क्या आपके पैर भी दे रहे हैं कोलेस्ट्रॉल का इशारा? जानें लक्षण

क्या आपके पैर भी दे रहे हैं कोलेस्ट्रॉल का इशारा? जानें लक्षण


Cholesterol Symptoms in Legs: सुबह की सैर पर निकले तो पैरों में भारीपन और हल्का दर्द महसूस होने लगा, सोचा कि इसे उम्र का तकाजा समझकर नजरअंदाज कर दिया जाए. लेकिन जब चलने में तकलीफ बढ़ने लगी और पैरों की त्वचा भी कुछ बदली-बदली सी दिखने लगी, तब जाकर डॉक्टर से मिले. जांच में जो सामने आया, वह चौंकाने वाला था. यानी कोलेस्ट्रॉल की समस्या होने लगी थी और उसके लक्षण पैरों में साफ नजर आ रहे थे. जी हां, कोलेस्ट्रॉल सिर्फ दिल की बीमारी या वजन बढ़ने की वजह नहीं है, बल्कि इसके संकेत आपके पैरों में भी छिपे हो सकते हैं. 

ये भी पढ़े- आंखों से पहचानें फैटी लिवर के लक्षण, समय रहते हो जाएं सतर्क

पैरों में बार-बार दर्द या ऐंठन 

अगर आपको चलने के दौरान या रात के समय पैरों में दर्द, भारीपन या ऐंठन महसूस होती है, तो यह खराब ब्लड सर्कुलेशन का संकेत हो सकता है, जो कोलेस्ट्रॉल के कारण धमनियों में रुकावट के चलते होता है.

पैरों की त्वचा का रंग बदलना

कोलेस्ट्रॉल के कारण रक्त का प्रवाह बाधित होता है, जिससे पैरों की त्वचा नीली, फीकी या बैंगनी रंग की दिख सकती है. त्वचा ठंडी महसूस होती है, और कभी-कभी छूने पर दर्द भी होता है.

घाव या कट जल्दी न भरना

अगर आपके पैरों में कोई छोटा सा घाव भी लंबे समय तक ठीक नहीं हो रहा है, तो यह खराब रक्त प्रवाह और ऑक्सीजन की कमी का नतीजा हो सकता है. यह स्थिति परिफेरल आर्टरी डिजीज की ओर इशारा करती है, जो उच्च कोलेस्ट्रॉल की वजह से हो सकती है.

पैरों के नाखून और बालों में बदलाव

पैरों के नाखून धीमी गति से बढ़ना या बालों का गिरना और उगना बंद हो जाना भी एक संकेत हो सकता है कि पैरों में रक्त संचार ठीक से नहीं हो रहा है.

पैरों में झुनझुनाहट या सुन्नपन

पैरों में बार-बार सुन्नपन या झुनझुनाहट होना नसों पर दबाव और ऑक्सीजन की कमी को दर्शाता है, जिसका कारण धमनियों में जमी चर्बी हो सकती है.

ऐसे लक्षण दिखने पर क्या करें 

यदि आपके पैरों में इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई दें, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें और लिपिड प्रोफाइल टेस्ट करवाएं. साथ ही जीवनशैली में बदलाव लाएं, स्वस्थ आहार लें, नियमित व्यायाम करें और धूम्रपान से दूर रहें.

ये भी पढ़ें: हर घंटे 100 लोगों की जान ले रहा अकेलापन, जानें यह बीमारी कितनी खतरनाक और लोगों को कैसे बनाती है अपना शिकार?

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )

Calculate The Age Through Age Calculator



Source link

कोविड वैक्सीन से नहीं बढ़े हार्ट अटैक के मामले, AIIMS के डॉक्टरों ने वैज्ञानिक डेटा से बताया सच

कोविड वैक्सीन से नहीं बढ़े हार्ट अटैक के मामले, AIIMS के डॉक्टरों ने वैज्ञानिक डेटा से बताया सच


हाल के वर्षों में अचानक हार्ट अटैक से हो रही युवाओं की मौतों को लेकर सोशल मीडिया पर उठ रहे सवालों और वैक्सीनेशन से उसके कथित संबंध पर आज यानी 03 जुलाई को दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) दिल्ली के वरिष्ठ डॉक्टरों ने अहम जानकारी दीं. उन्होंने स्पष्ट किया कि कोविड वैक्सीन और एकदम से हार्ट अटैक के मामलों में कोई संबंध नहीं मिला है. वहीं, वैज्ञानिक आंकड़े के मुताबिक कोविड वैक्सीन की वजह से एकदम से हार्ट अटैक के मामले कम भी हुए हैं.

