वेट लॉस या फैट लॉस… ब्लड शुगर मरीजों के लिए क्या है सही तरीका?

वेट लॉस या फैट लॉस… ब्लड शुगर मरीजों के लिए क्या है सही तरीका?



आजकल लोग हेल्दी रहने और ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखने के लिए सबसे पहले वजन घटाने की सलाह देते हैं.  हर कोई यही सोचता है कि अगर वजन कम हो गया तो डायबिटीज का खतरा भी कम हो जाएगा. लेकिन सच यह होता है कि वेट लॉस और फैट लॉस दोनों एक जैसी चीज नहीं होती है. कई बार वजन तो घट जाता है लेकिन शरीर के अंदर मौजूद फैट नहीं घटता और यही कारण है कि ब्लड शुगर और इंसुलिन सेंसिटिविटी पर असर नहीं पड़ता है.

दरअसल वजन घटाने से शरीर का नंबर यानी स्केल पर दिखने वाला आंकड़ा तो कम हो सकता है, लेकिन असली सुधार तब होता है जब शरीर में मौजूद एक्स्ट्रा फैट खासकर पेट और लिवर के आसपास जमा विसरल फैट घटता है. यही फैट इन्सुलिन रेजिस्टेंस की बड़ी वजह बनता है. जिसका मतलब है कि अगर आप ब्लड शुगर की समस्या से जूझ रहे हैं तो सिर्फ वजन घटाने की बजाई फैट लॉस पर ध्यान देना ज्यादा फायदेमंद होता है.

वेट लॉस का मतलब फैट लॉस नहीं

जब लोग डाइटिंग शुरू करते हैं या एक्सरसाइज करते हैं तो जल्दी वजन घटने लगता है. लेकिन शुरुआती दिनों में जो वजन कम होता है, वह ज्यादातर पानी ग्लाइकोजन और कभी-कभी मसल्स लॉस की वजह से होता है. रिसर्च के अनुसार अगर वजन कम करते समय मसल्स भी घट जाए तो इसका ब्लड शुगर कंट्रोल पर नेगेटिव असर पड़ सकता है. क्योंकि मसल्स ही ग्लूकोज को एनर्जी में बदलने का सबसे अहम जरिया मानी जाती है. जिसका मतलब है कि वजन घटने के बावजूद मेटाबॉलिक हेल्थ नहीं सुधर पाती है.

फैट लॉस से कैसे सुधरती है इंसुलिन सेंसिटिविटी?

फैट लॉस का मतलब शरीर में मौजूद फैट टिश्यू खासकर पेट और लिवर के आसपास जमा विसरल फैट को घटना होता है. यही फैट इन्सुलिन रेजिस्टेंस की जड़ में होता है. जब यह फैट कम होता है तो शरीर में सूजन घटती है और इंसुलिन पर असर करने वाले फैटी एसिड्स भी कम हो जाते हैं. एक रिसर्च में यह सामने आया है कि शरीर की कुल फैट मात्रा में सिर्फ 10 प्रतिशत की कमी से इन्सुलिन सेंसटिविटी करीब 30 प्रतिशत तक बढ़ जाती है, भले ही कुल वजन में बहुत बदलाव न आए. वहीं शरीर में जमा हर फैट एक जैसा नहीं होता है. स्किन के नीचे जमा सबक्यूटेनियस फैट कम नुकसानदायक होता है. लेकिन अंगों के आसपास जमा विसरल फैट सबसे ज्यादा खतरनाक होता है. यही फैट लिवर पैंक्रियाज और आंतों के आसपास जमा होकर ब्लड शुगर को बढ़ाता है. लिवर में जमा फैट इतना खतरनाक होता है कि यह शरीर में ग्लूकोज रिलीज करता है. भले ही ब्लड शुगर पहले से हाई हो. यही वजह है कि कई बार लोग जिन लोगों का वजन सामान्य दिखता है वह भी डायबिटीज का शिकार हो जाते हैं. इसे मेटाबॉलिकली ओबेस नॉर्मल वेट कहा जाता है.

क्या बिना ज्यादा वजन घटाएं फैट घटाना मुमकिन है?

