जिंदगियां बचा सकती हैं. यह कहानी न केवल भारतीय मेडिकल साइंस की क्षमता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि, सामान्य सी दिखने वाली चीजें भी असाधारण खोजों की शुरुआत हो सकती हैं.

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डिलीवरी के बाद ज्यादा ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को देर से क्यों आते हैं पीरियड्स, क्या

डिलीवरी के बाद ज्यादा ब्रेस्ट फीडिंग कराने वाली महिलाओं को देर से क्यों आते हैं पीरियड्स, क्या


डिलीवरी के बाद महिलाओं के शरीर में कई तरह के बदलाव होते हैं. उनमें से एक है पीरियड्स का समय पर न आना. कई बार महिलाएं सोचती हैं कि यह कोई बीमारी है या हार्मोनल समस्या. लेकिन असल में यह एक सामान्य प्रक्रिया है, खासकर अगर महिला ब्रेस्ट फीडिंग कर रही हो. प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के बाद महिला का शरीर रिकवरी मोड में रहता है. इस दौरान शरीर में प्रोलैक्टिन (Prolactin) नाम का हार्मोन बढ़ जाता है. यही हार्मोन दूध बनाने के लिए जिम्मेदार है. मेडिकल रिसर्च के अनुसार, ज्यादा ब्रेस्ट फीडिंग करने से प्रोलैक्टिन का लेवल हाई रहता है. यह हार्मोन ओव्यूलेशन यानी एग रिलीज होने की प्रक्रिया को रोक देता है. जब एग रिलीज नहीं होगा, तो पीरियड्स भी नहीं आएंगे.

कितने समय तक पीरियड्स रुक सकते हैं?

अमेरिकन कॉलेज ऑफ ओब्सटेट्रिशियन्स एंड गायनेकोलॉजिस्ट्स (ACOG) की गाइडलाइन के मुताबिक, अगर महिला पूरी तरह से ब्रेस्ट फीडिंग कर रही है तो पीरियड्स 6 महीने या उससे भी ज्यादा देर तक नहीं आ सकते. कुछ केस में यह एक साल तक भी डिले हो सकता है. अगर महिला फीडिंग कम करती है या फॉर्मूला मिल्क देती है तो पीरियड्स जल्दी आ सकते हैं.

क्या यह खतरनाक है?

नहीं, यह खतरनाक नहीं है. यह शरीर की प्राकृतिक प्रक्रिया है. ब्रेस्ट फीडिंग करने वाली महिलाओं में हार्मोनल बदलाव के कारण ओव्यूलेशन देर से शुरू होता है, इसलिए पीरियड्स भी देर से आते हैं. हालांकि, अगर डिलीवरी के 1 साल बाद भी पीरियड्स नहीं आते हैं, या पेट में दर्द, ब्लीडिंग या अन्य लक्षण हैं तो डॉक्टर से जरूर मिलें.

क्या इस दौरान प्रेग्नेंसी हो सकती है?

कई लोग मानते हैं कि जब तक पीरियड्स नहीं आते तब तक प्रेग्नेंसी नहीं हो सकती. लेकिन यह सच नहीं है. ओव्यूलेशन पीरियड्स से पहले हो सकता है, इसलिए बिना प्रोटेक्शन के सेक्स करने से प्रेग्नेंसी का रिस्क रहता है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, ब्रेस्ट फीडिंग के बावजूद अगर आप प्रेग्नेंसी नहीं चाहतीं तो डॉक्टर से कंसल्ट करके बर्थ कंट्रोल का इस्तेमाल करें.

ब्रेस्ट फीडिंग के फायदे

ब्रेस्ट फीडिंग न केवल बच्चे के लिए फायदेमंद है बल्कि मां के लिए भी है. यह बच्चे की इम्यूनिटी बढ़ाता है और मां के लिए यूटेरस के सिकुड़ने में मदद करता है. साथ ही यह नेचुरल तरीके से पीरियड्स को डिले करता है, जिससे शरीर को रिकवर करने का समय मिलता है.

डिलीवरी के बाद पीरियड्स का लेट होना एक नॉर्मल प्रोसेस है, खासकर अगर आप ज्यादा ब्रेस्ट फीडिंग कर रही हैं. यह हार्मोनल बदलाव की वजह से होता है और खतरनाक नहीं है. लेकिन अगर बहुत लंबे समय तक पीरियड्स नहीं आते, तो डॉक्टर से चेकअप कराना जरूरी है.

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