भारत में लगाई गईं ये दो वैक्सीन

AIIMS दिल्ली के वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. संजय राय के मुताबिक, जनवरी 2021 में भारत में वैक्सीनेशन की शुरुआत हुई. उस दौरान कोविशील्ड और कोवैक्सिन दो प्रमुख वैक्सीन इस्तेमाल की गईं. इन दोनों वैक्सीन का ट्रायल भारत में हुआ और कोविशील्ड की प्रभावशीलता 63% रही थी. वहीं, अब तक दुनियाभर में 13 अरब से ज्यादा डोज दी जा चुकी हैं और WHO ने 12 वैक्सीन को मंजूरी दी है. डॉ. संजय राय के मुताबिक, पहले ये तय करना होगा कि वैक्सीन के फायदे ज्यादा हैं या फिर नुकसान? इसका जवाब है कि कोविड वैक्सीन के फायदे नुकसान से बेहद ज्यादा थे और रिएक्शन की दर काफी कम थी. 

उदाहरण के लिए, कोविड वैक्सीन से होने वाले गंभीर रिएक्शन 10 लाख लोगों में 30 से 70 लोगों में ही देखे गए. इसी तरह 12 साल से कम उम्र के बच्चों को भारत में वैक्सीन नहीं दी गई, क्योंकि उस आयु वर्ग में वैक्सीनेशन का रिस्क फायदे से ज्यादा था. ऐसे में भारत का वैक्सीन प्रोग्राम कोविड के खिलाफ वैज्ञानिक आधार पर था.

यूथ को अचानक क्यों आ रहा हार्ट अटैक?

एम्स दिल्ली के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव नारंग के मुताबिक, भारत में युवाओं में एकदम से हार्ट अटैक के पीछे तीन प्रमुख कारण हैं. ये कारण हार्ट मसल का मोटा होना, मॉलिक्यूलर में बदलाव और पारंपरिक क्लॉटिंग है. वहीं, बुजुर्गों में हार्ट अटैक का मुख्य कारण क्लॉटिंग है. कोविड के बाद लोगो में हेल्थ अवेयरनेस बढ़ी है और सोशल मीडिया का इस्तेमाल भी बढ़ा है. ऐसे में भारत में कोविड के बाद एकदम से हार्ट अटैक के मामले बढ़ते दिख रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है. डॉ. नारंग ने 8 जरूरी उपाय सुझाए हैं, जिससे एकदम से आने वाले हार्ट अटैक को रोका जा सकता है. इनमें पहला धूम्रपान बंद करें. दूसरा रोजाना एक्सरसाइज करें. तीसरा संतुलित आहार लें. चौथा तनाव कम करें. पांचवां नींद पूरी लें. छठा शराब से दूरी बनाएं. सातवां मोटापा नियंत्रित करें और आठवां समय-समय पर चेकअप कराएं.

क्या वैक्सीन की वजह से आ रहा हार्ट अटैक?

AIIMS दिल्ली के सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. करन मदान ने वैक्सीन और एकदम से हार्ट अटैक की थ्योरी को नकारते हुए दावा किया कि कोविड वैक्सीन ने लाखों लोगों की जान बचाई है. वैक्सीन के फायदे ज्यादा मिले हैं. साथ ही, सडन कार्डियक डेथ और वैक्सीन के बीच कोई वैज्ञानिक संबंध नहीं है.

जांच में सामने आई यह बात

एम्स और आईसीएमआर की स्टडी में शामिल डॉ. सुधीर आरवा के मुताबिक, स्टडी में कोविड के दौरान जिनकी हार्ट अटैक से मौत हुई और बाद में जिनकी मौत हार्ट अटैक से हुई, ऐसे 300 सैंपल पर स्टडी की गई. जांच में सामने आया कि अधिकतर मौतों का कारण coronary artery disease था, जिसका सबसे बड़ा कारण धूम्रपान और शराब रहा. इसके अलावा कोविड से पहले और बाद में युवाओं में हार्ट अटैक के आंकड़े लगभग एक बराबर हैं. फर्क यह है कि अब सोशल मीडिया की वजह से हर घटना तुरंत सामने आ जाती है.

किस वजह से होती है ब्लड क्लॉटिंग?

एम्स दिल्ली की हेमेटोलॉजी विभाग की डॉ. तुलिका ने बताया कि थ्रोम्बोसिस (ब्लड क्लॉट) सिर्फ कोविड वैक्सीन से नहीं, बल्कि रेबीज या अन्य वैक्सीन से भी हो सकता है. यह एक जैविक प्रतिक्रिया है. साथ ही, कोविड वायरस खुद भी खतरनाक ब्लड क्लॉटिंग करता है, इसलिए वैक्सीन को दोष देना गलत है. कोविड वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी है.

पूरे देश में क्या है हाल?

AIIMS के फॉरेंसिक विभाग के डॉ. अभिषेक यादव के मुताबिक, एम्स के डेटा से सामने आया कि कोविड के बाद अचानक दिल के दौरे से मौत के मामलों में कमी आई है. इसमें इजाफा नहीं हुआ है. ऐसे में जरूरत पूरे देश में एक स्टडी करने की है, जिससे सही स्थिति सामने आए.