दरअसल बिना ज्यादा वजन घटाएं फैट घटाना मुमकिन है और यही तरीका हेल्दी भी माना जाता है. कई लोग फैट घटाते हुए मसल्स को बनाए रखते हैं. इससे इंसुलिन सेंसिटिविटी में सुधार आता है और मेटाबॉलिक हेल्थ बेहतर होती है. भले ही स्केल पर ज्यादा वजन ना बदले. एक रिसर्च के अनुसार जो लोग रेजिस्टेंस ट्रेनिंग को डाइटिंग के साथ जोड़ते हैं उनका ब्लड शुगर कंट्रोल सिर्फ डाइटिंग करने वालों की तुलना में ज्यादा अच्छा होता है. इसकी वजह यह मानी जाती है कि मसल्स ग्लूकोज को अवशोषित कर उसे एनर्जी में बदलने का काम करते हैं.

फैट लॉस के लिए असरदार तरीके

  • फैट लॉस करने के लिए रेजिस्टेंस और एरोबिक ट्रेनिंग करें, जिससे मसल्स भी बने रहेंगे और फैट बर्न होगा.
  • इसके अलावा फैट लॉस के लिए प्रोटीन युक्त भोजन लें, ताकि मसल्स लॉस न हो.
  • वहीं फाइबर हेल्दी फैट और साबुत अनाज को डाइट में शामिल करें.
  • फैट लॉस के लिए पूरी नींद लें, क्योंकि नींद की कमी इन्सुलिन रेजिस्टेंस बढ़ाती है.
  • फैट लॉस के लिए फास्ट डाइट या एक्सट्रीम डिटॉक्स प्लान से बचना भी ज्यादा सही माना जाता है. ‌

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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सरकार का दावा- दिल्ली में रेबीज से एक भी मौत नहीं, आंखें खोल देगा अस्पतालों का आंकड़ा

सरकार का दावा- दिल्ली में रेबीज से एक भी मौत नहीं, आंखें खोल देगा अस्पतालों का आंकड़ा



Rabies Deaths in Delhi: दिल्ली में रेबीज के मामलों को लेकर सरकारी दावों और असल आंकड़ों में बड़ा अंतर सामने आया है. संसद में केंद्र सरकार ने बताया था कि साल 2022 से 2024 के बीच राजधानी में एक भी इंसान की मौत रेबीज से नहीं हुई, लेकिन राइट टू इन्फॉर्मेशन के तहत मिले आंकड़े इस दावे से बिल्कुल अलग तस्वीर दिखाते हैं. दिल्ली नगर निगम के अधीन महार्षि वाल्मीकि इंफेक्शन रोग अस्पताल के रिकॉर्ड के मुताबिक, पिछले तीन वर्षों में 18 लोगों की मौत रेबीज से हुई है. इनमें 2022 में 6, 2023 में 2 और 2024 में 10 मौतें दर्ज की गईं. यह आंकड़े सीधे तौर पर उस रिपोर्ट से टकराते हैं, जिसे पशुपालन और मत्स्य पालन राज्य मंत्री एस.पी. सिंह बघेल ने संसद में पेश किया था.

क्या था रिपोर्ट में?

सरकारी रिपोर्ट में कहा गया था कि जनवरी 2022 से जनवरी 2025 तक दिल्ली में जीरो ह्यूमन रेबीज डेथ्स दर्ज की गईं. हालांकि, लोकसभा के उसी जवाब में कुत्तों के काटने के मामलों का जिक्र जरूर था दिल्ली में 2022 में 6,691, 2023 में 17,874 और 2024 में 25,210 डॉग बाइट केस दर्ज हुए. यह आंकड़े दिखाते हैं कि जहां इंसानी मौतें शून्य बताई गईं, वहीं कुत्तों के काटने के मामलों में हर साल लगातार बढ़ोतरी हुई है. यह अंतर स्वास्थ्य तंत्र की निगरानी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है. जब बीमारी पूरी तरह से रोकी जा सकती है, तो मौतों की रिपोर्टिंग में इतनी अंतर क्यों है? एक्सपर्ट के अनुसार, यह डेटा समन्वय और रिपोर्टिंग की ट्रांसपेरेंसी की कमी को उजागर करता है.

डाटा अपलोड करना जरूरी

केंद्र सरकार के नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम के तहत, राज्यों को हर महीने कुत्तों के काटने और रेबीज़ से हुई मौतों का डेटा तैयार कर इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम पोर्टल पर अपलोड करना होता है. मंत्रालय का कहना है कि यह सिस्टम पूरे देश में रेबीज और एनिमल बाइट्स की निगरानी को बेहतर बनाता है. हालांकि, RTI में मिले आंकड़े बताते हैं कि जमीनी स्तर पर डेटा रिपोर्टिंग अभी भी अधूरी और सही तरीके से नहीं है. यही वजह है कि केंद्र और स्थानीय स्तर के आंकड़े एक-दूसरे से मेल नहीं खाते.

सरकार ने लॉन्च किया था मिशन

रेबीज को लेकर सरकार ने 2021 में नेशनल एक्शन प्लान फॉर डॉग-मीडिएटेड रेबीज एलिमिनेशन बाय 2030 लॉन्च किया था, जो स्वास्थ्य मंत्रालय और पशुपालन मंत्रालय की संयुक्त पहल है. इस योजना के तहत नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल मानव स्वास्थ्य से जुड़े मामलों की निगरानी करता है, जबकि पशुपालन विभाग पशु स्वास्थ्य की देखरेख करता है. योजना का मकसद है देशभर में कुत्तों का टीकाकरण, नसबंदी और एंटी-रेबीज वैक्सीन और सीरम की लगातार उपलब्धता सुनिश्चित करना. ये दवाएं नेशनल हेल्थ मिशन के तहत मुफ्त उपलब्ध कराई जाती हैं और इन्हें राज्यों की आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल किया गया है.

रैबीज को रोकने का तरीका

एक तरफ सरकार शून्य मौत का दावा कर रही है और दूसरी तरफ अस्पतालों के रिकॉर्ड में मौतें दर्ज हो रही हैं तो सवाल उठता है कि कहीं स्वास्थ्य निगरानी और रिपोर्टिंग व्यवस्था में गंभीर खामियां तो नहीं हैं. रेबीज ऐसी बीमारी है जो 100 प्रतिशत रोकी जा सकती है, लेकिन लक्षण दिखने के बाद लगभग हमेशा जानलेवा साबित होती है. 

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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.

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42 की उम्र में मां बनीं कैटरीना कैफ, इस उम्र में प्रेग्नेंसी कितनी मुश्किल?

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वैज्ञानिकों ने तैयार किया आर्टिफिशियल वॉम्ब, प्रीमैच्योर बर्थ वाले बच्चे को मिलेगी संजीवनी

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How Artificial Womb Works: साइंटिस्ट ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो समय से पहले जन्मे शिशुओं के लिए जीवनदान साबित हो सकती है. नीदरलैंड और जर्मनी के शोधकर्ता एक आर्टिफिशियल वॉम्ब यानी कृत्रिम गर्भाशय पर काम कर रहे हैं, जो मां के गर्भ जैसा माहौल तैयार कर सकेगा. इसे AquaWomb नाम दिया गया है और यह उन बच्चों की मदद के लिए डिजाइन किया गया है जो गर्भावस्था के 22 से 24 हफ्तों के बीच जन्म लेते हैं, वह चरण जहां उनके बचने की संभावना बेहद कम होती है. चलिए आपको बताते हैं कि यह कैसे काम करता है?

कैसे काम करता है यह?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह सिस्टम एक तरल पदार्थ से भरे पारदर्शी टैंक में काम करता है, जो आकार में लगभग एक मछलीघर जितना होता है और इसका तापमान 37.6 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर रहता है. इसके भीतर मौजूद नरम डबल-लेयर झिल्ली के अंदर बच्चा तैरता और बढ़ता है, जबकि एक सिंथेटिक प्लेसेंटा के जरिए ऑक्सीजन और बाकी अन्य जरूरी चीजों को पहुंचाया जाता है.

एक्सपर्ट का क्या है कहना?

एंडहोवन यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर फ्रांस वैन डे वोसे ने बताया कि “सबसे बड़ी चुनौती फेफड़ों की होती है. यह ऐसा है जैसे जलते हुए दस गेंदों को एक साथ उछालना, जिनमें से कोई भी गिरनी नहीं चाहिए.” यानी हर अंग को स्थिर रखना बेहद नाज़ुक प्रक्रिया है. अगर यह प्रयोग सफल रहता है, तो आर्टिफिशियल वॉम्ब तकनीक समय से पहले जन्मे शिशुओं की जान बचाने में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है. फिलहाल ऐसे बच्चे वेंटिलेटर और इनक्यूबेटर पर निर्भर रहते हैं, जिससे उनके फेफड़ों को स्थायी नुकसान का खतरा रहता है.