ये भी पढ़ें: साफ पानी के लिए RO करते हैं इस्तेमाल, जानें कितनी बीमारियों को लगाते हैं गले?

Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

Check out below Health Tools-
Calculate Your Body Mass Index ( BMI )

Calculate The Age Through Age Calculator



Source link

कुछ नहीं खाने के बाद भी बढ़ रहा है आपका वजन? इस बीमारी के हैं ये लक्षण

कुछ नहीं खाने के बाद भी बढ़ रहा है आपका वजन? इस बीमारी के हैं ये लक्षण



<p style="text-align: justify;">कुछ लोगों की डाइट बेहद कम होती है, फिर भी उनका वजन लगातार बढ़ता रहता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसके पीछे भी कोई गंभीर बीमारी है? आइए आपको उन बीमारियों के बारे में बताते हैं, जिनमें बिना ज्यादा खाए भी वजन बढ़ने लगता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>अचानक क्यों बढ़ने लगता है वजन?</strong></p>
<p style="text-align: justify;">हार्वर्ड हेल्थ (2023) के मुताबिक, अनजाने में वजन बढ़ना अक्सर उम्र से संबंधित शारीरिक परिवर्तनों, अंतर्निहित बीमारियों, दवाओं के दुष्प्रभाव, या आंत के बैक्टीरिया (माइक्रोबायोम) में बदलाव के कारण हो सकता है. वजन बढ़ने की वजह हमेशा ज्यादा खाना या कम एक्सरसाइज नहीं होता है. दिल्ली स्थित फोर्टिस हॉस्पिटल में एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. संजय गुप्ता के मुताबिक, वजन बढ़ना सिर्फ कैलोरी की मात्रा पर निर्भर नहीं करता है. हार्मोनल डिसबैलेंस, नींद की कमी और टेंशन आदि के कारण शरीर का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है, जिससे वजन बढ़ सकता है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>इन बीमारियों की वजह से बढ़ता है वजन</strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism):</strong> हाइपोथायरायडिज्म तब होता है, जब थायरॉयड ग्रंथि पर्याप्त थायरॉयड हार्मोन नहीं बनाती है. यह कंडीशन मेटाबॉलिज्म को धीमा कर देती है, जिससे वजन बढ़ने लगता है. इस वजह से थकान और कमजोरी महसूस होती है. साथ ही, वजन अचानक बढ़ने लगता है. इसके अलावा स्किन में सूखापन, बालों का झड़ना, ठंड सहन न कर पाना, मांसपेशियों में दर्द और जोड़ों में अकड़न आदि दिक्कतें भी होती हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में थायरॉयड एक्सपर्ट डॉ. रीता शर्मा का कहना है कि हाइपोथायरायडिज्म की समय पर जांच और इलाज जरूरी है. थायरॉयड हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी से वजन कंट्रोल किया जा सकता है, लेकिन डॉक्टर की सलाह के बिना दवा नहीं लेनी चाहिए.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS):</strong> पीसीओएस एक हार्मोनल डिसऑर्डर है, जो महिलाओं के अंडाशय में अधिक मात्रा में पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) के प्रॉडक्शन के कारण होता है. PCOS इंसुलिन रेसिस्टेंस को बढ़ाता है, जिससे वजन बढ़ने की आशंका बढ़ जाती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कुशिंग सिंड्रोम (Cushing&rsquo;s Syndrome):</strong> कुशिंग सिंड्रोम तब होता है, जब शरीर में कॉर्टिसोल हार्मोन (तनाव हार्मोन) का लेवल असामान्य रूप से बढ़ जाता है. यह कंडीशन स्टेरॉयड दवाओं के लंबे समय तक इस्तेमाल या अधिवृक्क ग्रंथि (adrenal gland) में ट्यूमर के कारण हो सकती है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>डिप्रेशन और चिंता (Depression and Anxiety):</strong> मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम जैसे डिप्रेशन और चिंता की वजह से भूख और खानपान की आदतों पर असर पड़ सकता है. डिप्रेशन से पीड़ित लोग अक्सर ‘कम्फर्ट फूड्स’ की ओर आकर्षित होते हैं, जो हाई कैलोरी और कम पोषक तत्व वाले होते हैं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>नींद की कमी और तनाव (Sleep Deprivation and Stress):</strong> नींद की कमी और टेंशन की वजह से कॉर्टिसोल का लेवल बढ़ जाता है, जिससे भूख ज्यादा लगती है और मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है. जो लोग रात में 6 घंटे से कम सोते हैं, उन्हें यह दिक्कत ज्यादा होती है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>ये भी पढ़ें: <a href="https://www.abplive.com/lifestyle/health/can-drinking-too-much-ro-water-make-you-sick-2972718">साफ पानी के लिए RO करते हैं इस्तेमाल, जानें कितनी बीमारियों को लगाते हैं गले?</a></strong></p>
<p style="text-align: justify;"><strong>Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.</strong></p>



Source link