AquaWomb की सह-संस्थापक और सीईओ मिर्थे वैन डेर वेन कहती हैं  कि “हम सिर्फ जीवन बचाना नहीं चाहते, बल्कि माता-पिता को अपने बच्चे से जुड़ाव महसूस कराने का मौका देना चाहते हैं.” कुछ प्रोटोटाइप्स में ऐसे पोर्ट भी शामिल हैं, जिनसे माता-पिता अपने बच्चे को छू सकते हैं, साथ ही एक यूट्रस फोन  भी है जो माता-पिता की आवाज और दिल की धड़कन को एम्नियोटिक फ्लूइड के ज़रिए प्रसारित करता है.

इसके साथ क्या है दिक्कत?

एक्सपर्ट का मानना है कि यह तकनीक चिकित्सा जगत में नई नैतिक और इमोश्नल बहसें भी खड़ी कर सकती है. डर्हम यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर एलिजाबेथ क्लोए रोमैनिस ने कहा कि  “यह इंसानी विकास का एक नया चरण होगा, जिसके लिए अब तक कोई कानूनी या नैतिक परिभाषा तय नहीं है.” अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने 2023 में पहली बार इंसानों पर इस तकनीक के ट्रायल को लेकर कमेटी गठित की थी. शुरुआत में इसका परीक्षण 24 हफ्तों से पहले जन्मे शिशुओं पर किया जा सकता है, जिनके जीवित बचने की संभावना वर्तमान चिकित्सा तरीकों से बहुत कम होती है.

अमेरिका की कंपनी Vitara Biomedical ने इसी तरह की biobag तकनीक पर काम करने के लिए 125 मिलियन डॉलर जुटाए हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि क्लिनिकल ट्रायल जल्द शुरू हो सकते हैं. हालांकि बायोएथिक्स एक्सपर्ट चेतावनी देते हैं कि यह तकनीक जहां लाखों जिंदगियां बचा सकती है, वहीं यह गर्भावस्था और मातृत्व की पारंपरिक परिभाषाओं को भी चुनौती दे सकती है.

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धमाके के बाद सदमे में चला गया है कोई अपना, ऐसे कर सकते हैं उसकी मदद

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What to do During Shock: सोमवार की शाम दिल्ली धमाकों से दहल गया. लाल किले के पास हुए धमाके में 9 लोग मारे गए और 24 से ज्यादा लोग घायल हुए. घटनास्थल से लेकर अस्पताल तक, हर तरफ चीखें और पुकार सुनाई दे रहीं थीं. आसपास के लोगों को समझ में ही नहीं आया कि आखिर यह क्या हो गया. कई लोग जो वहां मौजूद थे, वे सदमे में चले गए और कुछ बोल ही नहीं पा रहे थे. चलिए आपको बताते हैं कि अगर धमाके के बाद आपको कोई अपना सदमे में चला जाए, तो आपको क्या करना चाहिए. 

शॉक लगने पर क्या करना चाहिए?

mayoclinic के अनुसार, शॉक एक गंभीर स्थिति होती है, जो शरीर में अचानक रक्त प्रवाह कम होने के कारण होती है. यह स्थिति किसी हादसे, हीट स्ट्रोक, अत्यधिक खून बहने, एलर्जिक रिएक्शन, इंफेक्शन, जहर या गहरी जलन जैसी वजहों से भी हो सकती है. जब शरीर में पर्याप्त रक्त या ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाता, तो दिल, दिमाग और दूसरे अंग सही तरीके से काम नहीं कर पाते. अगर समय पर इलाज न मिले, तो यह स्थिति जानलेवा भी साबित हो सकती है.

कब होती है डॉक्टर की जरूरत?

अगर किसी व्यक्ति में शॉक के लक्षण दिख रहे हों, तो तुरंत 108 या अपनी स्थानीय आपातकालीन सेवा को कॉल करें.

शॉक के लक्षण

शॉक के लक्षण परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं, लेकिन आम तौर पर इनमें शामिल हैं-

  • ठंडी और पसीने से भरी त्वचा
  • त्वचा का पीला या राख जैसा रंग
  • होंठ या नाखूनों का नीला पड़ना
  • तेज धड़कन
  • तेज सांसें
  • उल्टी या जी मिचलाना
  • आंखों की पुतलियों का फैल जाना
  • कमजोरी या थकावट महसूस होना
  • चक्कर आना या बेहोश हो जाना
  • बेचैनी या व्यवहार में बदलाव, जैसे घबराहट या भ्रम

क्या करें?

  • आपातकालीन सेवा को कॉल करने के बाद ये कदम तुरंत उठाएं:
  • व्यक्ति को लेटाएं और उसके पैर हल्के ऊपर उठाएं अगर इससे दर्द या चोट न बढ़े.
  • उसे ज्यादा हिलने-डुलने न दें.
  • अगर वह सांस नहीं ले रहा या हरकत नहीं कर रहा, तो CPR शुरू करें.
  • उसके कपड़े ढीले कर दें और जरूरत हो तो कंबल ओढ़ा दें ताकि शरीर का तापमान बना रहे.
  • अगर व्यक्ति को उल्टी आ रही है या मुंह से खून निकल रहा है, और रीढ़ की हड्डी में चोट का शक नहीं है, तो उसे करवट दिला दें ताकि दम न घुटे.

क्या न करें?

  • व्यक्ति को कुछ भी खाने या पीने न दें.
  • बिना जरूरत के उसे हिलाएं या स्थान बदलें नहीं.

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रोजाना इलायची चबाने से मिलते हैं ये 11 फायदे, पता लग गया तो कभी नहीं करेंगे इग्नोर

रोजाना इलायची चबाने से मिलते हैं ये 11 फायदे, पता लग गया तो कभी नहीं करेंगे इग्नोर


इलायची का सबसे बड़ा फायदा है कि यह डाइजेशन को मजबूत करती है. अगर आपको अक्सर गैस, एसिडिटी या भारीपन की समस्या रहती है, तो खाना खाने के बाद एक इलायची चबाना फायदेमंद रहेगा. यह पेट के एंजाइम्स को एक्टिव करती है जिससे खाना जल्दी और आसानी से पचता है.

इलायची सांसों को ताजा रखने में भी मदद करती है. इसमें मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण मुंह के बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और बदबू को दूर रखते हैं. यही वजह है कि पुराने समय में लोग माउथ फ्रेशनर की जगह इलायची ही खाते थे.

इलायची सांसों को ताजा रखने में भी मदद करती है. इसमें मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण मुंह के बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और बदबू को दूर रखते हैं. यही वजह है कि पुराने समय में लोग माउथ फ्रेशनर की जगह इलायची ही खाते थे.

हार्ट की सेहत के लिए भी इलायची बेहतरीन मानी जाती है. इसके एंटीऑक्सीडेंट्स ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करते हैं, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखते हैं और कोलेस्ट्रॉल का जमाव कम करते हैं. ये तीनों चीजें मिलकर दिल को मजबूत बनाती हैं.

हार्ट की सेहत के लिए भी इलायची बेहतरीन मानी जाती है. इसके एंटीऑक्सीडेंट्स ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करते हैं, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में रखते हैं और कोलेस्ट्रॉल का जमाव कम करते हैं. ये तीनों चीजें मिलकर दिल को मजबूत बनाती हैं.

इलायची को एक नेचुरल डिटॉक्स एजेंट भी कहा जाता है. यह शरीर से टॉक्सिन्स यानी हानिकारक तत्वों को बाहर निकालती है, जिससे लिवर और किडनी बेहतर तरीके से काम करते हैं. अगर आप हर दिन सुबह गर्म पानी के साथ इलायची लें तो शरीर अंदर से साफ महसूस होता है.

इलायची को एक नेचुरल डिटॉक्स एजेंट भी कहा जाता है. यह शरीर से टॉक्सिन्स यानी हानिकारक तत्वों को बाहर निकालती है, जिससे लिवर और किडनी बेहतर तरीके से काम करते हैं. अगर आप हर दिन सुबह गर्म पानी के साथ इलायची लें तो शरीर अंदर से साफ महसूस होता है.

वज़न कम करने वालों के लिए इलायची किसी वरदान से कम नहीं. यह मेटाबॉलिज्म को तेज़ करती है और बॉडी में जमा अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने में मदद करती है. इससे ब्लोटिंग कम होती है और फैट बर्निंग बेहतर होती है.

वज़न कम करने वालों के लिए इलायची किसी वरदान से कम नहीं. यह मेटाबॉलिज्म को तेज़ करती है और बॉडी में जमा अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने में मदद करती है. इससे ब्लोटिंग कम होती है और फैट बर्निंग बेहतर होती है.

जो लोग ब्लड शुगर को लेकर परेशान हैं, उनके लिए भी इलायची फायदेमंद है. नियमित सेवन से यह ब्लड ग्लूकोज लेवल को संतुलित रखती है. खासकर डायबिटीज के मरीजों के लिए इसका हल्का सेवन काफी राहत दे सकता है.

जो लोग ब्लड शुगर को लेकर परेशान हैं, उनके लिए भी इलायची फायदेमंद है. नियमित सेवन से यह ब्लड ग्लूकोज लेवल को संतुलित रखती है. खासकर डायबिटीज के मरीजों के लिए इसका हल्का सेवन काफी राहत दे सकता है.

इलायची इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है. इसके एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण शरीर को संक्रमण से बचाते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं. मौसम बदलने पर होने वाली सर्दी-जुकाम जैसी दिक्कतों में यह असरदार साबित होती है.

इलायची इम्यून सिस्टम को मजबूत करती है. इसके एंटीऑक्सीडेंट्स और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण शरीर को संक्रमण से बचाते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं. मौसम बदलने पर होने वाली सर्दी-जुकाम जैसी दिक्कतों में यह असरदार साबित होती है.

स्किन के लिए भी इलायची किसी नेचुरल ब्यूटी टॉनिक से कम नहीं. इसके डिटॉक्सिफाइंग गुण और एंटीऑक्सीडेंट्स चेहरे पर जमा गंदगी और ऑयल को साफ करते हैं, जिससे पिंपल्स की समस्या कम होती है. यह त्वचा की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है और नेचुरल ग्लो बनाए रखता है.

स्किन के लिए भी इलायची किसी नेचुरल ब्यूटी टॉनिक से कम नहीं. इसके डिटॉक्सिफाइंग गुण और एंटीऑक्सीडेंट्स चेहरे पर जमा गंदगी और ऑयल को साफ करते हैं, जिससे पिंपल्स की समस्या कम होती है. यह त्वचा की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है और नेचुरल ग्लो बनाए रखता है.

मानसिक सेहत के लिए भी इलायची बेहद उपयोगी है. इसमें मौजूद नैचुरल कंपाउंड्स तनाव कम करते हैं, मूड को अच्छा बनाते हैं और दिमाग को शांत रखते हैं. दिनभर की थकान और चिंता के बाद इलायची वाली चाय दिमाग को आराम देती है.

मानसिक सेहत के लिए भी इलायची बेहद उपयोगी है. इसमें मौजूद नैचुरल कंपाउंड्स तनाव कम करते हैं, मूड को अच्छा बनाते हैं और दिमाग को शांत रखते हैं. दिनभर की थकान और चिंता के बाद इलायची वाली चाय दिमाग को आराम देती है.

इसके अलावा, इलायची का एक और अहम फायदा है कि यह सांस से जुड़ी समस्याओं में राहत देती है. इसके सूजनरोधी गुण गले की खराश, खांसी और सांस फूलने जैसी दिक्कतों को कम करते हैं. सर्दी-जुकाम के मौसम में इलायची वाली चाय पीना बहुत फायदेमंद रहता है.

इसके अलावा, इलायची का एक और अहम फायदा है कि यह सांस से जुड़ी समस्याओं में राहत देती है. इसके सूजनरोधी गुण गले की खराश, खांसी और सांस फूलने जैसी दिक्कतों को कम करते हैं. सर्दी-जुकाम के मौसम में इलायची वाली चाय पीना बहुत फायदेमंद रहता है.

इलायची शरीर में एनर्जी लेवल को बढ़ाने में मदद करती है. इसमें मौजूद नेचुरल ऑयल्स और मिनरल्स ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करते हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ती है.

इलायची शरीर में एनर्जी लेवल को बढ़ाने में मदद करती है. इसमें मौजूद नेचुरल ऑयल्स और मिनरल्स ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करते हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की सप्लाई बढ़ती है.

Published at : 11 Nov 2025 01:35 PM (IST)

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